भोजपुरी साहित्य में महिला कलमकार के बहुत कमी रहे ओकर कारण बा। पूरा भोजपुरी पट्टी का, आपन देश में सगरो नारी लोगन के शिक्षा से वंचित राखे के सामाजिक साजिश रहल जेकरा से भोजपुरी प्रदेश अछूता कइसे रहित? महिला शिक्षा खातिर ज्योतिपुंज सावित्री बा फुले के केहु कइसे भुला सकेला! बहरहाल 1942 से भोजपुरी साहित्य के नव जागरण शुरू भइल आ पुरुष लोगन के बहुत बाद में महिला लो सहज कथा कहानी, नानी- दादी के किस्सागोई के सङ्गे गवे गवे आइल शुरू कइनी सभे तब तक 70 आ 80 के दशक में टप्पा टूईयाँ महिला कहानीकार दिखाई देत रहे लो ।कहानी के साहित्यिक रूप 90 के दशक से कुछ महिला कलमकार के नाम सोझा आवत बा। ‘
‘भोजपुरी गद्य- साहित्य’ नामक किताब डॉ जयकान्त सिंह जय चार गो महिला कहानीकार के चर्चा कइले बानी जेमे राधिका देवी श्रीवास्तव के कहानी संग्रह ‘धरती के फूल'(1968) आ रूप श्री के ‘जिनगी के परछाही’ (1971) आ उषा वर्मा के ‘लाइची’ (2002) आ आशा श्रीवास्तव के ‘अमानत’ (2007) नाव प्रमुखता से आइल बा। भोजपुरी साहित्य में बहुत नाव बा। एहि में से एगो नाव आवेला डॉ आशा रानी लाल के।
भोजपुरी गद्य साहित्य में कहानी, यात्रा संस्मरण, निबंध, ललित निबंध व बाल कथा आदि 5 गो विधन में आशा रानी लाल के कलम चलत रहल बा।
भोजपुरी साहित्य में डॉ आशा रानी के देन आ फेर ओहर चर्चा आवश्यक बा।
ए बचवा फूल फर$ (1996),
हमहूँ माई घरे गइनी (2001)
दिठौना (2004)
माटी के भाग (2005)
सितली(2007)
देवकुरी(2011)
जय कन्हैया लाल (2012)
काहे कहली इया, (2012)
लाज लागेला (2015)
घमावन (2015)
बाइस्कोप (2017)
डॉ आशा रानी लाल के भोजपुरी कथा साहित्य में योगदान पर ही केंद्रित हमार आलेख बा त हम एही के पकड़ के चलब।
डॉ लाल के कहानियन में आज के स्त्री विमर्श के संकेत मिलेला – हमही उहाँ से ई पुछ लेनी । उहाँ के कहनाम रहल कि ‘हम समाज में आसपास घटित होखत घटना आ परिवारिक परिवेश में उठत बैठत नारी के स्थितियन देखिला, उनकर दशा आ व्यथा के समझिला तब जवन हमार आपन मन में आवेवाला आ घनीभूत होला ओकरा कागज पर उतार दिहला।’
हिंदी दैनिक हिंदुस्तान में 7 सितंबर, 1997 के पृष्ठ 5 पर चंद्रकांत प्रसाद सिंह के आलेख रहे ‘नारी शोषण का बारीकी से वर्णन’। एह आलेख में डॉ आशा रानी लाल के पहिल पुस्तक जवन निबंध संग्रह रहे- ‘ए बचवा! फूर$ फर$’ के केंद्रित करत एगो समीक्षा बा।
एह निबंध संग्रह में ‘मेहरारू’नाव कब एगो निबंध बा जेकरा में लिखल बा – ‘हमार नाव मेहरारु ह। एही से हमरो भुला जाला कि हमार नाव का रहे।’ कहे के माने कि श्री चंद्रकांत प्रसाद सिंह लिखत बानी -“नारी जाति को समाज ढेर सारे सम्बोधन दे डालता है- बेटी, दीदी, माँ, दादी, नानी, चाची देवी और ना जाने क्या क्या लेकिन सम्बोधनों की भीड़ पे उसकी अस्मिता ही कहीं गुम हो जाती है।’
ऊपर के विचार से साफ हो जात बा कि डॉ आशा रानी लाल के कहानियन में विमर्श के सूत्र बा। आशा रानी लाल। विगत 22 साल से भोजपुरी के स्थापित गद्यकार बाड़ी। आपन कथ्य, भाव आ कथन से भोजपुरी भाषा के भंडार त भरते बाड़ी सङ्गे सङ्गे आपन कहानी से भोजपुरी के मिठास के एहसास करावत बाड़ी।
