भोजपुरी व्याकरण के मुख्य तीन भाग हैं, वर्ण विचार, शब्दविचार और वाक्यविचार। कोई-कोई विद्वान चिह्नविचार और छन्दविचार को भी व्याकरण के अन्तर्गत मानते हैं। भोजपरी के इस संक्षिप्त व्याकरण में चिह्न-विचार और छन्दविचार पर बहुत कम विवेचन किया गया है।
वर्ण विचार
वर्ण के दो भेद हैं-स्वर और व्यंजन ।
भोजपुरी में कुल ११ स्वर हैं, जैसे, अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ ।
जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है उन्हें व्यंजन वर्ण कहते हैं।
भोजपुरी में व्यंजन ३३ हैं। जैसे-
क, ख, ग, घ, ङ ————- कवर्ग ।
च, छ, ज, झ, ञ ———— चवर्ग ।
ट, ठ, ड, ढ, ण ( ण ) —– टवर्ग।
त, थ, द, ध, न ———— तवर्ग ।
प, फ, व, भ, म ———– पवर्ग।
य, र, ल, व, ————- अन्तस्थ ।
श, ष, स, ह, ————- ऊष्म ।
उदाहरण जैसे, कउआ, खरहा, गमला, घड़ी, कंस, चमड़ा, छाता, जवड़ा, झगरा, मंझा ( मन्झा ) टाट, ठग, ठकना, पंडित, तबला, धान, दतुअन, धान, पकवान, फाटक, वकुला, भंटा, मलमल, यमदूत, रइतो, लावा, विद्या, शंकर, वरखा, ( वर्षा ), सांप हलुआ इत्यादि।
उच्चारण के विचार से भोजपुरी में तीन वर्ग ( स्वर ) और होते हैं।
१. अनुस्वार – जैसे, कंस में ‘क’ के ऊपर अनुस्वार है।
२. चन्द्रविन्दु – जैसे, बाँस में ‘बा’ के ऊपर चन्द्रविन्दु है।
३. विसर्ग – जैसे, स्वत: में त के आगे विसर्ग है।
उदाहरण-
कृष्ण जी कंस के मरलन।
नाक में दूगो छेद होला।
बाँस में कहीं कहीं फूल लागेला।
हनुमान जी के हाँक सुनि के राक्षस सब डरिगइले।
सब केहू का स्वत: धर्म के काम करेके चाहीं।
शैवलोग ओ३म् नमः शिवाय के बहुत बड़ा मंत्र मानेला।
भोजपुरी में ‘य’ और ‘ण’ के बहुत कम प्रयोग मिलते हैं। ऋ का उच्चारण रि के समान होता है। ‘ष’ का उच्चारण ‘ख’ के समान होता है। ‘श’ का उच्चारण कहीं-कहीं ‘स’ के समान होता है। उदाहरण-
हिन्दी | भोजपुरी |
यव | जव |
ऋषि | रिखि, रिसी |
रामायण | रामायन, रमायन |
वर्षा | बर्खा या बरखा। |
देश | देस |
पहले भोजपुरी कैथी लिपि में लिखी जाती थी किन्तु अब इसका लेखन-प्रकाशन देवनागरी लिपि में हो रहा है। मगही भाषा भी कैथी में लिखी जाती थी। मैथिली की अपनी लिपि ‘मैथिली’ है जो बंगला से मिलती है।
शब्द और वाक्य
जो कुछ बोला, सुना, पढ़ा और लिखा जाय उसे शब्द कहते हैं । शब्द अक्षरों के समूह से बनते हैं।
जैसे-गाय, ग्राम, अमरूद, लीची, चाउर, दालि आदि शब्द अक्षरों के समूह से बने हैं।
शब्द दो प्रकार के होते हैं-(१) सार्थक और (२) निरर्थक ।
जिन शब्दों का अर्थ स्पष्ट समझ में आता है उन्हें सार्थक और जिनका अर्थ स्पष्टतः समझ में नहीं पाता, उन्हें निरर्थक शब्द कहते हैं। उदाहरण-
हिन्दी | भोजपुरी |
लोटा | लोटा |
पानी | पानी |
दूध | दुध |
मट्ठा, मठा | माठा |
चावल | चाउर |
फुलौरा | फुलउरा, फुलवरा |
निरर्थक शब्दों के उदाहरण-जैसे, आयं, बांय, सांय इत्यादि।
सार्थक शब्दों के समूह को वाक्य कहते हैं,
जैसे-
