परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब के सोझा बा भगवती प्रसाद द्विवेदी जी के लिखल भोजपुरी कहानी जंगल में मंगल, पढ़ीं आ आपन राय जरूर दीं कि रउवा भगवती प्रसाद द्विवेदी जी के लिखल भोजपुरी कहानी कइसन लागल आ रउवा सब से निहोरा बा कि एह कविता के शेयर जरूर करी।
गाछ-बिरीछ आदमी खातिर बड़ी उपयोगी होले सन। एकरी से आदमी के रक्षा होला । गाछ आ ओकर रखवाली कइल तपस्या खानी बा। भोजपुरी कहानी जंगल में मंगल गाछ के महातम बतावता।
कोलकाता के एगो कोठरी में मुखर्जी बाबू के परिवार रहेला । मेहरारू के स्वर्ग सिधरला बरिसन बीत गइल। उनका एगो बेटा आ एगो बेटी-बस दुइए गो संतान बा । दूनों महाविद्यालय में पढेलन स। मुखर्जीदा एगो प्राइवेट कंपनी में नौकरी करेलन। पइसा के तंगी में जइसे-तइसे जिनिगी के गाड़ी खींचत बाड़न। बीड़ी के अइसन लकम लागल रहे कि लमहर अरसा से तपेदिक (टीवी) जकड़ लेले बा । डॉक्टर इलाज का सँगही कुछ दिन खातिर कवनो पहाड़ी इलाका में भा दूर-दराज के गाँव में जाके सेहत-लाभ करे के सलाहो देले बाड़न। बाकिर ऊ जइबो करस त कहवाँ ? कई पुश्त से उनका परिवार के खाली एही महानगर से त वास्ता रहल बा । गाँव में ना केहू हित-नात, ना केहू से दोस्ती-इयारी ।
रत्नेश, मुखर्जी बाबू के बेटा आशुतोष के लँगोटिया इयार ह दूनों एके कॉलेज में पढेलन स। रत्नेश विज्ञान संकाय में बा आ आशुतोष कला संकाय में। सुदूरदेहात के रहवइया रत्नेश उहाँ होस्टल में रहेला । आशुतोष के बासी पर ऊ अकसरहाँ आवत-जात रहेला। आशुतोष के बहिन रत्ना के ऊ कब-कबो पढ़इबो करेला ।
रत्नेश के जब मुखर्जी बाबू के बेमारी के पता चलल, त ऊ उनका के अपना गाँवे लिया जाए खातिर निहोरा कइले । पहिले त ऊ आनाकानी कइलन आ बेटी के अकेले छोड़ के उहाँ जाए से मना के देलन । बाकिर जब रत्नेश गरमी के छुट्टी में पूरा परिवार के गाँवें लिया जाए के बात कहलस, त ऊ टार ना पवलने आ सउँसे परिवार रत्नेश का सँगे गाड़ी से गाँव खातिर रवाना हो गइल ।
स्टेशन प उतरके ताँगा से गाँव के ओर चलल लोग । छवर के दूनों ओर के मनोरम कुदरती नजारा रहे । प्रकृति के कोरा में डेग धरते अइसन बुझाइल जइसे मुखर्जी बाबू के आधा रोग आपने आप छू-मंतर हो गइल होखे । रत्नेश के बाबूजी बाँके बिहारी से मिलले त ऊ फूले ना समइलन । उनकर विनयी, मिलनसार सुभाव आ गाछ-बिरीछ, माल-मवेशी, चिरई-चुरुंग खातिर उनकर अटूट मोह-ममता देखके ऊ दंग रह गइलन । कोठी, सुख, संपदा, लमहर-खेती-बारी, नौकर-चाकर के बावजूद घमंड के नामो-निशान ना । बड़प्पन एही के यूँ कहल जाला ! मेहरारू आ तीन-तीन गो बेटन के भरल-पुरल परिवार । बड़का बेटा शमशेर इंजीनियरिंग कऽ चुकल बा । दोसरका रत्नेश वनस्पति विज्ञान के होनहार विद्यार्थी आ सबसे छोटे परितोष नर्सरी के छात्र । सचहूँ लछिमी आवेली त छप्पर फार के ।
