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पकडुआ बिआह

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भोजपुरी लघु कथा पकडुआ बिआह

भोजपुरी लघु कथा पकडुआ बिआह
भोजपुरी लघु कथा पकडुआ बिआह
“राजा तोहरा रास्ता से हट जाएब, गाडी के निचे जा के कट जाएब “- चिठ्ठी के पहिले लाइन में इहे लिखल रहे. संजय चिठ्ठी पढ्त रहस. आजूए डाक पिउन उनका इ चिट्ठी दे गईल रहे. चिठ्ठी स्पेशल रहे काहे कि उनकर मेहरारू ‘रूपा’ लिखल रहे. चिठ्ठी पढ़त खा संजय के चेहरा पर ख़ुशी आ परेशानी के मिलल- जुलल भाव रहे . चिट्ठी में आगे लिखल रहे – ‘रउरा साफ़ साफ़ बतलायीं की रउरा हमरा के आपन पत्नी मानत बानी की ना? आजू इहे मान- मनौवल में साल भर से बेसी हो गईल रहे, संजय के रूपा से बिआह भईला के बाद से. संजय बिआह के बाद से ना त आपन मेहरारू के अपना घरे विदा करा के ले के अईलन, ना कबो आपन ससुरारी गइलन. रूपा के आँख संजय के इंतजार करत, राह जोहत जोहत पथरा गईल रहे. एही से आपन एह चिठ्ठी में लिख देली की इ हमार आखिरी चिठ्ठी ह, जदी हमरा अपनावे के बा त, अपना लिही, ना त हमरा के बता दी, हमहीं राउर रास्ता से हट जाएब.

संजय चिठ्ठी पढ़त पढ्त अपना संगे बीतल ओह घटना के इयाद करे लगलें. जोगिया गाँव के सरकारी हाई स्कूल में संजय एगो क्लर्क रहलें. हर शनिचर के स्कूल के छुटी के बाद संजय आपन गाँव बडकागांव चल जास आ फेर सोमार के भोरभोरे स्कूल में आ जास आ उहे स्कूल होस्टल के एक गो कमरा में भर सप्ताह रहस. इहे रूटीन रहे उनकर दू साल से. स्कूल से उनकर घर के राहता त सड़क से 10 किलोमीटर रहे बाकिर, खेते खेतानी गईला पर, कोना कोनी के चलते 5-6 किलो मीटर में फ़रिया जाए.

संजय के सोझा उनका साथे बीतल एक एक घटना उतरे लागल – पिछला साल एहे गरमी के सबेरे के पहर के स्कूल रहे, शनिचर के दिन रहे, स्कूल में छुट्टी भइला के बाद संजय भरल दुपहरिया में, मुड़ी पर मुरेठा बन्हले, हाथ में छाता आ उज्जर कॉटन के कुरता पैजामा पहिरले आपन गाँव जाए ला खेते खेतानी के खुडपिडिहा राहता धइले चल देले. एकाध किलो मीटर के बाद एक एगो चवर पार करे के रहे, उहे चौर में सात आठ जाना संजय के पकड़ लेले.

ओहि लोगन में से एक जाने एगो देसी कट्टा तानत संजय से डेरवावत अंदाज में कहलस – देख! रे संजयइया, एक दम चुपचाप हमनी साथे चल चल, भलेआदमी लेखा, ना त जादे अलबलइबे, त फेर इ थ्री नौट थ्री के गोली तोरा मुड़ी के गुद्दी में टगेल देम. संजय के हाल त पूछहीं लायक ना रहे, करिए का सकत रहलें. ओह अपहरणकर्ता लोगन के सामने खूब रोवलें, रीरीअइले, गोड दाढ़ी धइले बाकिर ओह लोग पर कवनो असर ना रहे. अपहरणकर्ता में से एगो रोबइल रहे, उ संजय से कहलस – देख ! तोहरा के फिरौती ला ना हमनी के तोहरा के एही ला पकडले बानी सन की तोहर बिआह भगत जी के बेटी से होखी. एही ला तोहरा के इहाँ पकड़ के लावल गईल बा. 22-23 साल के जवान बाड़े, काहे रोवत बाड़े? संजय बिआह के बात सुन के सन्न हो गइले, आ कहे लगले – हमार बिआह घर वाला के मर्जी से होई, रउरा लोग हमरा के छोड़ दी !

