छन्द शब्द के उत्पत्ति संस्कृत के ‘छन्दस’ आ ‘छन्दक’ दू गो शब्दन से भइल बा। छन्दक के अर्थ हाथ के एगो विशेष आभूषण होला जबकि छन्दस वेद के कहल जाला।
छन्दसे के आधार पर वैदिक भाषा के नाम छान्दस संस्कृत पड़ल।अमरकोश में छन्द शब्द के अर्थ ‘मन के बात’ लिखल बा। ओही में छंद के अर्थ ‘वश’ आइल बा बाकिर बाद में अमर कोशकार छन्दस के प्रयोग पद्य विधान के अर्थ में कइले बाड़न।
मात्रिक छन्द के उदभव आ विकास पर डॉ शिवनन्दन प्रसाद द्वारा रचित डी.लिट् के शोध प्रबन्ध बा।डॉ प्रसाद अपने मेहनत आ शोधात्मक दृष्टि के बल पर मात्रिक छन्द पर एतिहासिक काम कइले बानी। एहिजा इहो स्पष्ट कइल जरूरी बा कि वार्णिक छन्द के प्रयोग संस्कृत साहित्य के मुख्य विधा रहे जबकि मात्रिक छन्द लोक में प्रचलित रहे आ लोकगीतन में प्रयुक्त प्रमुख छन्द बा।दूनों प्रकार के छन्द कहीं भी प्रयोग हो सकेला आ प्रयोग भइल भी बा।
कवि के ई अधिकार बा कि ऊ स्वयं छन्द के चयन करें आ जवन अधिक उपयुक्त लागे ओही छन्द में कविता भा गीत के रचना करे।
अनेक नामी कवि लोग कवनो छन्द विशेष के संरक्षण देके ओकर प्रयोग अपने काव्य में बहुतायत से कइले बा। जइसे पाणिनि के प्रिय छन्द उपजाति रहे त कालिदास के मंदाक्रांता आ भारवि के वंशस्थ त भवभूति के शिखरिणी प्रिय छन्द रहे।
छन्दन के पारम्परिक शास्त्रीय विवेचन से स्पष्ट होला कि साहित्य रचना के प्रारंभिक काल से ही छन्द के दू भाग – वार्णिक आ मात्रिक में विभाजित करे के प्रवृति रहल बा। भिन्न-भिन्न विद्वानन आ काल में एकर नाम अलग-अलग मिलेला बाकिर विभाजन के आधार वर्ण आ मात्रा दू गो रहल बा।
आचार्य हेमचन्द अपना ग्रन्थ ‘छंदानुशासन’ में छन्द के भाषा के आधार पर भी विभाजित कइले बाड़न।उत्सव अथवा संस्कार के अवसर पर गीत में मात्रिक छन्द के एगो स्वतंत्र श्रेणी निर्धारित कइल बा।हेमचन्द्र के पहिले जयकीर्ति भी अपना ग्रन्थ ‘छंदानुशासन’ में छन्द विभाजन में भाषा के आधार मनले बाड़न।
छन्द शास्त्र के सिद्धांत आ प्राचीन पारम्परिक साहित्य आ लोक साहित्य में मात्रिक छन्द के प्रासंगिकता पर सम्यक विचार पूरा हो गइल।साहित्य के दू गो धारा वैदिक युग से चलल आइल बा। ओकरा पहिले निसंदेह लौकिक साहित्य रहे,शिष्ट ना।मात्रिक छन्द पर लौकिक साहित्य के एकाधिकार हो गइल आ वार्णिक पर शिष्ट काव्य। वार्णिक के अपेक्षा मात्रिक छन्द लिखे,पढ़े आ समझे में आसान होला एही से लोक गीतकार मात्रिक छन्द के अपनावल लोग।
हिन्दी वीरगाथा काल मे वीरोचित रचना खातिर ‘वीर छन्द’ के प्रयोग होत रहे। जगनिक के आल्हा खण्ड वीर छन्द में रचल महाकाव्य बा। लोक साहित्य में वीर छन्द के बिरहा छन्द भी कहल जाला।
