बेटी बिलाप | सत्येन्द्र सिताबदियारवी

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परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आईं पढ़ल जाव भोजपुरी कविता बेटी बिलाप, कविता के लेखक बानी सत्येन्द्र सिताबदियारवी जी। पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा सत्येन्द्र सिताबदियारवी जी लिखल भोजपुरी कविता ( Bhojpuri Kavita) कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि अगर रउवा सब के रचना अच्छा लागल त शेयर क के आगे बढ़ाईं।

मैसेज भेजत बानी,रोअत लिखत बानी
करीहऽ मोर हाल पे, बिचार मोर बाबूजी
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घारवा-दुआर निक,उपर-झापर सभ ठिक
जबरन कारावतारी,सासू माथ ढिल-लिख
पियक्कड़ दामाद में,सुधार नईंखे बाबूजी।
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रोजदिन पिके आवे,झोंटा लासारी मारे
गारी देके रातभर, आपन खानदान तारे
जर गईल हमरो,संसार मोर बाबूजी।
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सासू-ननद मोरे,उपर से पचारा भरे
कूहूकतुानी भीतर-भीतर, नईखी बोलत डरे
अपने जिनिगिया भईल, भार मोर बाबूजी।
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ढर-ढर ढरके लोर, भींजऽता आँचरा के कोर
साँझे से रोवत-रोवत,होई जाता देख भोर
होत नईंखे धिया के,पूछार मोर बाबूजी।
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उपर से सासू के पुत, लागेलन सेमर फूल
मानवा से सईयाँ मोर,हऊँए बबूरीके शूल
हो गईल बा उठावना, मार मोर बाबूजी।
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जातना रे हँसी-खुशी, बितल लरीकईयाँ जे
सपनों में नाहीं मरले,दूभ के छीँकी भईया जे
ईहँवा दुलार उ,कुलार भईल बाबूजी।
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सापाना सजईले रहीं, बनके रहम रनिया से
सास-गोतिनी मोहे,कहीहें प्रेम से कनिया से
बह गईल अरमान सभ,धार में मोर बाबूजी।
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नईहर अँगनईया में,बुलबूल जईसे फूदकत रहनी
बाबा के पुअरवा प,लईकन साथे कुदकत रहनी
सुखवा से दुखवा आपार, मोर बाबूजी।
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आग लागे बजर परे,अगुआ अभागा घरे
जईसे हम मरत बानी, घूँट-घूँट के उहो मरे
पुड़ी ठेस छुड़ी पेस, दिहलख हो बाबूजी।

आजो कुछ परिवार अईसन बा जँहवा अईसन धिया लो के साथे हो रहल बा कुछ उदाहरने देखके हामारा लिखे पर मजबूर होखे के परल हऽ जदी रउआ सभे के पसन आई तऽ हम समझम परयास हमार सफल हो गईल–रउए सभे के सत्येन्द्र सिताबदियारवी।

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