भोजपुरी हिंदी के बोली हिय, लइकाइयें से सुनल-पढ़त आवत बानी। बहुत भाषाविद बानी लो विशेषकर हिंदी भाषा से जुड़ल, उहां सभे भोजपुरी के बोली के गोलाई में बांध के रख देला। कबो बिहारी भाषा के परिवार के इकाई मगही, मैथिली आ भोजपुरी कह के त कबो हिंदी के उपभाषा कह के।
सवाल ई बा हिंदी जब खुद 49 गो भाषा के अपना परिधि में रख के एगो निरइठ भाषा बनल बिया त ई कहल केतना जाइज बा कि भोजपुरी हिंदी के बेटी हिय? हिंदी ओकर माई हिय ? भा भोजपुरी मौसी हिय? हम कहत बानी भोजपुरी भाषा जब हिंदी बनावे में एगो इकाई बिया त सीधा मतलब भइल हिंदी के माई भोजपुरी हिय।
भाषाविद डॉ राजेन्द्र प्रसाद सिंह के सब्दन में भोजपुरी एगो अलग भाषा बिया जवन हिंदी से कई मायने में अलग बिया।
एह दिसाईं कुछ तथ्य दे रहल बानी जवन साबित करी कि भोजपुरी एगो भाषा हिय बोली कहल ओकर अपमान बा।
सुप्रसिद्ध भाषाविद प्रो शालिग्राम शुक्ला जी के एगो बात मन पड़त बा। उहाँ के कहल बात के Susane Michaelis आपन सम्पादित एगो किताब में उद्धृत कइले बाड़ी-
“Bhojpuri is an Indo Aryan language of the estern zone and it is no way a dialect or corrupt form of Hindi, as is often believed.” एही बतिया के Roots of Creole Structures नामक पुस्तक में दिहल भी बा।
असही भोजपुरी के पहिल उपन्यासकार आदरणीय रामनाथ पाण्डेय जी भोजपुरी लोक के एगो आलेख में लिखले बानी कि – “भोजपुरी एक भाषा है और उसे बोली का दर्जा हिन्दीभाषियों की प्रभुता संपन्न दृष्टि उनके षड्यंत्र का परिणाम है।”
भोजपुरी के भाषा के रूप में विद्वान भाषाविद J.Siegel आपन किताब “Language Transplanted : the development over seas Hindi ” मे कहत बाड़न-
“There is no such language as Fiji Hindi , the language that indians speak here is Bhojpuri…..Hindi in Fiji today is sub standard Bhojpuri which has been corrupted”.
एगो जरुरी बात के इहाँ उधृत कइल जरूरी बा कि भारत सरकार 2011 के जनगणना में भोजपुरी भाषी लोग के संख्या उजागर नइखे कइले। भोजपुरी भाषी लोगन के हिंदी भाषी में गणना कइल बा।कारण इहे बा हिंदी भाषी लो के संख्या जादे बतावे खातिर। रउरा लिंगविस्टिक ऑफ इंडिया, कोलकता से पता कर सकीला । कारण साफ बा कि संयुक्त राष्ट्र संघ में हिंदी के विश्व भाषा के दर्जा दिलाये के कवायत चलत बा त सवाल उठल लाजमी बा कि कि का मातृभाषा के कब्र पर पनपी हिंदी?
इहाँ बतावल जरूरी बा कि 30 दिसम्बर 1984 बिलासपुर में 8वां अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मलेन के अध्यक्षता करत आरदनीय विवेकी राय जी कहले रही-
“भोजपुरी एगो अंतर्राष्ट्रीय भाषा हीय। ई भाषा हीय कि बोली अइसन सवाल कइल एकदम मूर्खतापूर्ण काम ह। ई दुर्भाग्य के बात बा कि कुछ तथाकथित हिंदी के विद्वान् लोगन के बीचे ई एगो फैसन हो गइल बा कि उ लोग भोजपुरी के एगो बोली मानेला।”
देखी तनि विदेसी विद्वान के बात। Robert L. Trammel भोजपुरी के एगो indic language मानत बाड़न ना कि dialect,
“Bhojpuri is an indic language.”
