चम्पारण के जन कवि स्व. बृजबिहारी प्रसाद चूर जी। कई लोगन से उहाँ के फोटो मंगनी बाकिर मिलल ना। आज उहाँ के पोती Sneha Bhushan जी एगो दुर्लभ फ़ोटो उपलब्ध करा देली। हृदय से आभारी बानी।
एगो आर्टिकल आ मशहूर कविता- चंपारण के लोग हँसेला।
चंपारण के सुप्रसिद्ध कवि बृजबिहारी प्रसाद चूर (23 जनवरी 1914-21 अप्रैल 1994) के भोजपुरी कविता- “चंपारण के लोग हँसेला” (1954 ई में प्रकाशित) चंपारण के महिमा के बखूबी बखान करत बा, रउरा सभे आनंद लिहिन- चंपारण के लोग हँसेला। हम बता दिही कि बृजबिहारी प्रसाद चूर वइसे त ‘चूर कवि’ से प्रसिद्ध रहीं। चंपारण में जनकवि के रूप में ‘चूर जी ‘ के प्रसिद्धी रहे, रहे काहे ना जे आपन साहित्य साधना आम जन, आम मनई, आपन माई भाषा भोजपुरी आ आपन जनम भुई ‘चंपारण’ के खातिर कइले होक, जेकर कविता अबाल वृद्ध के मुंह से तिरोहित होखे आ जे केहू आपन मातृभाषा आ जनम भूमि पर गर्व करेला ओकरा ला ‘चूर’ जी रचना पढ़ल आ बोलल आजो ओतने प्रासंगिक बा जेतना उ आपन समय में रहे .
चूर जी के लिखल दू गो पुस्तक हमेशा चर्चा में बनल रहेला ” चंपारण गुणगान’ आ ‘चंपारण के लोग हँसेला’. कवि चूर के रचना ‘चंपारण के लोग हँसेला’ के प्रबंधात्मक शैली के अनुपम रचना कहेले – डॉ शोभाकान्त झा (पृष्ठ संख्या – 210), हिंदी साहित्य को चंपारण की देन ) एह पुस्तक के सन्दर्भ में लिखत बानी कि” इस पुस्तक में कवि चूर ने चंपारण के इतिहास, भूगोल, दर्शनीय स्थान, विस्तृत प्राकृतिक छटा का भोजपुरी में गौरव गान किया है।”
सांचों, एह लमहर रचना में चंपारण के लोक संस्कृति, लोगन के भाईचारा, भोजन आ चंपारण के महता के दर्शन बा. एह प्रबंध कविता के ताकत के बखान करत चखनी, बगहा के साहित्यकार विश्वम्भरनाथ मिश्र जी जे चूर से उमर में तनिके छोट होखब आपन एगो आलेख जवन अप्रैल- जुलाई 2013, चंपारण चंद्रिका, बगहा, पश्चिम चंपारण पृष्ठ -26-27) एगो घटना के वर्णन कइले बानी –
“मार्च 1964 में भोजपुरी भाषा के कवि सम्मलेन का आयोजन स्वनाम धन्य कांग्रेसी नेता श्री अर्जुन विक्रम शाह (रामनगर) के तत्वावधान में, हिन्द सिनेमा रामनगर में कराया गया था. मंच सञ्चालन श्री विन्ध्याचल प्रसाद गुप्त (चनपटिया वाले) कर रहे थे . दूर दूर से आये कविगण अपनी कविताएँ सूना रहे थे। गुप्त जी ने छपरा से आये कवि ‘मुँहदुब्बर जी’ को मंच पर आकर कविता पाठ करने का आग्रह किया. मुंहदुब्बर जी मंच पर अपनी कविता – चंपारण के लोग ‘ मुस्कुराते हुए अपने अंदाज में पढना आरम्भ किया।
कविता में चंपारण के लोगों को गंवार, असभ्य और अनपढ़ बताया गया. इन्हें खानपान का सही तौर तरीका भी मालूम नहीं, कहा गया। मुहंदुब्बर जी को कविता सुन श्रोता मौन हो गए. इसी बीच आशुकवि चूर जी मुह्न्दुब्बर जी के कविता का जबाब तैयार कर भी लिए। संयोग से ‘गुप्त जी’ ने ‘चूर कवि’ को कविता पाठ के लिए आमंत्रित किया. चूर जी ने अपनी प्रथम पंक्ति में विस्फोट कर दिया. मुंहदुब्बर जी का मुंह उतर गया, चेहरा उदास, और रही सही कसर श्रोताओं ने खड़े होकर तालियाँ बजाते रहे जिसकी गडगडाहट देर तक चलती रही। वह विस्फोटक पंक्ति थी –
” के हँसे हमार चम्पारण के … हम हाल ना जानी सारण के !”
