रात के सब केहू सुते के तैयारी करत रहे की तबहिये, मुरारी जी के मोबाइल के घंटी बाज उठल। सब केहू के अनायास ही धियान ओयिपर चल गईल । मुरारी जी नंबर देखनी। इ त होखेवाला समधी जी के रहे। अतना रात के का बात हो सकेला इ सोच के उहा के चिन्ता होखे लागल अउरीउहाँ के फ़ोन रिसीव कईनी।
फेरु आगे के जवन बतकही भईल उ बाकी घर वाला लोग के त समझ में ना आईल पर तबो अतना जरूर बुझा गईल की कुछ गडबड बा। मुरारी जी रोंअनिया आवाज में लगातार ओने वाला के समझावे के कोशिश करत रहनी। फ़ोन बंद होते है मुरारी जी निर्जीव नियर बईठ गईनी।
“का भईल जी?” आकुल होके उनकर मलिकायिन पूछली।
“अब ओ लोग के मारुती आल्टो चाही दहेज़ में” मुरारी जी बईठल आवाज में कहले। इ सुनके उनका मलिकायिन के साथे, दुनु लईकी लईका के आँख खुलल रह गईल।
“पर उ लोग त बिना दहेज़ के शादी करे के कहले रहल ह?” मुरारी जी के मलिकाईन कहली।
“हां पर दहेज़ ना लेहला से अब ओ लोग के सोसाइटी में बेइज्जती होता।”
कुछ देर खातिर घर में सन्नाटा पसर गईल। केहू के कुछ समझ में ना आवे। मुरारी जी गाँव के पास के ही सुगर मिल में किरानी रहनी अउरी आर्थिक स्थिति बेहद ही कमजोर रहे। बस घर परिवार के गाडी चल जात रहे। अनु उनकर बड लईकी रहली अउरी पढ़े में बहुत तेज। दुगो लईकी के शादी खातिर मुरारी जी कुछ रुपया पईसा रखले रहनी पर उ अतना भी ना रहे की उहाँ के एगो मोटर साइकिल भी दहेज़ दे पायी। अयिजा त बात चार लाख के रहे।
अनु ऐ साल BA के परीक्षा में पूरा मंडल में पहिलका स्थान लियायिल रहली अउरी उनकर फोटो भी अखबार में छपल रहे। उहे देख के एगो शर्मा जी, जवन की पास के ही क़स्बा में रहत रहले बड़ा प्रभावित भईल रहले अउरी सामने से अपना सरकारी विभाग में इंजिनियर लईका खातिर उनकर हाथ मंगले रहले , उहो बिना दहेज़ के। अनु शादी खातिर साफ़ मना क देले रहली पर मुरारी जी ऐ रिश्ता से मना ना क पवले। उनका अच्छा से याद रहे कि उनका गाँव के ही जमींदार साहब शर्मा जी किहाँ शादी खातिर केतना दिन से दौड़त रहले अउरी उहो लाखो के दहेज़ के साथे। पर शर्मा जी उनका पईसा के जगह लईकी के योग्यता चुनले। घर के आर्थिक स्थिति अउरी बाबूजी के परेशानी देखके अनु बाद में हां कह देहली अउरी शादी तय हो गईल। गाँव जवार में जे सुने उहे शर्मा जी के बडाई करे। दस लाख से भी ऊपर वाला शादी में उ मंगनी में करत रहले।
“अब का होई जी?” उनकर मलिकाईन ढेर देर से पसरल चुप्पी के तोडत पूछली।
“ना होई त एक बीघा जमीं बैनामा क देब। अब अईसन शादी छोडल त नईखे जा सकत”
