बड़का मछरी छोटका के खाला
इ नियति के भइया बनल बिधान ह
जात पात के उलझन हरदम सुलझल
सबकेहु जानेला जग मे करम परधान ह
कमजोर हर जगहे कचराला नोचाला भरमावल जाला
बनके होरहा बड़ियड़कन के इ भुरभुट के चबावल जाला
बच के रहे खतिरा बड़ियार बने पड़ी
आस दोसर के छोड़ के खुद लड़ें के पड़ी
जिनगी यातरा के नाम ह हक आ स्वाभिमान के
आग होला एहमे बहुत जिए ला ताप सहे के पड़ी
जलज कुमार अनुपम
बेतिया , बिहार
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