देवेन्द्र कुमार राय जी के लिखल व्यंगात्मक भोजपुरी कविता हमरा मन के फोंफी

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बबुआ के गंड़तर उधियाता, त धरबि नु,
सोंच मति हम चूल्हा-चउकी करबि नु।
तुं बइठ मचिया नोहपालिस चटक लगाव
ललका लिपीस्टिक से थुथून खुब सजाव,
बरतन बासन छोड़ गमकउवा तेल लगाव
सिंगार में कमी होखे त उहो बात बताव,
घर बेंचाई चाहे खेतवो सभ रेहन धराइ
चहबू त माई बाबू के खाएक एके सांझ दिआइ,
हम जवन कमाइबि तोहरा आगे धरबि नु
सोंच मति—————चउकी करबि नु।

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बबुआ के हगल मूतल कुल्हि हम क देबि
जवन जवन कहबू सोझा लेआके ध देबि,
छोड़ काम के फेरा नात बढा़वल नोह खीआ जाइ
हमरा लेखा मरद के सभ इजत धोआ जाइ,
सुन ए हमरा मन के फोंफी बइठल राज भोग
हमरा बाप-दादा के सभ जोगवल धन घोंक,
जतने तोहरा के करबि तबे तरबि नु
सोंच मति—————-चउकी करबि नु।

सुन बबुआ के आपन छाती मति चटाव
बाजारे से कीन देबि उहे नेपुल धराव,
छाती धरइबू त देंहिया तोहार खंखोरा जाइ
जवन जवानी भभकता उ बखोरा जाइ,
आव बइठ पलंग प अबटन तनी लगा दीं
तेल पानी लगाके देंहिया तोहार सजा दीं,
तोहार सेवा कइला के बाद परबि नु
सोंच मति—————चउकी करबि नु।

अंगना घर मति बहार डांड़ पीराए लागी
ठंढा बा बात मान कपार तोहार दुखाए लागी,
अंगुरी के कोर से बइठले बात समझाव
कवन काम बाकी बा ओह काम के बताव,
बोलत खानी कजरारी अंखिया तनी मटका द
माई बाबू कुछ कहसु त कडे़रे बोलिके दबका द,
तोहरे चलावा में चलबि तबे तरबि नु
सोंच मति हम चूल्हा चउकी करबि नु।

देवेन्द्र कुमार राय जी
देवेन्द्र कुमार राय जी

देवेन्द्र कुमार राय
(ग्राम +पो०-जमुआँव, पीरो , भोजपुर, बिहार )

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