भोरही-भोरे मुखर्जी बाबू बाँके बिहारी का संगे दूर ले निकल आइल बाड़न । खाली गोड़ के नीचे के गुदगुदावत हरियर दूब। मोती-अस चमचमात सतरंगी ओस के बून । चरवाही में जात रम्भात गाय-बछरू । रंग-बिरंगी चिरइन के चह-चह। नीला आसमान के फइलल बाँह आ अंकवार भेंट करे के आतुर हरियर-हरियर पेड़-बँट । बाँके बिहारी कई बिगहा में फइलल आपन बगइचा देखावत बाड़न । फेरू राज के बात बतावत कहत बाड़न। मुखर्जी बाबू, एह बगइचो को पाछा एगो कहानी बा । बियाह का बाद कई बरसि गुजार गइल, बाकिर हमरो कवनो संतान ना भइल । एक रात सपना में एगो महात्मा दर्शन देके कहलन कि तहरा से वन देवता कुपित बाड़न । उनका कोप से बचे खातिर अगर तू एगो बाग लगा देबऽ त तहरा पुत्र-रतन के प्राप्ति होई । फेरू त अगिले दिन से हम बागवानी के काम में जीव-जान से जुटि गइल रहलीं । ओकरे नतीजा है ई हरा-भरा फलदार गाछ।
मुखर्जी बाबू त अभिभूत हो गइल रहलन। उनका नाक में बाँके बिहारी के पसेना के सोन्ह-सोन्ह गमक आवत रहे । तलहीं घुमत-घामत रत्नेश आशुतोष, रत्ना आ परितोषो उहवाँ आ धमकलन । वनस्पति विज्ञान के विद्यार्थी रत्नेश उहाँ के पर्यावरण आ एकहो-एकहो गो गाछ के खासियत बतावे लागल, जबकि परितोष तितिली पकड़े आ चिरइन का साथे खेले में मगन हो गइल । रत्नो उहाँ के मनभावन नजारा देखके भाव-विभोर हो गइल रहे।
लवटत खा बाँके बाबू के नजर आम के एगो गाछ पर पड़ल त उनकर मरम घवाहिल हो उठल । रात में केहू आम के एगो भोट डाढ़ काट ले गइल रहे। रोज-ब-रोज गाछन में अन्हाधुन कटाई चिंता के विषय बन गइल बा। बाँके बाबू बेचैन होके बतावत बाड़न, सरकार हरियर गाछ के कटाई रोके खातिर कानून त बनवले बिया, बाकिर लकड़ी काटके जीवन-यापन करेवाल गरीबन खातिर कवनो वैकल्पिक व्यवस्था नइखे कइले। दोसरा ओर, धनी आ ठीकेदार, पुलिस अउर वनअधिकारियन के जेब गरमा के कानून के अँगूठा देखावत बाड़न । सरकारी स्तर पर थाला त लगावल जाला, बाकिर उन्हनी के हिफाजत आ रख-रखाव के इंतजाम ना रहला से ऊ कुछए दिन में सूख-मुरझा जालन स ।
बाँके बाबू के बात से संभकरा मुँह प फिकिर के लकीर खिंचाए लागत बा ।
रात में लिट्टी-चोखा खाके आ गरम दूध पीके मुखर्जी बाबू जब सूते के तैयारी करत बाड़न, तलहीं बाँके बाबू के कोठरी से कहा-सुनी आ हल्ला गुल्ला सुनि के उनकर कान खड़ा हो जात बा। चौकन्ना होके ऊ सुने लागत बाड़न । इंजीनियर शमशेर बगइचा के मए गाछ कटवाके उहवाँ फैक्टरी बइठावल चाहत बा, बाकिर बाँके बाबू एकरा खातिर कतई राजी नइखन होत । दूनों जाना आपन-आपन दलील देत बाड़न । बाकिर बौखलाइल शमशेर आखिरकार गाछन के सफया करवावे के फैसला सुनाके बहरिया जाताड़े ।
रात में बाँके बाबू बेर-बेर करवट बदलत बाड़न । अचके में नींने अइला पर ऊ सपना के दुनिया में भूला जात बाड़न । उन्हुका उज्जर धूप-धूप जटाजूट-दाढ़ी वाला महात्मा लउकत बाड़न जिन्हिकरा आँखिन से टप्-टप् लोर टपकत बा आ अंग-प्रत्यंग लोहूलोहान बा । ऊ खुद के वृक्ष-देवता बतावत बाड़न आ भनई के राकसी व्यवहार से जार-जार रो रहल बाड़न । अनगिनत लोग उनका एक-एक अंग के छपाक्-छपाक् काट रहल बा आ ऊ बेबसी से बेर-बेर कराहत बाड़न ।