कहानी संग्रह से प्रकाशन के हिसाब से डॉ लाल के पहिल कहानी संग्रह ‘ सितली’ (2007) ह, जेकरा में अठारह कहानी संकलित बा – के बताई, ई-बुझउवल, मोना, हमरो पता जान ल, सितली, पापा बानी त$ बाकी, हमार का होई, आदि।
कुल्ह कहानियन के विवेचना करत मुंबई विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग के आचार्य रामजी तिवारी बड़ा सटीक टिप्पणी करत बानी- ‘शिल्प दृष्टि से सितली में कहानी, संस्मरण, रेखाचित्र, निबंध आदि का मिश्रण है। लेखिका की संवाद शैली सम्प्रेषण, वस्तु को सुगम आत्मीय और पढनीय बनाती है।’
डॉ आशा रानी लाल खुद सितली कथा संग्रह इन आपन बात राखत कहत बाड़ी-‘ महादेवी जी के पीड़ा-टीस आ करक के-के नइखे जानत। इहे ना सीतो जी के जिनगी त$ रोवते रोवते बीतल रहे। एही कुल दरद पीरा के देखला से हमार मेहरारूने से पियार भ $ गइल आ हमार इ सितली किताब बन के खड़ा हो गइल।’
सितली कहानी संग्रह के दुसरको संस्करण 2012 में आइल बा जवन बतलावत बा कि आशा रानी लाल के कहानी के का महत्व बा। इहाँ के भोजपुरी कहानी के विवेचना हिंदी के स्वनामधन्य आलोचक डॉ नामवर सिंह, प्रो मैनेजर पांडेय, कहानीकार डॉ रमाशंकर श्रीवास्तव आ सुप्रसिद्ध कवि स्व केदारनाथ सिंह ले लमहर लमहर साहित्यिक मंच से कइले बानी।
दर्जनों सम्मान से सम्मानित डॉ लाल के दूसर कहानी संकलन 2011 में आइल, जेकर नाव ह- देवकुरी। एह में 19 गो भोजपुरी कहानी के संकलन बा। अनबोलता सराप, बोलावा, देवकुरी, विदेशी भोजपुरी आदि कहानी में संस्मरण आ रेखाचित्र देखे के मिली। ‘बोलावा’ कहानी भोजपुरी ग्रामीण समाज में यौन व्यवहार के कच्चा चिट्ठा खोलत बा। उहे देवकुरी कहानी में मुखा के माई के चरित्र के माध्यम से गांव में पईसत आधुनिकता के संकेत सूत्र दे रहल बा।
आशा रानी लाल के एह कुल्ह कहानियन में यथार्थ के नगिचा से देखावल बा।
तीसरा कथा संग्रह बा – लाज लागेला। डॉ लाल के एह संग्रह के प्रकाशन 2016 में भइल बा । एह संकलन में बहुत भावुक कहानियन के जिक्र बा। पलायन के समस्या और नौकरी के मजबूरी के उकेरत एगो कहानी बा ‘उरिन हो गइनी’। अकेले ई कहानी सभी कहानियन पर बीस बा। 2017 में डॉ लाल के 18 कहानी के संकलन बा – बाइस्कोप। सभी कहानियन में डॉ लाल के कथा शैली के अलग अलग रंग देखे के मिलत बा। ‘ बाइस्कोप’ में एगो अइसन जानना के कहानी बा जे रूढ़िवादी आ दकियानूसी सोच के बाड़ी। जे सिनेमा के कहो बाइस्कोप ले कबो नइखी देखले।
कुल्ह मिला के आशा रानी लाल भोजपुरी कथा साहित्य में अनुपम योगदान दे रहल बाड़ी। उहाँ के साँच कहल जाव त मूल्यांकन नइखे भइल जेकर उ हकदार बाड़ी।
डॉ लाल के लिखल बाल कथा संग्रह जय कन्हैया लाल की के प्रकाशन 2012 में प्रकाशित बा जवन कृष्ण के बाल लीला के भोजपुरी किस्सागोई के रूप में लिखल बा।
समालोचक प्रवीण उपाध्याय के बात से आलेख के विराम देब कि-डॉ आशा रानी लाल अपनी कहानियों में ग्रामीण समाज की जो तस्वीर पेश करती हैं वह प्रशंसनीय है । अपनी विषय वस्तु , चरित्र सृष्टि तकनीक, भाषा और शैली की दृष्टि जबरस्त पकड़ रखती हैं वे अपनी कहानी संग्रहों से भोजपुरी साहित्य की श्रीवृद्धि कर महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।
रउवा खातिर:
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