भोजपुरी के एक्शन स्टार के रूप में चर्चित मनोज पांडे ने अपनी मेहनत से यहां जगह बनाई है। इन्हें सुपर स्टार कहलाने का शौक नहीं है। इनकी एक ही
इच्छा है कि भोजपुरी इंडस्ट्री की साख बढ़े और क्षेत्रीय सिनेमा में इसे सम्मानजनक स्थान मिले। मनोज पांडे की सात फिल्में रिलीज हुई हैं और पांच फिल्में रिलीज होने वाली हैं। उनसे बातचीत-
आप इन दिनों साउथ और हिन्दी की फिल्में भी कर रहे हैं। क्या भोजपुरी से मन उचट गया है?
नहीं, ऐसी बात नहीं है। भोजपुरी से कभी नाता नहीं टूटेगा। मगर इसकी एक सीमा है। हर एक्टर अपना फैलाव चाहता है और जहां स्कोप मिलता है, वहां जाता है। मेरे लिए भी भाग्य आजमाने का समय है। हिन्दी में इसलिए दो फिल्में ‘ये कैसा प्यार है’ और ‘टेररिस्ट’ कर रहा हूं ताकि पूरा देश मुझे देखे। साउथ में कहानियां अच्छी होती हैं। वहां से पहले भी ऑफर आए थे मगर मैंने मना कर दिया था। वह मेरी बड़ी भूल साबित हुई लेकिन अब कर रहा हूं।
साउथ की फिल्में इसलिए की क्योंकि वहां पैसा ज्यादा मिलता है?
खुद को उतना बड़ा नहीं समझता कि पैसे पर ध्यान लगा दूं। मुझे अभी हर जगह अपने को साबित करना है। कुछ लोगों ने मुझे सुझाव दिया कि पहले अपने चेहरे और एक्टिंग को पहचान दिला दूं, फिर पैसे के बारे में सोचूं। भोजपुरी में मुझे लोग पहचानते हैं। साउथ और हिन्दी सिनेमा में मैं लगभग अनजान-सा हूं।
वैसे काम करने का मजा साउथ में है। वहां की फिल्मों में एक्शन, इमोशन और रोमांस जबरदस्त होता है। यही वजह है कि हिन्दी में वहां की फिल्मों का
रीमेक लगातार हो रहा है। भोजपुरी की तरह साउथ में किसी को भी हीरो नहीं बना दिया जाता है। किसी को भी राजा बना देने से राज नहीं चलता है। उसमें
फैसला लेने और संचालन करने की क्षमता और ताकत होनी चाहिए। यहां तो जो भी पैसा लगाने आते हैं, वे अंत में लुट-पिट कर रह जाते हैं। यानी भोजपुरी
भरोसा देने में विफल साबित हो रही है।
भोजपुरी में कई कॉरपोरेट हाउस आए थे, लेकिन वे भाग क्यों गए?
भागेंगे नहीं तो और क्या करेंगे? उन्हें मुनाफा न हो, लागत तो वसूल होनी चाहिए। मगर यहां तो कुछ लोग उन्हें नोंचने के लिए तैयार बैठे रहते हैं। इससे नुकसान पूरी इंडस्ट्री को होता है। आज हालत यह है कि कोई भी फाइनेंसर भोजपुरी को पैसा देने के लिए जल्दी तैयार नहीं है। जिन लोगों ने फाइनेंस किया है, उन्हें अपने पैसे वसूलने में पसीने छूट रहे हैं। ज्यादातर पैसे स्टारों पर खर्च हो रहे हैं। इसमें उनके चमचों की बड़ी भूमिका होती है। लेकिन आज सुपर स्टारों की फिल्में भी नहीं चल रही हैं। ठगी ज्यादा दिनों तक कहीं नहीं चलती। भोजपुरी को इस दलदल से बाहर निकलना होगा। भोजपुरी के प्रति समर्पित लोगों को एकजुट होकर गलत लोगों के खिलाफ अभियान चलाना पड़ेगा। भोजपुरी को एक्टरों की जरूरत है, सुपर स्टारों की नहीं। हिन्दी, मराठी, बांग्ला और साउथ की फिल्मों को एक्टर ही चला रहे हैं।
भोजपुरी में एक्टर चाहिए सुपरस्टार नहीं