आइल गरीबी जिनिगी आफत, उनकर खाली लमहर बात।
सात समुन्दर, उनका घरवा ,
घी क अदहन रोज दियात।
हमरा घर में कीच- कांच बा,
नइखे घर में भूंसा- भात।
उनका घरवा उगेला सूरज,
हमरा घरे अन्हरिया रात।
देहिया पर बा फटल निगोटी,
अपने हिस्सा भागम- भाग ।
चौकी- चउकठ टूट गईल बा,
उनकर सउसे बा अफरात।
दाना दाना रोज बटोरी,
लम्मा नियरा रोज छीटांत।उनकर चर्बी चढ़ल तोंद पर,
एन्नी मिलल सुखाईल आँत।
खोरी खोरी बदबू मारे,
धुरे गर्दा सनल बा हाथ।
कस्तूरी क चर्चा होला,
उनकर चन्दन वाली बात।
नूने तेल भुलाईल लकड़ी, दिनवा नाही कटे कटात ।
उपरा निचवाँ लगीं नुमाईस,
असरा वादा खूबे दियात ।
बोअल बिया फेड. भईल बा,
कांटा वाली बड़की खान।
हल्ला कइके भीड़ जुटवलस,
आइल वोट निपोरी दाँत।
मलीकरवा त जान गइल बा,
दूलहा ख़ातिर बनल बरात।
यही कारन पूछ बढ़ल बा,
दिन होखे या होखे रात।
उ खाली अपना फेरा में,
कइले हमसे घातम घात।
बोली उनकर चढ़ल कपारे,
हरदम उ सबसे छ्तीयात ।
अइसन देख तमाशा अब त,
आपन जीउआ बा खिसियात।मनवा त एतना घबराईल,
दुनिया कइसे बा फेफियात।
रचनाकार: डॉ राधेश्याम केसरी
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गावँ + डाक: देवरिया
जिला: गाजीपुर(उ.प्र.)
पिन: 232340