“हरगिज ना बाबूजी” अनु किरोध से कहली “अईसन दहेज़ लोभी किहा हमर बियाह ना होई। हम भले सारा जीवन कुआर रहेब। पहले दुल्हन ही दहेज़ कहि के आल्टो मांगे लागले, का पता काल्ह कुछ अउरी मांगस। अईसन लोभी अउरी फरेबी किहाँ हमार शादी ना होई।”
आगे केहू कुछु ना कहल। सब के मालूम रहे की अनु केहू के बात ना मनिहे।
गाँव देहात में नीमन बात एक बार छुप भी जाऊ पर बाउर बात कबो ना छुपेला । एक दू दिन में ही सबके पता चल गईल की अनु के शादी कट गईल बा अउरी जे सुने ओही के अचम्भा। केहू के इ सुनके दुःख लागे त केहू के मन में ख़ुशी होखे अउरी केहू न्यूट्रल रहे।
“अगर तहके ख़राब ना लागे त इ शादी हम देखिती” एक हफ्ता बाद जमींदार साहब मुरारी जी से आके पूछले।
“नाही अयिमे ख़राब लागे वाका कवन बात बा।” मुरली जी कहले “पर हम इ जरूर कहेब कि अईसन आदमी किहाँ बेटी के बियाह कईल सही ना रही”
“देख मुरारी अयिमे उनकर दोष नईखे” जमींदार साहब कहनी “इ जमाना के चलन ही बा। आज के जमाना में बिना दहेज़ के शादी, सपना बा। आज त जवना के दुआर पर एगो पलानी नईखे उहो पल्सर मांगता। फेरु इ त इंजिनियर बा। इ शादी त कम से कम 10 लाख के बा। उ त खाली तह्से एगो तीन लाख के आल्टो मंगले बा। अब तहार उ देबे के हैसियत नईखे त ओयिमे ओकर का दोष।”
मुरारी जी आगे कुछु ना कहले। उनका मालूम रहे की इनके कुछु सम्झावल बेकार बा।
दू दिन बाद ही जमींदार साहब के बेटी से शर्मा जी के लईका के शादी तय हो गईल। पाहिले त शर्मा जी अउरी उनका बेटा के जमींदार साहब के लईकी कम पढला के वजह से पसंद ना रहे पर अनु के मना क देहला से उ लोग अपना के बहुत अपमानित बुझल लोग अउरी शान पर इ शादी तय भईल रहे।
नियत समय पर शादी धूमधाम से भईल अउरी जमींदार साहब अपना एकलौती बेटी के अपना शक्ति से ज्यादा दान- दहेज़ देके विदा कईले।
शादी जे बाद सबकुछ सामान्य हो गईल। गाहे बगाहे आके जमींदार साहब अपना बेटी के सुख के बडाई कईल ना भुलास अउरी मुरारी जी के हरदम इ अहसास करावस कि इ शादी ना क के उ केतना बड गलती कईले रहले।
शादी के ठीक दू साल बाद एक दिन सबेरे सबेरे गाँव में हल्ला मचल रहे। जमींदार साहब के घर से लोग के चिघांड मार के रोवे के आवाज आवत रहे। कुछ देर में पूरा गाँव के ओकर वजह पता चल गईल । जमींदार साहब के एकलौती बेटी के स्टोव फाटला से मौत हो गईल रहे। भोरे भोरे ओही के फ़ोन आईल रहे। मुरारी जी उनका दुआर पर पहुचले। घर पर अनु भी अपना सहेली के मौत पर दुखी रहली। उनका पास ही बईठल उनकर छोट भाई मनु चिंतामग्न रहले। उ कुछु सोचत रहले।
“पुष्पा दीदी के मौत स्टोव फाटला से कईसे हो सकेला?” मनु अनु से कहले ” उनका घरे त स्टोव रहबे ना कईल ह”
“का बात करतार” अनु चिहा के कहली “तहके कईसे मालूम बा?”
