भोजपुरी कविता : पडोसी

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दुःख: के दरियाव में जे बनत रहे
पतवार खेवनिहार
आजू का भइल ओह बेवहार में
बुझाते नइखे हमार पडोसी
अब चिन्हाते नइखे
लागत बा ओकरो हवा लागल बा
गुमान के
ना काका कहेला ना भईया
दिनभर गीनत रहे ला रोपईया
चुपचाप आवेला चुपचाप जाला
केवाड़ी ओठंगा के खाल
कमरी ओढ़ के घी पियेला
अपने में मरेला अपने में जिएला
उ जे कबो बिना नून मरीचा मंगले
ना खात रहे ना तियाना तरकारी
पहुचावे में लजाये आधा अपने खाए
हमरो के आधा खिआवे
आज बोलते नईखे
मुंह खोलते नईखे
हमार पडोसी
नेह सनेह के दुआर पर परहेज के
ईटा धरि दिहले बा ना ताकेला
ना झाकेला हमार फिकिर बईठल ब
ओकर भाव चढ़ल बा
लागत बा पडोसी के परिभाषा बदल जाई
विश्वास के देवाल ढह जाई
नेह के डेहरी भहर जाई
टूट जाई परेम के डोरी
त का ! शब्दकोष से पडोसी
शब्द ओरा जाई ?
के रही दुख: में
धरनीहार
सुनानिहार
हे भगवान !

भोजपुरी कविता : पडोसी
रचनाकार: संतोष पटेल

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