‘ना … हरगिज ना !’ बाँके बाबू के आँख खीस से खून उगिले लागत बाड़ी स आ ऊ पसेना से तर-बतर होत उठके बइठ जात बाड़न ।
फजीरे जागि के बाँके बाबू बरामदा में बइठ के प्रभाती गावत बाड़न । तलहीं उनका बगइचा से ‘ठक-ठक’ के आवाज लगातार आवे लागत बा। ऊ बेतहाशा बगइचा के ओर भागत बाड़न ।
बगइचा के हाल देखते उनका कठया मार देत बा । आज ओह बड़की बारी के गाछन के काटे खातिर कई गो मजूर टाँगा लेके हाजिर बाड़न स । इंजीनियर शमशेर के फरमान पर दनादन टाँगा, टाँगी आ कुल्हाड़ी चल रहल बाड़ी स ।
बाकिरे जइसही बाँके बाबू बाघ नियर दहाड़त बाड़न, उनकर रोबदार गुर्राहट सुनते टाँगा-टाँगी -कुल्हाड़ी चलावेवाला मए-के-मए हाथन के थथमा मार देत बा । बाकिर दोसरे छन शमशेर सभे मजूरन के आपन काम जारी राखेके आदेश देत बाड़े । त थथमल हाथ फेरू कटाई के काम में जुट जात बाड़न स।
| आखिकार बाँके बाबू पगलइला-अस एने से ओने भागत बाड़न, फेरू एगो कटात गाछ से सटत दूनों हाथ पसार के छापि लेत बाड़न। शमशेर तो काम ना रोके के आ टाँगा से वार करे के कड़ियल आदेश देत बाड़े।
बाकिर तलहीं थाना के दरोगा, सिपाहियन का साथे रत्नेश, आशुतोष आ मुखर्जी बाबू उहाँ पहुँच जात बाड़न। संभकर स्ट्रिी-पिट्टी गुम हो जात बा। शमशेर के पुलिस पकड़ लेत बिया।
गाँव के ढेर लोग-लुगाई जमा हो जात बाड़न। मजमा लाग जात बा। बाँके बाबू आ उनका बड़की बारी के जै जैकार होखे लागत बा। रत्नेश वन आ पर्यावरण के हिफाजत खातिर जनचेतना जगावे के जरूरत पर जोर देत बाड़े। रलो धउरत-धूपत उहाँ के रत्नेश के एह काम में साथ देबे के ऐलान करत बाड़ी। परितोष पर्यावरण पर एगो मोहक गीत सुनावत बाड़ेः
‘वन बिन विपत-अमंगल बा, जंगल में बस मंगल बा……,
सभ केहू सामूहिक सुर में गीत के दोहरावत गाछन से अँकवारी भेंट करत लपेटा जात बा आ ओह जंगल में साँचो के मंगल के गलबाँही डलले ठठा के हँसत बाड़ना रत्नेश के एगो हाथ में रत्ना के हाथ आ दोसरा में पर्यावरण-हिफाजत के स्लोगन बा। उन्हनी के माथे पर झूमत गाछन से फूलन के झोंप झरे लागत बा।
– भोजपुरी कहानी जंगल में मंगल किताब अँजोर से लिहल गइल बा
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भगवती प्रसाद द्विवेदी भोजपुरी के नामी कथाकार हई । इहाँ के जनम 1 जुलाई 1955 के उत्तर प्रदेश के बलिया जिला में भइल रहे।
इहाँ के प्रकाशित किताब बाड़ी सन- दरद के डहर, साँच के आँच (उपन्यास), थाती (लघुकथा-संग्रह), ठेगा (कहानी संग्रह), जै-जै आगर (कविता-संग्रह) इहाँ के लघु कथा संग्रह थाती पर अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन के पुरस्कार मिल चुकल बा ।
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