The phonology of the Northern standard dialects of Bhojpuri नामक किताब में साफ साफ लिखल बा।
ई बतावल गलत ना। होई कि नेपाल में साल 2008 में भाषा नीति के तहत एगो भाषायी जनगणना भइल। उहाँ के तीसरा बड़का भाषा भोजपुरी रहल। तीन ज़िला में त भोजपुरी के बहुलता बा उ ज़िला बा रौतहट, बारा आ परसा। उहाँ भोजपुरी भाषा के रूप में मानल गइल बा।
विख्यात साहित्यकार आ पाती के संपादक डॉ अशोक द्विवेदी के अनुसार- भोजपुरी अइसन लोकभाषा हिय S, जवना के जनपदीय स्वर ओह क्षेत्रविशेष का लोगन के पहिचान बनावे । बुझाला एही से कहावत बनल ..”.कोस कोस पर पानी बदले ,पाँच कोस पर बानी ..।”
हमरा समुझ से बानी मतलब’ टोन’ बदल जाला ,ईहो कह सकेनी कि उचारे के लहजा /शैली बदल जाले ।भाषा थोरे बदल जाले ।एह सबका बावजूद, आज भोजपुरी भाषा के आपन विपुल साहित्य आ सिरजनशील रचनात्मकता, भोजपुरी के स्वतंत्र आ सशक्त भाषा का दर्जा में राखे /माने के पोख़्ता प्रमाण सहित सुलभ बा । भरम पैदा कइले आ वाग्जाल फइलवले साँच के ढेर दिन दबावल ना जा सके ।ई भाषा हिन्दी से पहिले जनमल रहे आ एकर आपन स्वतंत्र अस्तित्व बा ।
भोजपुरी साहित्य आलोचना के स्तंभ डॉ ब्रज भूषण मिश्र के अनुसार- एही घालमेल से भोजपुरी पिछुआइल जा रहल बिआ. उहाँ के कहनाम कि हमरा मन पड़त बा कि नगणना से पहिले अ. भा, भोजपुरी साहित्य सम्मेलन में प्रस्ताव राखल गइल कि मातृभाषा के रूप में जनगणना मेें भोजपुरी लिखवावे के मुहिम चलावल जाय, बाकिर यू.पी. के कुछ विद्वान लोग विरोध में हो गइल आ कुछ लोग हिन्दी के साथ कोष्ठ में भोजपुरी लिखवावे के वकालत कइल, अंतत: प्रस्ताव पारित ना हो सकल। लोगस्वतंत्र रूप से जे लिखावे. हमनी बिहार में मुहिम चलवनी, बाकिर यू पी से अशोक द्विवेदी जी, भगवती जी, आंजनेय जी भोलानाथ गहमरी जइसन लोग ही समर्थन में रहे, कई मानिंद लोग रूचि ना देखावल. हम विषय समिति में रहीं प्रस्ताव तैयार कइले रहीं। अब अधिका का कहीं. नविन जी थोड़ा लिखना बहुत समझना।
मिश्र जी आगे लिखत बानी कि भोजपुरी स्वतंत्र भाषा ह आ राष्ट्र भाषा हिन्दी भा राजभाषा हिन्दी के पहिले के भाषा ह. एकरा में आज के हिन्दी से पहिले से साहित्य रचल जा रहल बा. भोजपुरी के हिन्दी के उपभाषा, बोली भा जनपदीय हिन्दी के संज्ञा देवेवाला के मातृद्रोही माने के चाहीं. ईलोग भरम फइला के भोजपुरी के अहित कर रहल बा.
डा.उदय नारायण तिवारी केे शोध – Origins & Development of Bhojpuri Language, डा. विश्वनाथ प्रसाद के शोध – Phonetics of Bhojpuri, London University में भोजपुरी के अलग अस्तित्व प्रमाणित कर चुकल बा, त अउरलोग कवना खेत के मुरई बा कि एकरा के अउर कुछ कहे।
भोजपुरी रचनन के अउर कुछ संज्ञा दे के छापेवाला के रचनाकार लोग का रचना देवहीं के ना चाहीं।
भोजपुरी भाषा के संवैधानिक मान्यता के प्रबल समर्थक आ अंग्रेजी के विद्वान् प्रो पी राज सिंह के मानल बा-
हर भाषा एक भूभाग , एगो जनपद के बोली ही होला । बड़ा प्रसिद्द आ सहज उदाहरण बा , अंग्रेजी के । ऑक्सफ़ोर्ड , कैम्ब्रिज में , राजदरबार में, आ ऑक्सब्रिज के सटले रिहायसी इलाका में पढ़ल लिखल लोग के बीचे जवन बोली बोलल जाला ( छेत्र विशेष आ वर्ग विशेष के बोलि ) के मानक अंग्रेजी मान लेहल बा । एकर बरक्स अउर जवन भी बोली बा ऊ जनपदीय बोलि कहाला ।
जवन बात अंग्रेजी भाषा के साथ बा अईसने बात दुनिया के हर भाषा भा बोलि के साथे बा। ऊपर कुल तथ्य बतावत बा कि भोजपुरी के भाषा मानल जाए बोली कहल ओकर अपमान ह।
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