भोजपुरी लोकगीतों में विभिन्न अवसरों पर विभिन्न गीत गाये जाते हैं जो हमारे जीवन में खुशियों का संचार करते हैं। ग्रामीण लोग सामुदायिक रूप से ये गीत गाते हैं तथा एक दूसरे को खुशियाँ बाटते हैं भोजपुरी लोकगीतों में पूजा, त्यौहार, आदि के अवसर पर जो गीत गाये जाते हैं उन गीतों में उल्लास एवं खुशियों की भावना छिपी रहती है-
सामाजिक जीवन में उल्लास
परिवार ही मानव की प्रथम पाठशाला है यही से शिक्षा प्रारम्भ होती है और परिवार से ही हमारे संस्कार प्रारम्भ होते हैं। इन संस्कारों द्वारा मानव की प्रतिभा और योग्यता का पूर्ण विकास होता हैभोजपुरी लोकगीतों में विभिन्न संस्कारों पर जो गीत गाये जाते हैं उनमें से कुछ छोड़कर सभी गीतों में उल्लास और उछाह देखने को मिलता है।
विवाहित स्त्री के हृदय की सबसे प्रधान कामना होती है पुत्ररत्न की प्राप्ति पुत्र जन्म के अवसर पर सास की खुशियों का ठिकाना नहीं रहता है वे माटी जगाती हैं-
आँगन कुइयाँ खनाइल पीयर माटी हो
अरे जाइ जगावहु कवन राम जनमल नाती हो।
गोतिन और पड़ोसिन सबही के नेवतहु हो,
मोरी साध पुराइल बहुअरि, कोख जुड़ाइल हो।।
पुत्र के जन्म होते ही घर में आनन्द का ‘बधावा’ बजने लगता है। सर्वत्र प्रसन्नता का वातावरण छा जाता है। पुत्र पैदा होने के कारण पिता और माता के आनन्द की सीमा नहीं रहतीसास, जेठानी, ननद आदि रुपये लुटाती है। द्वार पर ‘पौरिया’ (एक विशेष जाति के लोग) आकर नाचते हैं। इनका नाचना शुभ माना जाता है। ये नवागत शिशु को आशीर्वाद देते हैं-
राजा दशरथ जी के बेटा भइल मन रजने लाल
घर अँगना भइले सोर मन रजने लाल।।
पुत्र जन्म के छठवें दिन ‘छठी’ और बरहवें दिन ‘बरही’ नामक उत्सव मनाया जाता है
चिठिया जे लिखेले कवन भइया, देवे के कवन भइया।
भइया आजु मोरे बाबू के छठिया बरहिया, तीनहू जने आइबि।।
बालक के जन्म के प्रथम, तृतीय पंचम या सप्तम वर्ष में अर्थात् विषम वर्षों में मुण्डन संस्कार किया जाता हैं यह संस्कार किसी पवित्र स्थान या नदी के किनारे सम्पादित कराते हैं।
कृष्ण का मुण्डन होना है। बच्चों को तो जल्दी नहीं किन्तु नन्द यशोदा को यह मंगल देखने की जल्दी है। इस समय कृष्ण की बहन विध्यवासिनी का मान बढ़ा है। उन्हें लापर रोपना है। किन्तु हाथ के कँगन तथा पीताम्बर से काम नहीं चलेगा। उन्हें गोकुल का राज चाहिए। नन्द का उछाह ऐसा कि वह सब कुछ देने के लिए तैयार है-
नन्द जसोदा अगुतइलै श्रीकृष्ण पर मोदै,
बिन्ध्याचल का मान भइल बार परीछत।।
लेबौं मैं हाथे क कँगना पीयर पिताम्बर
लेबौं गोकुल कइ राज त बार परीछब।
देबौं मैं हाँथे क कँगना पीयर-पीताम्बर
देबौं गोकुल कई राज त बार परीछहु।
मुण्डन के बाद जनेऊ संस्कार होता है यह धूम-धाम से मनाया जाता है। यह एक बड़ा परोजन (उत्सव) माना जाता है। भोजपुरी समाज में जनेऊ विवाह के समान ही महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है-
चइत बरुआ तेजि चल, बइसाखे पहुँचे ले
मोहि तो से पूछिलेए बरुआ, केकरा घरे जइबे।
मनुष्य के जीवन में विवाह सबसे महत्वपूर्ण तथा आवश्यक संस्कार है। संसार में विवाह, सभ्य, अर्ध-सभ्य तथा असभ्य जातियों में प्रचलित सबसे बड़ा संस्कार हैयह संस्कार अत्यन्त उल्लासपूर्वक मनाया जाता है। एक गीत जिसमें वर और उसके पिता को दशस्थ तथा रामचन्द्र के रूप में देखते हुए भावी दूल्हे के चौड़े माथे पर तिलक की शोभा का चित्रण किया गया है-