सूरदास आ सुंदर दास जइसन महान कवि लोग अपना कविता में वीर छन्द के प्रयोग कइले बा।वीर छन्दन के गीतन के यति के मामूली फेर बदल से बिरहा के रूप में गाँवल जाला। बिरहा छन्द में प्रत्येक चरण में दू जगह यति होला। पहिला सोलह अक्षर पर आ दूसर दस अक्षर पर आ अंत में दोहा छन्द जइसन एगो लघु आ दीर्घ होला। डॉ कृष्णदेव उपाध्याय बिरहा गीत के अहीर जाति के जातीय गीत के रूप में स्वीकार कइले बानी।उहाँ के बिरहा के राष्ट्रीय गीत के स्थान देवे के पक्ष में रहीं। उपाध्याय जी के अनुसार विरहा के दू गो श्रेणी बा- एगो लघु आ दूसरका वृहद।लघु बिरहा के चरकड़िया भी कहल जाला।काहे कि एह में चार गो कड़ी होला।चरकड़िया बिरहा में पहिला आ तीसरी कड़ी में सोलह अक्षर आ दुसरका आ चउथका कड़ी में दस अक्षर सामान्य रूप से होला।
बिरहा गीत पर डॉ जार्ज ग्रियर्सन शोध कइले रहन।उनका अनुसार से प्रथम चरण में सोलह,दुसरका में ग्यारह तिसरका में सोलह आ चउथा में बारह अक्षर होला।
उदाहरण:-
“बने बने गइया चरावेला कन्हइया,
घरे घरे जोरेला पिरीति।
अनका मउगी के सान मारि अइले,
आखिर तर्क जात अहीर।।”
भोजपुरी लोकगीतन में छन्द
पूरबी छन्द :- भोजपुरी के सबसे लोकप्रिय आ श्रृंगार रस भरल छन्द ह।पूरबी लोकगीत आ छन्द के जन्मदाता छपरा जिला के प्रसिद्ध लोकगीतकार,कवि आ गवइया महेंदर मिसिर के मानल जाला।पूरबी गीत लोकगीत के एगो सशक्त विधा ह।
“नेहवा लगा के दुखवा दे गइले रे परदेशी सइयाँ
अपने त गइले पापी,लिखियो ना भेजे पाती
अइसे निठुर श्याम हो गइले रे परदेशी सइयाँ।”
झूमर :- पूर्वी के तर्ज पर झूमरो एगो श्रृंगारिक लोकगीत के विधा ह।झूमर में संयोग आ वियोग श्रृंगार के अदभुत संयोजन होला आ एकर शब्द में निराली छटा होला काहे कि ओइसने शब्द राखल जाला जवना से झूमर गावे में तुक आ गति में कवनो अंतर ना होखे।
“तोहरी सुरतिया चनरमा के जोती,
सागर में सीपी त सीपी में मोती,
लागे,रयन उजियारी हो गोरी तोरे
माथे के बिंदिया रे।
लूटी गइल जियरा अनारी हो गोरी तोरे-
माथे के बिंदिया रे।”
सोहर :- सोहर के सोहिलो आ मंगलगीत भी कहल जाला काहे कि पुत्र जन्म आ बियाह के अवसर मंगलदायक होला।एही से दूनो अवसर पर मंगलगीत गाँवल जाला। गीत के उदाहरण –
“बाजेला आनन्द बधाव,महल उठे सोहर हो ..आ
गावहू ए सखी ए सखी गाके सुनावहु हो।
सभ सखी मिली जुली गावहू,आज मंगल गीत हो।।”
फगुआ :- बसन्त ऋतु में करीब डेढ़ महीना फगुआ के लहार रहेला।फगुआ गीत प्रायः फगुआ छन्द में होला।फगुआ गीतन के पाँच गो विधा बा – धमार,झुमटा, होरी,घाटों आ जोगीड़ा।फगुआ गीत सामान्य रूप से छोट-छोट होला बाकिर गीत के बोल में उतार चढ़ाव होला जवना के ढोल मंजीरा के साथ गीत के बोल के बार-बार दोहरा के गाँवल जाला।
धमार –
“हे गोरी,तोहार बड़ी-बड़ी अँखिया
नैना कजरवा सोहेला।”
झुमटा –
“एही जगहिया के ब्रम्हा
