हिन्दू-जीवन में त्यौहारो का बड़ा माहात्म्य है। ये त्यौहार हमारे धर्म के अंग हो गये है। हमारे यहां सामाजिक त्यौहारो की अपेक्षा धार्मिक त्यौहारो पर विशेष जोर दिया गया है और इसका कारण है उनकी महत्ता। इसी कारण प्रत्येक हिन्दू के लिये इन त्यौहारों को मनाना अत्यन्त आवश्यक है। हमारे यहाँ त्यौहारों का जितना महत्त्व है, सभवत उतना संसार के किसी भी देश में न होगा। कही-कही इन त्यौहारो की महत्ता प्रतिपादित करने के लिये इन्हें देवी या देवता का रूप प्रदान किया गया है। छठी का व्रत भी ऐसा ही त्यौहार है।
छठी का व्रत कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को किया जाता है। यह व्रत केवल स्त्रियों का ही है। इसे ‘पष्ठी-व्रत” कहते है । छठी शब्द इसी का अपभ्रश रूप है। महत्त्व प्रदान करने के लिये इस व्रत को माता कहते है। इस प्रकार इसका “छठी माता” नाम पड़ गया है। इस व्रत में पंचमी और षष्ठी दोनो तिथियों में स्त्रियाँ उपवास रखती है और सप्तमी के प्रात काल सूर्य नारायण को अर्घ्य प्रदान कर भोजन ग्रहण या पारन करती है। इस तिथि को बड़ा पकवान पकाया जाता है और घर के सभी बाल-बच्चे उसे मिलकर खाते है।
गावं-देहात में किसी नदी या तालाब के किनारे वे लड़के जिनकी माताएं और बहिनें यह व्रत रखती है मिट्टी का एक छोटा-सा चबूतरा एक दिन पहिले जाकर बना देते है। जब वह चबूतरा सूख जाता है तब उसे गोबर-मिट्टी से लीप देते हैं। दूसरे दिन उनकी माताएं और बहिनें आकर इसी चबूतरे पर बैठती है और सूर्य नारायण को अर्घ देती है। बाल-काल में इस चबूतरे का बनाना बालको के लिये बड़े ही आनन्द और मनोरंजन का विषय होता है। लेखक ने स्वयं वाल्यावस्था में कई बार इस काम को बड़े प्रेम से किया है।
जब षष्ठी का व्रत समाप्त हो जाता है तब सप्तमी को सबेरे सूर्य को अर्घप्रदान करने के लिए स्त्रियाँ किसी जलाशय या नदी के किनारे जाती है और उन्ही चबूतरो पर बैठती है जिनको उनके पुत्रो ने बनाकर तैयार किया है।
वे एक बडी दौरी, छबड़ी या सूपली में सूर्य को अर्घ देने के लिए केला, नीबू, नारंगी ऊख तथा अनेक प्रकार के पकवान साथ लेकर जाती है। उस घाट पर मालिन की स्त्री फूल , फल, तथा ग्वालिन की लड़की या स्त्री दूध लाती है जिस का उपयोग सूर्य नारायण को अर्घ देने में किया जाता है। इन गीतों में मालिन तवा ग्वालिन की लडकी के फूल और दूध लाने का वर्णन अनेक बार पाया जाता है। इस प्रकार जब सामग्री इकट्ठी हो जाती है तब सूर्य नारायण को अर्घ दिया जाता है।
इस व्रत में स्त्रियां पंचमी और षष्ठी दोनों दिनों को उपवास रखती है तथा सप्तमी को सबेरे सूर्य-नारायण को बडी तैयारी के साथ अर्घ देने को उद्यत रहती है। एक तो उन्हें उदर की ज्वाला परेशान करती है, दूसरे सबेरे का जाड़ा तंग करता है, तीसरे सूर्य के उदय होने की प्रतीक्षा में उन्हें खड़ा रहना पड़ता है। ऐसी स्थिति में सूर्योदय होने में विलम्ब होने के कारण उन्हें कितना कष्ट होता होगा इनका महज ही में अनुमान किया जा सकता है। वे सूर्य के शीघ्र उदय न होने के कारण व्याकुल हो जाती है और उनसे बडी आतुरता में प्रार्थना करती है ऐ भगवान! शीघ्र उदय लीजिये छठी माता संबंधी गीतों में ऐसे अनेक गीत पाये जाते है, जिनमें शीघ्र उदय लेने के लिये सूर्य भगवान से प्रार्थना की गई है। स्त्रियाँ बड़ी आतुरता से प्रार्थना करती है कि ए भगवान । उदय लेकर हमारे अर्ध को स्वीकार कीजिये । एक गीत में एक स्त्री सूर्य से प्रार्थना करती है कि