केकर ऊँच हो बेदिया त मानिक दीप जरै हो,
केकर ऊँच लिलार तिलकमाल सौहला ही।
दसरथ राम क ऊँच हो बेदिया मानिक दीप जरै हो,
रामचन्द्र ऊँच लिलार तिलक माल सोभोला हो।
विवाह के अवसर पर सभी सगे सम्बन्धी एकत्रित होते है सभी मिलकर दूल्हे के दीर्घायु होने की कामना करते हैं-
साठी क चाउर हालरी दूबरी,
चूमहि चलैली कवन रामा धीयरी,
मथवा चूमहि चूमि देहलीं असीस हो,
जिया हो कवन दुलहे लाख बरीस हो।
विवाह के समय लड़के का श्रृंगार किया जाता है। दूल्हे की पगड़ी बाँधी जाती है, चन्दन लगाया जाता है जिससे वह बहुत सुन्दर लगता है इसे देखकर स्त्रियाँ खुशी से गाती है-
दुलहा के माथे पगिया भल सोभे,
पगिया में कलंगी छिपाये ए दुलहा।
दुलहा के लीलारे चनन भल सोभे,
चनन में रोरी छिपाये ए दुलहा।।
विवाह के अवसर पर चौक पूरा जा रहा है। चौक की उत्साहपूर्ण तैयारी से उनका उल्लास व्यक्त हो रहा है-
गइया क गोबरा मंगाइल अँगना लिपाइब हो
माई आज मोरा राम के बिआह॥
इस प्रकार विभिन्न संस्कार बड़ी उल्लास तथा धूम-धाम से मनाये जाते हैं, ये संस्कार हमें एक दूसरे के समीप लाते हैं जो समाज के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
धार्मिक जीवन में उल्लास-
मनुष्य के जीवन में चार पुरुषार्थ माने जाते हैं- अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष जिनमें धर्म जीवन के बीच का लक्ष्य या मूल्य है भोजपुरी लोकगीतों में पूजा-पाठ, पर्व-त्यौहार तथा अन्य धार्मिक कृत्यों पर अनेक गीत गाये जाते हैं जो हर्षोल्लास से भरे होते हैं भोजपुरी क्षेत्र में किसी मांगलिक कार्य में सर्वप्रथम ‘गणेश जी की पूजा होती है-
प्रथम गणेश पद पंथ त देवता मनाइला हो,
ललना जो मोरे होरिला जनमीहें त मंगल गाइब हो।
प्रत्येक गाँव में कहीं न कहीं शिव जी का मन्दिर होता है जहाँ स्त्री-पुरुष प्रतिदिन शिव पर तिल, अक्षत, चन्दन तथा बेलपत्र चढ़ाते हैं-
सोने के थार तिल चाउर आ वेल पत्रहि,
बहुअरि नित उठी जाती देवालय व देवता मनावेली हो॥
शिवजी के बाद सूर्य-पूजा का उल्लेख अधिक मिलता है। गंगा स्नान और सूर्य को नमस्कार करने से पुण्य होता है।
एक सामान्य नारी की तरह सीता जी भी कहती हैं कि मैं स्नान करने के बाद सूर्य को प्रणाम करती हूँ और रविवार व्रत रहती थी। सूर्य की कृपा ही राम जैसा सुन्दर वर मुझे मिला-
गंगा नहइली सुरुज गोड़ लागेली, बरत करेनी अतवार,
इहे लगन भरि सीता सोचेली, राम अइसन बर पाइ हो।
हमारे जीवन में व्रत तथा त्यौहार की बहुलता है इनके अन्दर ही अन्दर संस्कृति के मूल्यों की धारा बहती हैये हमारे जीवन को सुखी और उज्जवल बनाते है। भोजपुरी स्त्रियाँ सोलह श्रृंगार करके पूजा करती हैं तथा माता से प्रार्थना करती है-
आन्हरा के आँखि दीह, कोढ़िया के काया निरधन के धन बहूत,
बझिनी तिरियवा के पूत भल दीह, हँसत खेलत घर जाई।।
धर्म और व्रत का घनिष्ठ सम्बन्ध है। मनुष्य कोई कर्म करता है उसका फल उसे जरूर. भोगना पड़ता है। इसीलिए कर्म को व्रत भी कहते हैं। व्रत के निमित्त शरीर को जितना ही कष्ट दिया जाए, उतना ही अच्छा माना जाता है। वह श्रेष्ठ फलों को देने वाला माना जाता है-