ब्रह्मा होखी ना सहाय।”
होरी –
” होरी खेलत रघुवीरा अवध में,होरी खेलत
केकरा हाथे कनक पिचकारी,केकरा हाथे अबीरा..।”
जोगीड़ा – ई एगो व्यंग्यात्मक हास्य रस के विधा ह। जोगीड़ा होली के एक दू दिन आगे पीछे प्रायः रात में गाँवल जाला जोगीड़ा ओही के संबंध में कहल जाला जेकरा से हँसी मजाक करे के रिश्ता रहेला। जइसे कि भौजाई आ साली। जोगीड़ा खाली दू पंक्ति के होला।
” भइया खाले भांग धतूरा,भउजी
खाली पूड़ी
रोड पर चलेली त चल जाला छुरी।
जोगीड़ा सारा रा रा मजे में धीरे धीरे ”
घाटों- होली आ ओकरा बाद चइत मास मे घाटों आ चइता गावे के रिवाज ह।घाटों गीत सतुआन के बेरा भी गाँवल जाला।चइता गीत के विशेषता ह कि हर पंक्ति के पहिले राम शब्द अंत मे ‘हो राम’ चाहे ‘हे राम’ जोड़ के गाँवल जाला।चइता गीत के कवनो छन्द विशेष ना ह एही से गीत के नाम पर एकरे छन्द के नाम चइता पड़ गइल बा।
“बीती गइलें असो के फगुनवां
हो रामा,तोरे बिनु बालम।
चढ़ते चइत जइसे लागि गइल अगिया,
बेरि-बेरि केतना बुझावे दुनों अँखिया,
बैरी पापी हो गइले पवनवां
हो रामा,तोरे बिनु बालम।”
कजरी :- कजरी भा कजली अपने मे लोकधुन के रानी कहल जाला, जेकरा के बरसात यानी पावस ऋतु में गाँवल जाला।मिर्जापुर आ बनारस में कजरी के नइहर बा।उहाँ के कजरी बहुत प्रचलित रहे। कजरी के छन्द जोगती ह।एह छन्द के प्रयोग छन्दोंपनिषद में कइल गइल बा।जवन शास्त्रीय संगीतो में प्रयोग होला बाकिर सामान्य भाषा में एह गीत के छन्द के नाम कजरी ह।
“घिरि आइल रे बदरिया सावन की
सावन की मनभावन की,घिरि आइल रे बदरिया सावन की।
रिमझिम रिमझिम बुनवा बरसे
आजु अवधि पिया आवन की
घिरि आइल रे बदरिया सावन की..।”
बिदेसिया छन्द :- भोजपुरी साहित्य में भिखारी ठाकुर एगो प्रतिभाशाली लोककलाकार, जनकवि रहलें।उनके रचना, नाटक,कविता,हास्य व्यंग्य के बहुलता बा।समाज में फइलल रीति कुरीति से पीड़ित भिखारी ठाकुर समाज सुधार के बीड़ा उठवले रहीं।उनकर कुल्हि रचना समाज सुधारक रहे।भोजपुरी साहित्य में विदेसिया शैली, छन्द, लय आ धुन के निर्माता भिखारी ठाकुर रहलें। भारतीय लोक साहित्य मे विदेसिया संगीत भोजपुरी लोक साहित्य के एगो बड़हन विशेषता ह। विदेसिया विधा में विदेसिये छन्द के प्रयोग होत आइल बा।बिदेसिया छन्द वास्तव में वार्णिक छन्द ह आ ई सब घनाक्षरी में लिखल जाला भा बा।घनाक्षरी छन्द में 31 वर्ण होला।
” दिनवां न बीते रामा तोरी इन्तजारिया में,
रतिया नयनवा ना नींद रे बिदेसिया।
घरी राति गइली राम पिछली पहरवा से,
लहरे करेजवा हमार रे बिदेसिया।”
(सन्दर्भ ग्रन्थ – भोजपुरी लोकगीतन में गीति तत्व)
– इ आलेख राजेश भोजपुरिया जी के फसेबूक वाल से लिहल बा।
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