अगली पंक्तियों में चूर जी ने सारण (छपरा) के उन अवगुणों को उजागर किया जिनको लेकर वह जिला बदनाम माना जाता रहा है. अइसन रही कवि चूर जी .
कवि चूर बथना गाँव (नवतन), बैरिया, पश्चिम चंपारण के निवासी मुंशी हजारी लाल के योग्य बेटा रहीं. 23 जनवरी, 1914 ई के इहाँ के जनम भइल रहे. शिक्षा दीक्षा तक प्राइमरी ले रहे बाकिर भोजपुरी भाषा के एगो सशक्त कवि आ चम्पारण के एगो बरियार मंचीय हस्ताक्षर.
बृजबिहारी प्रसाद चूर के रचना संसार में ‘चंपारण के लोग हँसेला’ भोजपुरी कविता संग्रह, 1954 ई में आइल. ‘हमनी के लाज भगवाने बचायीं’, भोजपुरी कविता संग्रह 1954 ई में आइल। बहकल मनवा के कैसे समझाई, आ 15 अगस्त, हरि बिनु के हरी दुखवा गरीब के, कह तानी हाल सुनी, तेइस बारिस के, खटमल पूरण, मालाहां उन्घायिल नैया आपन ना सम्ह्रता, आप देता के बतकही, धरती रानी, बी एन डब्लू आर से जब ओ टी आर भइल, हम गरीब किसान कहाइले, के करी पूरा हमारा बापू के सपनवा, गणेश वंदना अप्रकाशित बा .
‘चंपारण के लोग हँसेला’ प्रबंध कविता के लोकप्रियता देखीं की बिहार सरकार के तत्कालीन कृषि आ सिचाई मंत्री स्व राम चरित्र सिंह जब 1952 में रामनगर आइल रहनी त कवि चूर के एह रचना सुनावे के कहल गइल. कवि चूर जी के मंत्री जी एह कविता के सुनि के ‘ स्वर्ण पदक’ देले रहीं. कवि चूर नवतन से आई के रामनगर में बस गइल रही जहवां एगो केदार जी के साथे साईकिल फिटिंग के काम करे लगनी ओही में अख़बार विक्री के काम होखे . चूर जी पेपर बेचला के अलावा जिल्दसाजी के काम, नया फाइल बनावे के काम कर के जीवनयापन करत रहीं.