भउजी कवन कइलु व्रत नेम, व राम जी के पावेलू हो,
जेठ के कइलो एकादशी, बइसाख के सिरतिया नु हो।।
भोजपुरी स्त्रियाँ रामनवमी, एकादशी, नागपंचमी, गणेश चतुर्थी, जन्माष्टमी, तीज, ऋषि पंचमी, अन्नत चतुर्दशी, जिउतिया आदि का व्रत करती है वे अपने सिन्दूर को अचल रखने के लिए धर्म का पालन करने के लिए तैयार रहती है-
कवन मासे लागेला सिव के सिरतिया,
कवन मासे ना, लागेला भगीरथिया।
फागुन मासे लागेला सिव के सिरतिया,
सवनवा मासे ना लागेला, भगीरथिया,
काई लागिना भूखेली भगीरथिया।
सेनुर लागि भूखीले सिव के सिरतिया,
भतीजवा लागिना, भूखीले भगीरथिया।
भोजपुरी लोकगीतों में कृष्ण का राधा और गोपियों के साथ तथा राम का चारों भाइयो के साथ अवध में होली खेलने का वर्णन मिलता है। ये गीत उल्लास और तन्मयता के साथ गाये जाते हैं-
ब्रज में हरि होरी मचाई।
इततें निकली सुधर राधिका, उतते कुवर कन्हाई,
खेलत फाग परस्पर हिलितमिली, शोभा बरनी ना जाई,
घरे-घरे बाजत बधाई, ब्रज में हरि होरी मचाई।
होरी खेलें रघुबीरा अवध में,
केकरा हाथ ढोलक भल सोहे, केकरा हाथे मजीरा,
राम के हाथे ढोलक भल सोहे, लछुमन हाथे मजीरा,
केकरा हाथे कनक पिचुकारी, केकरा हाथ अबीरा,
भरत के हाथे कनक पिचुकारी, शत्रुघ्न हाथे अबीरा।।
भोजपुरी लोकगीतों में शिव, राम, कृष्ण, अवतारवाद तथा शेषनाग से सम्बन्धित गीत गाये जाते हैं। भगवान शिव भारत के लोक-देवता है। भोजपुरी क्षेत्र के लोगों का शंकर में अटूट विश्वास और आस्था है। एक गीत जिसमें कौशल्या ने राम के लिए भगवान शिव से मनौती की थी उन्हीं की कृपा से राम जैसा पुत्र उन्हें मिला। वे अत्यन्त उल्लास के साथ उनकी पूजा करती है-
शिव के चनन लागल केवाड़, कसइलिया केरा चउकठ
ताहितर ठाढ़ भइली कौसिला रानी, मनसा सिद्धि भइली हो।
ए सिव जाहुँ मोरे पूजीहें मनसवा, काँवरिया जल चढ़ाइबि हो,
नव महीना नव दिन गइले, दसवें जनम् मइले ॥
लोक का विश्वास है कि शिव-पार्वती की पूजा से सुन्दर वर मिलता है। सीता भी विवाह से पूर्व जब भवानी की पूजा करने जाती है वहाँ ही राम लक्ष्मण मिलते हैं-
राजा जनक एक बगिया लगावे, सीता जाती पूजे भवानी,
तहँवा दुनो भइया भंवरा किरावें, पूछे सीतली रानी बात हो।।
भोजपुरी लोकगीतों में राम का चित्रण बालक, दुल्हा, भगवान और ईश्वर के रूप में मिलता है। विवाह के गीतों में दुल्हे के लिए राम, दुल्हन के लिए सीता, सास के लिए कौशल्या तथा देवर के लिए लक्ष्मण नाम आता है लोगों की कामना रहती है कि इसी प्रकार के आदर्श पात्र वाला परिवार हमें मिले-
पहिले मगँन सीता धुरुमेली, जाँहु विधि पुरई सीता,
माँगेली अजोधा आइसन राज, सरजू जी के दरसन।
दूसरे मँगन सीता माँगेली, जाहुँ विधि पुरई सीता,
माँगेली कोसिला अइसन सासु, ससुर राजा दशरथ।
तीसर मँगन सीता माँगेली, जाहुँ विधि पुरई सीता,
माँगेली लछिमन अइसन देवर, रमइया उस पुरुख।।
भोजपुरी लोकगीतों में भगवान राम के विविध प्रसंगों का चित्रण हुआ है जो लोक रामायण है। ऐसे गीतों को गाकर जनता अपने भाग्य को सराहती हुई अत्यन्त उल्लास, उमंग तथा भक्ति से फाग गाते हैं-
प्रण एहि मेरो एक राम से खेलबि होरी।
जाके सिर मुकुट बिराजे साँवर गोर दूनो जोरी।।
भाल बिसाल, तिलक बीच सोभे, सोभा सिन्धु खरोरी।
