यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय है। भोजपुरी इतनी सजीव एवं व्यापक भाषा होते हुए भी साहित्य-सृजन में प्रायः शून्य-सी है। इसकी सगी बहन मैथिली में सुन्दर साहित्य का निर्माण हुआ परन्तु भोजपुरी में नहीं । विद्वानों ने इसके दो प्रमुख कारण निर्धारित किए हैं। प्रथम, प्राचीनकाल में जहाँ बंगाल एवं मिथिला के ब्राह्मणों ने संस्कृत के साथ साथ अपनी मातृ भाषा को भी साहित्यिक रचना के लिए अपनाया वहाँ भोजपुरी पंडितों ने केवल संस्कृत के अध्ययन और अध्यापन पर ही विशेष बल दिया। संस्कृत के अध्ययन का प्राचीन केन्द्र ‘काशी’ भोजपुरी प्रदेश में ही स्थित है। संस्कृत साहित्य को उत्तरोत्तर परिष्कृत करने में तथा उसके प्रचार को अक्षुण्ण बनाए रखने के कारण भोजपुरी पण्डितों द्वारा मातृ-भाषा की उपेक्षा की गई।
भोजपुरी में साहित्य के अभाव का द्वितीय कारण है राज्याश्रय का अभाव । प्रोफेसर बलदेव उपाध्याय का मत है कि भोजपुरी साहित्य की अभिवृद्धि न होने का प्रधान कारण है राज्याश्रय का अभाव । भोजपुरी प्रदेश में किसी प्रभावशाली व्यापक एवं प्रतापी नरेश का पता नहीं चलता। अधिकतर इसमें किसानों की ही बस्तियाँ हैं। किसी गुणग्राही नरेश का आश्रय न मिलने से इस भाषा का साहित्य समृद्ध न हो सका।”१
उपयुक्त दोनों मतों में सत्य की मात्रा अवश्य है परन्तु यह मत स्वीकारकर लेना कि भोजपुरी में साहित्य का सर्वथा अभाव है, नितांत असंगत होगा। यह अवश्य है कि भोजपुरी में सूर, तुलसी, मीरा तथा विद्यापति के समान कोई प्रतिभावान् व्यक्ति नहीं उत्पन्न हुआ परन्तु थोड़ी बहुत मात्रा में साहित्य की रचना सदैव से होती रही है। डा० उदयनारायण तिवारी के मत से कबीर तो भोजपुरी भाषा के ही कवि थे। तुलसी की रचनाओं में भी भोजपुरी भाषा का प्रभाव पड़ा है।
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इनके अतिरिक्त प्राचीनकाल में अनेक संत एवं इतर कवियों ने भोजपुरी में रचनाएँ की थीं जिनमें धरमदास, शिवनारायण, धरनीदास तथा लक्ष्मीसखी इत्यादि प्रमुख हैं। आधुनिक काल में अनेक कवियों ने भोजपुरी में अपनी रचनाएँ प्रस्तुत की हैं जिनमें बिसराम, तेजअली, बाबू रामकृष्ण वर्मा, दूधनाथ उपघ्याय, बाबू अम्बिका प्रसाद, भिखारी ठाकुर, मनोरंजन प्रसाद सिनहा, राम बिचार पांडे, प्रसिद्ध नारायण सिंह, पण्डित महेन्द्र शास्त्री, श्यामबिहारी तिवारी, श्री चंचरीक, श्री रघुवीर शरण, तथा रणधीरलाल श्रीवास्तव प्रमुख हैं ।
इनकी रचनाओं के अतिरिक्त दूधनाथ प्रेस, हवड़ा, गुल्लू प्रकाशन तथा बैजनाथ प्रसाद बुकसेलर, काशी ने भोजपुरी गीतों तथा नाटकों के अनेक संग्रह प्रकाशित किए हैं।
भोजपुरी गद्य एवं नाटकों में भी कार्य हुआ है, जिनमें श्री राहुल सांकृत्यायन, श्री रविदत्त शुक्ल तथा भिखारी ठाकुर का नाम महत्वपूर्ण है।
भोजपुरी भाषा के अध्ययन के क्षेत्र में श्री ग्रियर्सन ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। इनके अतिरिक्त श्री आर्चर, डा० सुनीतिकुमार चाटुज्र्या, डा० उदय नारायण तिवारी, तथा डा० विश्वनाथ प्रसाद का नाम उल्लेखनीय है ।
आभार: भोजपुरी लोकगाथा – सत्यव्रत सिन्हा जी के लिखल किताब से
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