निहायत शरीफ, सरल, सहज, आ हंसमुख सोभाव के कवि चूर जी में एगो आउर गुण रहे उहाँ के बिच्छी आ सांप के बिख उतारे के मंतर जानत रही एह से आसपास के इलाका में उन्हा के लोकप्रियता बढ़ गइल रहे . चूर जी शादी -विआह ना कइनी बाकिर उहाँ के व्यंग के तीर एगो शादीशुदा भइला के बाद मिलल अनुभव से जानल जा सकेला. कवि चूर के व्यंगोक्ति इहाँ दिहल जरुरी बा –
रेल के गति पर उहाँ के कहत बानी –
“ओटी से एनई भइल
नाम बदल के लोग का कइल
एकर हरदम हाल इहे बा
टुकदम टुकदम चाल इहे बा (पृष्ठ -27, चंपारण चंद्रिका, अप्रेल-जुलाई, 2013)
कवि चूर के कविता के मूल्याङ्कन करत डॉ सतीश कुमार राय लिखत बानी – बृजबिहारी प्रसाद चूर भोजपुरी के अत्यंत प्रसिद्ध कवि है. 1954 ई में उनकी भोजपुरी कविताओं का संग्रह ‘चंपारण गुणगान’ प्रकशित हुआ था इसमें चंपारण की भौगोलिक स्थिति और उसके वैशिष्ट्य के पूरी जीवन्तता के साथ रेखांकित किया गया था. चंपारण के स्थलों के लेकर लिखी गई कविता ‘चंपारण के लोग हँसेला’ अपने कटाक्ष, आत्मवोध, और भाषागत प्रवाह के कारण कालजयी रचना मानी गई.” ( पृष्ठ संख्या – 36-37, परम्परा के कृति स्तम्भ, संपादक और संचयन – डॉ सतीश कुमार राय)
रघुनाथ पुर मोतिहारी के रहनिहार भोजपुरी के वरिष्ठ कवि साहित्यकार लव शर्मा प्रशांत जी के सम्पादित चंपारण के गीत नामक किताब जवन सन 2010 में भोजपुरी साहित्य संस्था, पटना प्रकाशित भईल में ओह में बृजबिहारी चूर जी के कविता प्रकाशित बा. वइसे त एह किताब में 15 गो कवि के चम्पारण के गीत/ गान दिहल बा जेकरा में तीसरा नम्बर पर चूर जी के चंपारण के लोग हँसेला प्रकाशित बा। सम्पादक के पन्ना में (पृष्ठ – 8) लिखत बानी – ” हम हाई स्कूल में पढ़त रहनी तबे से बलदेव प्रसाद श्रीवास्तव जी के गीत सुनी सुनाई कथा आज हम चंपारण का गाँव के’ आ बृज बिहारी प्रसाद चूर जी के चंपारण के लोग हँसेला सुनल करीं. सोचीं केतना प्रसिद्धी रहे एह कविता के ” कवि चूर जी आपन बुढ़ापा के जिनिगी ले साहित्य सृजन कइनी. आखिर उहों साथे उहे भईल जवन सबका साथे होखे के बा चूर जी के देहांत सन 1996 ई में हो गईल।
इहाँ एगो बात उधृत करल जरुरी बा कि वर्ष 2014 में कवि चूर जी के शताब्दी वर्ष रहे। भले लोग भुला गईल होखे बाकिर बगहा के दू गो युवा साहित्यकार सौरभ के, स्वतंत्र आ अविनाश कुमार पाण्डेय के संयुक्त संपादक में स्पंदन – भाग 2 जवन भोजपुरी कविता पर केन्द्रित बा ओकर पहिला पन्ना में चूर जी के श्रधांजली देत उन्हा के लिखल चंपारण के लोग हँसेला के तीन पैराग्राफ दिहल बा।
बेतिया के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ गोरख प्रसाद मस्ताना के अनुसार – ” कवि चूर जी के लोग जनकवि कहेला काहे कि उहाँ के रचना में भोजपुरी के सीधा, सरल आ मन के छुवेवाला शब्दन के प्रयोग कइले बानी खास कर के भोजपुरी भाषा में चंपारण पर लिखल उहाँ के कविता आजू ले अद्वितीय मानल जाला.”