“दीदी हम तहके ओइदीन बतवनी नु की क्रिकेट मैच खेले हम क़स्बा गईल रहनी त हम पुष्पा दीदी किहाँ भी गईल रहनी अउरी उ हमनी के नाश्ता मिटटी वाला चूल्हा पर लकड़ी से बना के देहली। हम पूछबो कईनी दीदी तहरा किहा स्टोव या गैस चुल्हा नईखे त उ रोआसा होके कहली की अगर स्टोव या गैस आ जाई घर में त इ लौड़ी के सधावे के मौका कईसे मिली। उनका स्थिति से लागत रहे की उ बड़ा दुखी रहली।”
अनु आगे कुछु ना पूछली। उनका सब बात समझ में आ गईल। पुष्प दहेज़ लोभीयन ले लोभ के बलि चढ़ गेल रहली।
उ मनु के लेके जमींदार साहब के दुआर की अउरी चल देहली।
उनका दुआर पर सब केहू ऐ घटना से भौचक रहे। शोक में भी जमींदार साहब रह रह की पुष्पा के परिवार के बडाई अउरी ऐश्वर्य के बखान करत रहले।
“अब आगे का करे के बा?” मुरारी जी पूछले।
“अब आगे का होई। जीवन मरण पर केकर बस बा।भगवान् किहा से उनकर अतना दिन के ही जीवन रहल ह।” जमींदार साहब रोअत कहले।
‘बंद करी इ नाटक चाचा जी” अनु कहली “आज पुष्प रउवा लोभ के बलि चढ़ गईली और रउवा के भगवान् के मर्जी के कहतानी। बाऊजी रउवा के ओइदीन ही सम्झावनी की ओइसन लालची आदमी किहाँ शादी मत करी पर रउवा पईसा के घमंड पर जाके लालची आदमी किहाँ शादी क देहनी। आज परिणाम सबके सामने बा। पुष्पा के मौत स्टोव फाटला से नईखे भईल। उनके दहेज़ खातिर जान गईल बा”
“सच कहलू बेटी” जमींदार साहब दहाड़ मारके रोवे लागले “अपना बेटी की हम खुद मरले बानी अपना लालच से। वो दहेज़ के भेड़िया कुल के हाथे देकर। शादी के बाद से ही ओकनी के डिमांड बढ़त चल गईल अउरी हम सबके चुप्पे ओकनी के मांग पूरा करत रहनी ह।
पर हमरो त एगो सीमा बा। अब ऐ बेरी लईका के शहर में फ्लैट लेबे खातिर दस लाख रुपया चाहत रहल ह अउरी हम ना दे पवनी। हमके मालूम रहित की उ हमरा बेटी के मार दिह सन त हम आपन खेत बारी बेच के ओकनी के बात पूरा क देले रहिति।”
“रउवा जब सब मालूम रहल ह त फिर रउवा काहे बात छिपावत रहनी ह?” मुरारी जी आश्चर्य से पूछनी।
“समाज के डरे। इ सब जनला के बाद हमार समाज में इज्जत कईसे बचित। अहिसे हम डेराईल रहनी ह”
“चाचा इ समाज के डर ही त हमनी के समाज में सब बुराई के जन्म देले बा अउरी सब केहू ये डरपोक समाज के डर से बुराई के बढ़ावा देता।” अनु कहली “हर बात पर बड़का बड़का कानून झाडे वाला समाज, समाज के बुराई पर काहे मौन रहेला। काहे ना इ आगे बढ़के कहेला की दहेज़ लिहल दिहल पाप ह। काहे ना जे दहेज़ लेला देला ओके इ बहिस्कृत करेला। उलटे समाज ऐ बात के चर्चा करेला की के सबसे ढेर दहेज़ दिहल और केकरा सबसे ढेर दहेज़ मिलल। अगर केहू के लगे दहेज़ नईखे और ओकर बेटी कुआर बिया त ओकरा बेबसी पर हसी उड़ावेला पर कबो आगे बढ़ के इ ना कहेला की हमनी के एकर शादी कईल जाई। आज एही समाज में आपन इज्जत देखावे खातिर रउवा पुष्पा के लोभी कुल किहा भेज देहनी और आज जब उनके मार देहल सन त फिर रउवा समाज में शिकायत होखला के डर से चुप बानी। बंद करी ऐ मुर्दा समाज के चिंता और डर।”
सब लोग के बिच चुप्पी छा गईल। केहू के अनु के बात के काटे के हिम्मत ना रहे अउरी बात भी त एकदम सही रहे।
“चली पुलिस थाना चलल जा” कुछ देर बाद मुरारी जी कहनी अउरी उहाँ के पीछे पीछे जमींदार साहब अउरी गाँव के अन्य और लोग चल दिहल।
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