प्रण एहि मेरो एक, राम से खेलबि होरी।
जाके कर धनुष विराजे, फिरत अवध के खोरी।
बाल रूप अनूप बनल बा, ओढ़त पीत पटोरी।
इस प्रकार ग्रामीण जनता विभिन्न पर्यों, धार्मिक कार्यों आदि पर भक्ति में लीन होकर जो गीत गाते हैं वे हर्षोल्लास से भरे होते हैं। इन गीतों को गाते समय ग्रामीण जनता अपने दुःखों कष्टों को भूला कर, उसमें तल्लीन होकर, भक्ति में डूब जाते हैं।
आर्थिक जीवन में उल्लास-
भोजपुरी लोकगीतों में हमारे आर्थिक जीवन का भी चित्रण मिलता है। मानव के चार पुरुषार्थ में एक ‘अर्थ’ भी है। अर्थ का प्रारम्भ भोजन’ से ‘सम्पत्ति’ तक पहुँचता है। कहा भी गया है–
पाँच कवर भीतर, तब देवता पितर।
भोजपुरी लोकगीतों में बार-बार सोने के गडुआ, गंगाजल पानी, सोने के थारी में जेवना परोसों’ पाँच-पाँच पनवा के बिरवा लगवली आदि का उल्लेख मिलता है। जिनके घर में अनाज था गाँठ में दस रुपये भी हो, वह व्यक्ति सुखी माना जाता है-
दस मन अन, दस रुपया गाँठी,
अइठत चलसु, जइसे कोल्हू के जाठी।।
हमेशा हम सुखी जीवन की कामना करते हैं किसी को आशीर्वाद देते समय हम धन कमाने, दूध से नहाने और दूध से कुल्ला करने का देते हैं-
दूधे नहा, दूधे कुला करा।
दूधो नहाओ पूतो फलो।
भोजपुरी में जीविका के साधनों में खेती को उत्तम, व्यापार को मध्यम, नौकरी को अधम तथा भीख माँगने को निकृष्ट माना है-
उत्तम खेती, मध्यम बान
अधम चाकरी, भीखि निदान।।
भारत कृषि प्रधान देश है। खेती पर इसकी अर्थव्यवस्था निर्भर करती है क्योंकि बिना अन्न के, भोजन के, हम जीवित नहीं रह सकते। धरती को माँ माना जाता है। क्योंकि जैसे माँ अपने दूध को पिलाकर हमें स्वस्थ बनाती है वैसे ही धरती भी हमें अन्न खिलाती है-
धरती आ महतारी बराबर ह॥
जिसके पास जितनी अधिक जमीन होती है वह उतना ही धनी माना जाता है ।
जेकरा बिगहा पचास ओकरा कटवनी के आस।।
भोजपुरी क्षेत्र में धान, गेहूँ दाल, चना आदि की खेती की जाती है चने की खेती अच्छी मानी जाती है क्योंकि चने से हम कचौरी, दाल, बेसन आदि बनाते हैं
एहि रहिला के पूरि कचौरी, एहि रहिला के दालि,
एहि रहिला के कैली खिसरा, बहुत मोटैले गाल।
भोजपुरी लोग पशु भी पालते है ये बैल, गाय, भैस, बकरी पालते हैं। कुछ लोग वैभव एवं प्रतिष्ठा के लिए हाथी घोड़े भी रखते हैं। कुछ लोग गाय को लक्ष्मी तथा बैल को महादेव के रूप में मानते हैं-
गाई हई लक्ष्मी, बरध महादेव।
भोजपुरी क्षेत्र में कुछ जातियाँ कारीगरी के काम करती है, उन्हीं से अपनी जीविका चलाते हैं। इसमें बढ़ई लोहार, सोनार, कुम्हार, हलवाई रंगरेज, चूड़िहार आदि मुख्य है। एक गीत जिसमें कोई स्त्री सोनार से गहना बनाने के लिए बार-बार आग्रह करती है-
मोरा पिछुअरवा सोनरवा के छोकड़वा रामा।
हरि हरि रइया रइया जोड़ेला कंगनवा ए हरी॥
गाँव में तेल निकालने, कपड़ा बुनने आदि के उद्योग धन्धे होते हैं। इन कार्यों को करते समय लोग गुनगुनाते गाते रहते हैं। जिससे काम में मन लगा रहता है तथा जल्दी समय बीत जाता है।
भोजपुरी लोकगीतों में सोने-चाँदी के अनेक गहनों की गणना होती है इनमें भोजपुरी लोकजीवन का जो चित्रण मिलता है वह बड़ा सम्पन्न प्रतीत होता है।
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