रामनाथ पूजा करत बाड़े, भूतनाथ पटना गलन ।
उपर्युक्त वाक्यों के अर्थ स्पष्ट हैं, इन्हें सार्थक वाक्य कहते हैं । सार्थक शब्दों के 5 भेद होते हैं
-
- संज्ञा
- सर्वनाम
- विशेषण
- क्रिया
- क्रिया-विशेषण (अव्यय)
संज्ञा
किसी वस्तु के नाम को संज्ञा कहते हैं, जैसे-राम, श्याम, मेला, चानी, हाथी, लोटा, थारी, घोड़ा, सुख, डर, दया ग्रादि । इनमें राम, श्याम, कृष्ण, गंगा किसी विशेष वस्तु के नाम हैं. हाथी घोड़ा, ग्रादि किसी जाति के बोधक हैं, मेला, स्कूल प्रादि प्रादमियों के समूह का बोध कराते हैं, दया, डर, सुख प्रादि मानसिक भावों का ज्ञान कराते हैं, लोटा, थारी आदि द्रव्य के वोधक हैं । इन सब शब्दों को संज्ञा कहते हैं ।
संज्ञा के पांच भेद हैं-व्यक्तिवाचक, जातिवाचक, द्रव्यवाचक, समुहवाचक और भाववाचक ।
व्यक्तिवाचक संज्ञा
किसी विशेष मनुष्य, स्थान, वस्तु का बोध करानेवाले शब्दों को व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते हैं। जैसे-पं० जवाहरलाल भारत के प्रधान मंत्री रहलन, बिहार के मुख्य मंत्री श्रीकृष्ण सिंह रहली, गंगा जी के जल बहुत मीठ होला। हरिद्वार बड़ाभारी तीर्थ स्थान है। पटना बिहार के रजधानी है। इन उपर्युक्त वाक्यों में पं. जवाहरलाल, श्रीकृष्ण सिंह, गंगाजी पटना, विशेष व्यक्ति और स्थान के बोधक हैं, अतएव उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहेंगे।
जातिवाचक संज्ञा
जिस संज्ञा से जातिभर का बोध होता है उसे जातिवाचक संज्ञा कहते हैं, जैसे, पुस्तक आलमारी में बा, फेड़ पर कउमा बइठल बा, पहाड़ पर चढ़े में कष्ट होला । उपर्युक्त वाक्यों में फड़, पहाड़, कउया, पुस्तक जातिभर का बोध कराते हैं इसलिए ये जातिवाचक संज्ञा कहलायेंगे।
द्रव्यवाचक संज्ञा
जिस संज्ञा से किसी द्रव्य का ज्ञान होता है उसे द्रव्यवाचक संज्ञा कहते हैं, जैसे बाजार में सोना बहुत महंग वा, नदी के पानी साफ बा, चानी ग्राजुकाल पौने तीन रुपए भरी मिलत बा । ऊपर के व क्यों में सोना. चानी और पानी द्रव्यवाचक हैं । ये द्रव्यवाचक संज्ञा कहलाते हैं।
समूहवाचक संज्ञा
जिस संज्ञा से वस्तूयों के समूह का ज्ञान होता है उसे समहवाचक संज्ञा कहते हैं, जैसे-ग्राजु किसान सभा होई. स्कल में परीक्षा खातिर वहत भीड़ बा, सेवा-समिति में प्रापन नाव लिखावे के चाही। ऊपर के वाक्यों में सभा, स्कल और समिति समूह बोधक संज्ञा हैं।
भाववाचक संज्ञा
जिस संज्ञा से किसी मानसिक भाव का बोध होता है, उसे भाववाचक संज्ञा कहते हैं, जैसे, रानाप्रताप में बहुत जोस रहे, विचारवान का लड़ाई झगड़ा ना करेके चाहीं, वाघ देखि के डर होला। ऊपर के वाक्यों में डर, जोस, लड़ाई अादि शब्द भाव बतलाने वाले संज्ञा हैं । अत: ये भाववाचक संज्ञा कहलाते हैं । भाववाचक संज्ञा किसी दशा, अवस्था, भाव गुण प्रादि का ज्ञान कराते हैं।
पं० रासविहारी राय शर्मा जी के लिखल किताब भोजपुरी व्याकरण से
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