“अहिरिनि बिटिया, दूधवा ले ले ठाढ़ी।
हाली देनी उग ए अदित मल, भरघ दिआउ ।”
कहीं पर वह स्त्री यह प्रार्थना करती है कि ऐ भगवान! खड़े-खड़े मेरे पैर दुखने लगे और कमर में पीडा होने लगी है। अतः कृपा कर अब तो उदय लीजिये।
“खडे खडे गोडवा दुखाइलि; ए अदितमल डाँडवा पिराइल।
हाली देनी उग ए अदितमल; अरघ दियाउ॥
छठी माता का व्रत विशेष करके सन्तान प्राप्त की कामना से किया जाता है। जिन स्त्रियों को पुत्र नहीं होता वे इस व्रत को विशेष रूप से करती है कितनी स्त्रियां सूर्य निकलने के कई घंटे पहिले से जल में खडी रहती है और सूर्य के निकलने पर अर्घ देती है। इस तपस्या के फलस्वरूप वे पुत्रप्राप्त की कामना रखती है। कई गीतो में इस कामना का वर्णन मिलता है जिनमें औरतें छठी माता से पुत्र देने की प्रार्थना करती है। एक स्त्री कहती है –
“खोइछा अछतवा गडुववा जुड़ पानी ।
चलली कवनि देई अदित मनावे॥
थोरा नाहि लेबों आदित बहुत ना माँगिले ।
पाँच पुतर आदित, हमरा के दिहिती ॥”
इन गीतो में माता की पुत्र-लालमा का जितना सुन्दर वर्णन किया गया है, सभवत उतना अन्यत्र उपलब्ध नही। पुत्र विहीन माता की व्याकुलता नीरस हृदय में भी करुण रस की धारा प्रवाहित करने लगती है। आगे कुछ चुने हुए छठी माता के गीत पाठकों के मनोरंजन के लिए प्रस्तुत किये जाते है –
सन्दर्भ: पुत्रहीन वधू का अपनी सास से पुत्र पैदा करने का उपाय पूछना
“मोहि तोहि पुछिला मायरि हो, कवना तपे पवलु गनपति सुत रे ॥१॥
कातिक मासे कतिको छठि कइलों, अगहन कइलो अतवार
बड़ ही जेठ के जवाब नाहि दिहलों, ओह तपे पवली होसियार ॥२॥
कोई पुत्रवधु अपनी सास से यह पूछ रही है कि तुमने कौन सी तपस्या की है जिसके कारण तुम्हे गनपति (मेरा पति) जैसा पुत्र पैदा हुआ है ॥१॥
इस पर सास ने उत्तर दिया कि कातिक के महीने में मैंने छठी माता का व्रत किया था और अगहन के महीने में रविवार का व्रत किया था। मैंने कभी अपने श्रेष्ठ लोगों को उत्तर नहीं दिया। इसी कारण गनपति के समान चतुर पुत्र प्राप्त किया है ॥२॥ सास का उपदेश पुत्रवधू के लिए कितना उचित तथा उपयोगी है।
सन्दर्भ: छठी माता के प्रसन्नार्थ उपहार ले जाने के लिए स्त्री की पति से प्रार्थना
“काचहि बाँस के बहगिया, बॅहगी लचकति जाइ।
रउरा भाराहा होइना कवन राम, बॅहगी घाटे पहुँचाई ॥१॥
बाट में पूछेला बटोहिया, इ बहगी केकरा के जाई।
ते” त अन्हरा हवे रे बटोहियाः ई बहगी छठि मइया के जाई ॥२॥
हामारा जे बाड़ी छठिय मइया, इ दल उनके के जाई ॥३॥”
कच्चे बांस की बहँगी लचकती हुई जा रही है। कोई स्त्री अपने पति से कह रही है कि तुम इस बहँगी को लेकर घाट पर पहुँचा आओ ॥१॥
जब उस स्त्री का पति बहँगी पर बोझ लादकर घाट पर लिये जा रहा था तब किसी बटोही न पूछा कि यह बहँगी कहाँ जायेगी उसने उत्तर दिया कि ऐ बटोही क्या तुम अन्धे हो देखते नही कि छठी माता के घाट पर यह बहँगी जा रही है॥२॥ हमारी जो छठी माता है उनके लिये ही यह सारा सामान जा रहा है।
सन्दर्भ: पुत्र तथा पति को कुशलपूर्वक रखने के लिये स्त्री का छठी माता को विविध उपहार देने की प्रार्थना
“कलसुपवा’ चढ़इबों छठिय मइया; छठी मइया के सुहाग।
खोरिया रउरी बाहारी’; धन, सम्पत्ति हमरा के दीं ॥१॥
अमरुधवे चढ़इबों छठिय मइया, छठि मइया के सोहाग।
