पेड़ कटाईल धुंआधार, धुँआ-धक्कड़ भइल अन्हार,
जड़ में जहर घोलाइल जाता, सुतल मनई अब त जाग।
माधो क माटी से ममता, माटी क उपजाऊ छमता,
रसायन से ख़तम हो गइल, ख़त्म हो गइल आपन त्याग।
कोलाहल धरती पर धावे, शोरगुल तनिको न भावे,
अम्बर में तेजाब घुलल बा, धरती पर पसरल बा आग।
मोटर गाड़ी, हवा रोआई, सबका ले बहुतायत भाई,
कल, करखाना, कचरा-मचडा, गांवो-शहर तोपइल बाग।
पावन गंगा क गन्दा पानी, इ पानी क गइल रवानी,
इ गंगा में जहर घोलाइल, कछुवा, मछुवा, मीन के भाग।
मुर्दा से जिन्दा के खतरा, उहो लुकाई कोना अंतरा,
कचरा कूड़ा कर्कट से, गंगा क पानी में झाग।
गंगा के उदगम से लेके, सागर के संगम तक छेके,
गन्दा नाला मूत्र विसर्जन, नदियन क बा फुटल भाग।
अदमी अपना नादानी में, आग लगवले बा पानी में,
पानी आपन रूप देखाई, गांव नगर अब लागी आग।
असमय मौसम अरस-बरस के, खेती मर गइल बून्द तरस के,
धरती के बा छाती फाटल, उगले गर्मी अब त आग।
असमय सुखा, कोहरा पाला, बाढ़ से बिलकुल पड़ गइल ठाला,
जाड़ा जोर बढ़उलस आपन, रोटी बची न बाची साग।
दुनिया में अब बड़ली मंजर, धरती होइ अंजर बंजर,
न चेतबा त् तुंहु जाना, कोख सुखाई, मरी सुहाग।
अइसन जब हो जाई इन्हवा, सब कोई सोची जाई कन्हवा,
अइसन कवनो ठाँव बची ना, गीत बची न कवनो राग।
बरफ पहाड़न के गलला से, सात समुन्दर के बढ़ला से,
डूब जाई सब द्वीप हमार, छोड़ के आपन ढपली राग।
हर पहाड़ अब नंगा होखी, पानी खातींन दंगा होखी,
अब पहाड़ अइसन लागत बा, दूधिया मन पर करिया दाग।
पूरा दुनिया से गोहर बा, पूरा दुनिया अब तोहार बा,
एकरा खातिर कुछ त करअ, बहस छोड़ के ल अनुराग।
पेड़ लगाव, आस जगावअ, प्रदूषण के दूर भगवाअ,
ई मतलब क मतलब में ही, सबकर जिनगी बची बेदाग।
रचनाकार: डॉ राधेश्याम केसरी
मोबाइल नंबर: +91-9415864534
ईमेल: rskesari1@gmail.com
गावँ + डाक: देवरिया
जिला: गाजीपुर(उ.प्र.)
पिन: 232340