भोजपुरी निर्गुण : भक्ति भावना से ओत-प्रोत गीतों को निर्गुण कहते हैं यद्यपि भजन और निर्गुण का वर्ण्य -विषय एक ही है परंतु इन दोनों की गाने की लय में बहुत अंतर है निर्गुण की एक विशेष लय होती है जिसमें वह गाया जाता है इस लय में बड़ी ह्रदय प्रवक्ता होती है यह सुनने में बड़ा मधुर लगता है और श्रोताओं को आनंद सागर में डूबो देता है। निर्गुण की दूसरी विशेषता यह है कि इसकी दूसरी पंक्ति प्राय आहो रामा से प्रारंभ होती है और हो रामा से समाप्ति पाई जाती है।
निर्गुण के गीत भक्ति रस के गाने हैं जिसमें ईश्वर की स्तुति उपलब्ध होती है कबीर जी का नाम निर्गुण गीतों के साथ संलग्न है परंतु महात्मा कबीर के द्वारा इनके रचित होने की बात संदिग्ध है।
भोजपुरी निर्गुण का नामकरण
कबीर दास की वाणी जिसमें निरंकारी ईश्वर की उपासना का उपदेश दिया गया है निर्गुण के नाम से प्रसिद्ध है। कबीर ने ईश्वर की निर्गुण सत्ता का प्रतिपादन करते हुए अनेक पद कहे हैं ये पद भी निर्गुणी तत्व के वर्णन के कारण निर्गुण कहे जाते हैं कबीर के बीजक में ऐसे पद प्रचूर परिमाण में पाए जाते हैं कबीर के नीरगुनियो और लोकगीतों के इन पदों मे वर्ण्य विषय प्रायः एक ही था अतः इन लोकगीतों को भी निर्गुन के नाम से पुकारा जाने लगा।
कबीर दास का नाम निर्गुण गीतो से चिरकाल से संबद्ध है अतः इन लोकगीतों के रचयिता भी कबीर ही मान लिए जाते हैं परंतु भोजपुरी निर्गुण के कर्ता कबीर, ‘बीजक’ के कबीर से नितांत भिन्न है इन गीतों को महत्व प्रदान करने की दृष्टि से ही महात्मा कबीर का नाम जानबूझकर जोड़ दिया गया है।
– भोजपुरी लोकसाहित्य : कृष्णदेव उपाध्याय