“चंपारण के लोग हँसेला” बृजबिहारी प्रसाद चूर
उत्तर में सोमेसर खाडा
दक्खिन गंडक के जलधारा
पूरब बागमती के जानी
पश्चिम तिरबेनी जी बानी
माघ मास लागेला मेला
चंपारण के लोग हँसेला।
चलीं देखलीं भैसालोटन
अब नइखे उ बाघ ककोटन
तिरबेनी पर बान्ह बन्हल बा
कोसन तक घर-बार बनल बा
सांझे जग-मग जोत जरेला
चंपारण के लोग हँसेला।
पूल के रचना अजबे बाटे
बदल गइल बा सरबस ठाटे
देखत में न मन अकुताला
उन्हवे आपन राज बुझाला
बाटे बनल बराज बुछेला
चंपारण के लोग हँसेला।
नइखे तिरथ से तनिको कम,
नियरे बाल्मीकि के आश्रम
जहवां बाजेला ढोल -मृदंग
साधुन के होला सत्संग
मंह मंह चारू ओर करेला
चंपारण के लोग हँसेला।
धन धन श्री धनराजपूरी के,
खोजले आश्रम बाल्मीकि के
हम का करब बड़ाई उनके
दुनिया गाई उनका गुन के
अइसन अइसन लोग बसेला
चंपारण के लोग हँसेला।
इहवें रहे विराट के नगरी
जंहवा पांडव कइले नोकरी
अर्जुन इहवें कइले लीला
इहवे बा विराट के टीला
बरनन वेड कुरान करेला
चंपारण के लोग हँसेला।
परल कभी पानी के टान
अर्जुन मारले सींक के बान
सींक बान धरती के गईल
सिकरहना नदी बह गईल
एकर जल हर घड़ी बहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
नगर किनारे सुन्दर बगहा
मालन के ना लागे पगहा
परल उहंवा बा सउसें रेत
चरि के माल भरेला पेट
रेल के सिलपट इहें बनेला
चंपारण के लोग हँसेला।
इहें मसान नदी बउरहिया
उपरे डूगरे रेल के पहिया
भादों में जब इ फूफुआले
एकर बरनक कहीं कहान्लें
बड़का -बड़का पेड़ दहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
रामनगर में राजमहल बा
शहर – बाज़ार में चहल- पहल बा
बा विशाल मंदिर शंकर के
कहाँ कहाँ बा ओह परतर के
कंचन के त्रिशूल चमकेला
चंपारण के लोग हँसेला।
रामनगर राजा नेपाली
मंगन कबो न लौटे खाली
इहाँ हिमालय के छाया बा
एकर कुछ अजबे माया बा
इहें नदी में स्वर्ण दहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
रामनगर के धनहर खेती
एक-एक खेत रहू के पेटी
चार महिना लोग कमाला
आठ महिना बइठल खाला
दाना बिना केहू ना मरेला
चंपारण के लोग हँसेला।
इहाँ चानकी पर जाई चढ़
इहें लौरिया के नंदनगढ़
केहू कहे भीम के लाठी
गाडलि बा पत्थर के जाठी
लोग अशोक के लाट कहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
नरकटियागंज देखीं गल्ला
मंगल सनीचर हाट के हल्ला
किनी बासमती के चाउर
अन्न उहवाँ ना मिली बाउर
भात बने बटुला गमकेला
चंपारण के लोग हँसेला।
चल के देखलीं योगापट्टी
बा जहाँ बिछल तेल के पट्टी
हित देश के कुछ लोग आई
सभे मिल के करी खुदाई
देखि केतना दिन लागेला
चंपारण के लोग हँसेला।
आगे बढीं चलीं अब बेतिया
बीच राह में बा चनपटिया
इहाँ बीके मरचा के चिउरा
किन -किन लोग भरेला दउरा
गाड़ी-गाडी धान बिकेला
चंपारण के लोग हँसेला।
बेतिया राजा के राजधानी
रहले भूप करन अस दानी
पश्चिम उदयपुर बेतवानी
बढ़िया सरेयां मन के पानी
दूर दूर के लोग पियेला
चंपारण के लोग हँसेला।
बेतिया के मीना बाज़ार
