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भोजपुरी कविता मन के मुनरवा आ कहवाँ गइल : निर्भय नीर

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निर्भय नीर जी

परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आई पढ़ल जाव निर्भय नीर जी के लिखल भोजपुरी कविता मन के मुनरवाकहवाँ गइल । रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं आ रउवा निर्भय नीर जी के लिखल रचना अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।

मन के मुनरवा

हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।
झटके में हियरा दुखा गइले हो।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।

जिनिगी के पोसल-पालल, सउँसी सपनवा।
टिसुना के बगिया में, फरेला फरेनवा।
बिना फल देले भहरा गइले हो।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।।

अबगे सजत रहे ,आस में जिनिगीया।
उठतऽ खिलतऽ रहे, मन के पिरितिया ।।
ताले विधि लिखंत, मेड़रा गइले हो।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।।

विधि के लिखंत नाहीं, जुगति से टरेला।
करम टांकल रेखा, कबहूँ ना हटेला।।
सबूरी जोगावत मन, थीरा गइले हो।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।।

पइसे तऽ जग के,चलावे जग रीतिया।
पइसे तऽ जग में, जोगावे ले पिरितिया।।

निर्भय नीर जी
निर्भय नीर जी

जिनिगी के झांझर इहे, बना भइले हो।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।।

जिनिगी बेहाल बड़ा, तड़पे परनवा।
साँझे सवेरे देखे, उनके सपनवा।।
खोजी-खाजी, थाकी -हारी, बउरा गइले हो।।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।।

लोग आ समाज खातिर, जिनिगी बितवनी।
विषम समइया में,कुठार घात सहनी।।
हिया घाव निर्भय के, दूना भइले हो।
हमरा मन के मुनरवा हेरा गइले हो।।

कहवाँ गइल?

कहवाँ गइलऽ, मोरी मनवा रे ।।
एह करे खोजीं, ओह करे खोजीं,
कतहीं ना पाईं , तोरी संगवा रे।
कहवाँ गइल , मोरी मनवा रे।।१।।

रतिया सपनवा में, निनिया जे टूटल।
आँखि के कोरवा से, लोरवा जे छूटल।।
ढ़रकी भींजावे , मोरी गलवा रे ।
कहवाँ गइल , मोरी मनवा रे।।२।।

केकरा से कहीं, मन टोही लावे।
सभे अझुराइल, केहू कहाँ धावे।।
खोजि थाकि गइले , घर बनवा रे।
कहवाँ गइल , मोरी मनवा रे।।३।।

सुनि के वचन मूँह, लेले घूमाई।
ममता के बाँटि-जोखी, भइले पराई।।
बिलखी तड़पी, रोवे भवनवा रे।
कहवाँ गइल, मोरी मनवा रे।।४।।

हँसे केहू, डाटि देला, केहू उरकेटे।
हियरा समाइल टीस, तब तब उठे।।
छतिया में लागे , जइसे बनवा रे।
कहवाँ गइल, मोरी मनवा रे।।५।।

दुखवा भरल भाव, भीतरे जोगावे।
निर्भय बनल रहि, जिनिगी बचावे।।
मउवत झाँके, हर क्षणवा रे।
कहवाँ गइल मोरी मनवा रे।।६।।

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