खोरिया रउरी बहारबि, धन सम्पत्ति दी ॥२॥
खोरिया रउरी बहारबि, पुतवा’ भोख दी।
मुरई चड़इबों छठिय मइया; छठि मइया के सोहाग ।
खोरिया रउरे बहारबि; भातार भीख दीं॥३॥”
कोई स्त्री कह रही है कि ऐ छठी माता ! मैं आपके प्रसन्नार्थ कल कलसुप चढ़ाऊंगी। मैं आपकी गली में झाड़ दूँगी । कृपा कर आप मुझे धन और सम्पत्ति दीजिये ॥१॥
ऐ छठी माता ! मैं आपको अमरूद भेंट करूंगी, आपकी गली में झाड़ दूँगी। आप धन, सम्पस्ति और पुत्र भीख में दीजिये ॥२॥
ऐ छठी माता ! मैं आपके प्रसन्नार्थ मूली चढ़ाऊँगी। आपकी गली में झाड़ दूँगी। आप मेरे पति के स्वस्थ रहने की भिक्षा दीजिये ॥३॥
इस गीत में स्त्री का पुत्र और पति के स्वस्थ रहने की चिन्ता तथा उसके लिए देवी की प्रार्थना अत्यन्त मर्मस्पर्शी है।
सन्दर्भ – छठी का व्रत रखने वाली स्त्री की सूर्य से अर्घदेने के लिये शीघ्र उदय लेने की प्रार्थना
“आरे गोड़े खरउवाँ” ए अदितमल; तिलका लिलार।
आरे हाथावा में सोबरन साँटी ए अदितमल, अरघ दिआउ ॥१॥
ए आमा के कोरा सुतेले अदितमल, भोरे हो गइल बिहान ।
आरे हाली हाली उग ए अदितमल, अरघ दिआउ॥२॥।
फालावा फुलबा लेले मालिन, बिटिया ठाड़।
आरे हाली हाली उग ए अदितमल, अरघ दिआउ ॥३॥
दुधवा , घिउवा ले ले गवालिनि, बिटिया ठाड़।
आरे हाली हाली उग ए अदितमल, अरघ दिआउ ॥४॥
धूपवा, जलवा रे लेके, बाभानवा रे ठाड।
आरे हाली हाली उग ए अदितमल, अरघ दिआउ॥५॥
गोडवा दुखइले रे डाँड़वा’, पिरइले, कब से जे बानि हम ठाढ़।
आरे हाली हाली उग ए अदितमल, अरघ दिआउ ॥६॥
कोई स्त्री छठी माता का व्रत करके अर्घ्य देने के समय कह रही है कि सूर्य तुम्हारे पैर में खडाऊँ है अर्थात् तुम अश्वरूप खड़ाऊं पर चढ़ कर उदय लेते हो। तुम्हारे ललाट पर तिलक है। तुम्हारे हांथ में सोने का डण्डा है अर्थात तुम्हारी किरणें सोने के समान सुनहली हैं । तुम उदय लो जिससे अध्यं दिया जा सके ॥१॥
ऐ सूर्य! तुम रात्रिरूपी माता की गोद में सो जाते हो और सोते-सोते सबेरा कर देते हो। ऐ सूर्य! तुम जल्दी-जल्दी उदय लो जिससे हम लोग अर्घ्य दे सकें ॥२॥
फूल और फल लेकर मालिन की लड़की तथा घी, दूध लेकर ग्वालिन की लड़की खड़ी है। ऐ सूर्य! तुम जल्दी उदय लो जिससे हम अर्घ्य दें ॥३॥४॥
धूप और जल लेकर ब्राह्मण अर्घ्य दिलाने के लिए खड़ा है। अतः जल्दी उदय लो ॥५॥ वह कहती हैं कि खड़े होने से मेरा पैर दुखने लगा है तथा कमर दर्द कर रही है। मैं कब से खड़ी हूँ। ऐ सूर्य! जल्दी उगिये जिससे हम अर्घ्य दें।॥६॥
इस गीत में स्त्री सूर्य के उदय होने के लिए अत्यन्त चिन्तित है। उसकी यह चिन्ता अत्यन्त मर्मस्पर्शी है।
सन्दर्भ: पार्वती को सूर्य से पाँच पुत्र देने की प्रार्थना
खोइछा आछातावा गेडुवबा जुड़ हो पानी; चलली गउरा देई अदित मनाव ।
आरे पलटहु पलटहु छठि परमेसरी’; आजु हम अदित मनाव ॥१॥
थोरा नाहि लेबो ए अदित बहुँत ना माँगिले ।
पाँच पुतरवा ए आदित हमरा के दोहि ॥२॥
पलटहु पलटहु छठि परमेसरि ॥
कोई स्त्री कहती है कि गउरा देवी (पार्वती) अपने आँचल में चावल और ठण्डा लेकर सूर्य को प्रसन्न करने चलीं । वह छठी माता से प्रार्थना करती है कि प्रसन्न होइये आज मैं सूर्य को अध्यं दूगी ॥१॥
फिर वह सूर्य से प्रार्थना करती है कि ऐ भगवान् ! मैं आपसे न तो थोडा और न अधिक । आप मुझे अधिक नहीं पाँच पुत्र दे दीजिये । ए छठी माता । प्रसन्न होओ ॥२॥
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