सभ बाज़ारन में उजियार
बाटे अब तक बाग़ हजारी
मेला लगे दसहरा भारी
घोडा हाथी बैल बिकेला
चंपारण के लोग हँसेला।
बेतिया के गिरजा मशहूर
भईल रहे भूकंप में चूर
फेर बनल बा अइसन बांका
बदल गईल बा ओकर खाका
इनरासन के जोत झरेला
चंपारण के लोग हँसेला।
चाउर में झुमका के जानी
संतपुर के पटुवा मानी
रेल के जंक्सन नरकटिया के
आउर सराहीं गुड योगिया के
चीनी के इ मात करेला
चंपारण के लोग हँसेला।
इहवे बसल सुगौली भाई
गोरे -गोरखे भईल लड़ाई
हारे पर जब अइलें गोरा
धइ दिहलें गोली के झोरा
भईल सुलह इतिहास कहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
चंपारण में गढ़ मोतिहारी
भइल नाम दुनिया में भारी
पहिले इहे जिला जागल
गोरन के मुंह करिखा लागल
मोतिहारी के नाम तपेला
चंपारण के लोग हँसेला ।
चकिया उँख के मिल पुराना
मेहसी सिप बटन कारखाना
सटे बहे नदी सिकरहना
पेन्हे लोग मोतिन के गहना
सूपन मोती रोज झरेला
चंपारण के लोग हँसेला ।
एही जिला में भितिहरवा बा
गाँधी आश्रम नाम परल बा
गाँधी जी चम्पारण अइले
इहें पाहिले सत्याग्रह कइले
लिलहा आबो नाम जपेला
चंपारण के लोग हँसेला ।
बेतिया से दखिन कुछ दूर
बथना गाँव बसे मसहूर
इहवा लाला लोग के बस्ती
धंधा नोकरी ओ गिरहस्ती
केतना एम.ए.लोग बसेला
चंपारण के लोग हँसेला ।
इहवें के भैया देहाती
रहले उ कवि ‘चूर’ के साथी
कविता बा उ देहिया नइखे
‘गगरी भरल खीचतें नइखे’
रटना अबहूँ लोग करेला
चंपारण के लोग हँसेला ।
चंपारण के लोग हँसेला
कांवरथू के दिखी रावा
अरेराज बउरहवा बाब
फागुनी तेरस नीर ढरेला
नामी अरेराज के मेला
ओके दर्शन लोग करेला ।
चंपारण के लोग हँसेला
अइसन बहुत जिला के बस्ती
लेकर इहाँ हाट परवस्ती
केहू नौकरी, केहू नाच करेला
मगन लोग दिन रात रहेला
केतना लोटा -झाल बहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
खाए में जब कटपट भइले
भागि में चंपारण अइले
मांगी मांगी धन -धान कमइले
मंगन से बाबू बन गइले
ऐसन केतना लोग बसेला
चंपारण के लोग हँसेला।
सब दिन खइले सतुआ लोटी,
इहाँ परलि मचिया पर बेटी
बाप के दुःख भूल गइल बीटा
भोर परल माटी के मेंटा
अब त लाख पर दिया जरेला
चंपारण के लोग हँसेला।
केहू संत के रूप बनावे
केहू बीन बजावत आवे
कतने कतने भांट पंवरिया
बनिके आवे स्याम संवरिया
इहें सभकर बाँह गहेला
चंपारण के लोग हँसेला।
करिहें का, कवि लोग बड़ाई
जग चंपारण के गुण गाई
अपन कमाई अपने खाले
केहू से ना मांगे जाले
इहे देखि दुश्मन हहुरेला
चंपारण के लोग हँसेला ।
साभार-हिंदी साहित्य में चंपारण का योगदान- डॉ शोभाकान्त झा
चंपारण चन्द्रिका- चंपारण महोत्सव स्मारिका-2002- संपादक- श्रीमती शशिकला
चंपारण महोत्सव स्मारिका-2003- संपादक- डॉ महेश्वर प्रसाद सिंह
चंपारण के गीत- लव शर्मा प्रशांत जी -भोजपुरी साहित्य संसथान, २०१०
कर्मयोगी राजकुमार शुक्ल- रवीन्द्रकुमार शर्मा- अकेला प्रकाशन, 2011
शोध आलेख प्रस्तुति- संतोष पटेल
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