हेतना सुन्नर, जवान बाड़े, हे उमिर के लइलका बिआह के नाम पर रोवेला ला का ? अरे बुडबक, तोहर बीआह होखत बा, बिआह, काहे रोअत बाड़े, सुन बबूओ ! देख तोहर बिआह हमनियो के जवन करावे जात बानी सन उहो जात में करायेब आ लड़किये से होखी, जादे फिकिर मत मत, इहो लड़की (रूपा) सुन्नर बिया आ बीए, बीएड पास बिया, तोहरा से जादे पढले बिया, आ बुझले नु, आ हाँ, सुन ! हई धर धोती कुरता, नहा के पहिर ले, जादे तगड बगड़ मत कर, – एगो अपहरणकर्ता में से एक जाने बोललें.

जान के डर बड़का डर होला, हार पाछ के संजय अपहरणकर्तालोगन के बात मानत नहा धोआ के धोती कुरता पहिर लेलें, डेराइल डेराइल विआह के करे खातिर आ गइले. बन्दुक के बल पर उनकर बिआह हो गईल. घंटा भर में बिआह आ ओही दिने सोहाग रात. पकडुआ बिआह के नियम के मोताबिक. आपन कनिया के देखते संजय भकुआ गईले, होश पाखता हो गईल, इ का ? आरे तू! आरे तोहरे से त हमार बिआह लागल रहे, फोटो हमरा घरे आईल रहे आ देवघर के मंदिर में तोहरे के त देखे खातिर हमहमार पूरा परिवार गईल रहे.

हं जी, ह , हम उहे रूपा हई. रउरा आ राउर पूरा खानदान हमरा के देखलस, चला दे देखलस, साड़ी पहिरा के देखलस, सलवार समीज पहिरा के देखलस, सवाल कइलस, जबाब देनी, राउर फूफा हमरा से अंग्रेजी में एप्लीकेशन लिखवलें प्रिंसिपल के नाम से, उहो लिखनी. गरीबी के चलते हमार बाबूजी हमरा जइसन बीए-बीएड पास लड़की के बिआह एगो मेट्रिक पास लइक के करे के तैयार हो गइले .

रूपा आगे कहलीं – हं जी, हमार पढाई, सुन्दरता सभ रउरा घर के लोगन के पसन् पड़ गईल, बाकिर जवान दहेज़ के मांग रहे ओकरा में हमार बाबूजी पिछुआ गइनी. हमर बाबूजी राउर पापा के, फूफाजीके, मौसा जी के, रउरा गाँव के मुखिया सरपंच ना जानी केकरा लगे जा के गिडगिडइनि, हाथ जोड़नी, सभे उनका के दोल्हा पाती खेलाववलें., अंत में उनकर उमेद टूट गईल, बाबु जी टूट गईले, फेर का रहे हार पाछ के एह इलाका के चलन “पकडुआ बिआह” के सहारा लेले.

हमहूँ एह राति के रउआ से कर जोरी कहत बानी की – जदी रउआ मन से, दिल से, हमरा स्वीकार करत बा त ठीक बा, ना त कवनो बात ना, सेनुर लाग गईल, जिनगी रउरे नावे काट लेम, हम त ओही दिन देवघर में रउरा के आपन पति मान लेले रही जब रउरा हमरा के एक नज़र देखलें रही,.

एही बीचे संजय के बड़कागाँव में हल्ला हो गईल की संजइया के पकडुआ बिआह हो गईल, एक सप्ताह बाद संजय आपन गाँव लवटलें, फेर नौकरी पर, बाकिर साल भर से इहे उधेरबुन में लागल रहलें की घर वाला के बात मानी की, रूपा के आपन पत्नी स्वीकार करीं .
(संतोष पटेल)

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