परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, रउवा सब खातिर हमनी ले के आईल सन भिखारी ठाकुर के 20 गो बेहतरीन गीत जवन कि उंहा के लिखल नाटकन से लिहल गइल बा। रउवा सभे जरूर पढ़ीं भिखारी ठाकुर के 20 गो बेहतरीन गीत । रउवा सब से निहोरा बा कि अगर रउवा सब इ भिखारी ठाकुर के गीतन के संग्रह अच्छा लागल त शेयर क के आगे बढ़ाईं।
बटोहिया
करिया न गोर बाटे, लामा नाहीं हउअन नाटे,
मझिला जवान साम सुन्दर बटोहिया।
घुठी प ले धोती कोर, नकिया सुगा के ठोर,
सिर पर टोपी, छाती चाकर बटोहिया।
पिया के सकल के तू मन में नकल लिखऽ,
हुलिया के पुलिया बनाइ ल बटोहिया।
आवेला आसाढ़ मास, लागेला अधिक आस,
बरखा में पिया घरे रहितन बटोहिया।
पिया अइतन बुनियां में, राखि लिहतन दुनियां में,
अखड़ेला अधिका सावनवां बटोहिया।
आई जब मास भादो, सभे खेली दही-कादो,
कृस्न के जनम बीती असहीं बटोहिया।
आसिन महीनवां के, कड़ा घाम दिनवां के,
लूकवा समानवां बुझाला हो बटोहिया।
कातिक के मासवा में, पियऊ के फांसवा में,
हाड़ में से रसवा चुअत बा बटोहिया।
अगहन-पूस मासे, दुख कहीं केकरा से?
बनवां सरिस बा भवनवां बटोहिया।
मास आई बाघवा, कंपावे लागी माघवा त
हाड़वा में जाड़वा समाई हो बटोहिया।
पलंग वा सूनवां, का कइली अयगुनवां से,
भारी ह महीनवां फगुनवां बटोहिया।
अवीर के घोरि-घोरि, सब लोग खेली होरी,
रंगवा में भंगवा परल हो बटोहिया।
कोइलि के मीठी बोली, लागेला करेजे गोली,
पिया विनु भावे न चइतवा बटोहिया।
चढ़ी बइसाख जव, लगन पहुंची तब,
जेठवा दबाई हमें हेठवा बटोहिया।
मंगल करी कलोल, घरे-घरे बाजी ढोल,
कहत भिखारी खोजऽ पिया के बटोहिया।
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल बिदेसिया नाटक से बा
बिदेसिया
कायापुर घर हउए, पानी से बनावल गउए,
अचरज अकथ ह नाम हो बिदेसिया।
चलली बहरवा से कानवां परल मोरा,
सती का विपति के मोटरिया बिदेसिया।
हउईं बोटहिया, लागल जब मोहिया त,
जोहिया लगाइ कर अइली बिदेसिया।
तोहरा जनानावां के आसरा लागल बाटे,
कब आइके देबऽ दरसनवां बिदेसिया।
मोरवा मचावे जइसे सोरवा गरज सुनि,
प्यारी छपटाली राही देखि के बिदेसिया।
छोड़िकर घरवा के बहरी ओसरवा में,
जल विनु मछरी के हलिया बिदेसिया।
बीसवा बरिसवा के, अनहीं ना केस पाके,
सांवर बरन प्यारी धनियां बिदेसिया
माथा के बारवा भंवरवा समान बाटे,
मुंहवां दीपकवा बरत बा बिदेसिया।
फूलवा सरिस जगदीशजी बनाइ कर,
पति के बियोग देइ दिहलन बिदेसिया।
सुनिकर कानवां में, गुनिकर मनवां में,
कहत भिखारी, घरे चलि जा बिदेसिया।
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल बिदेसिया नाटक से बा
मन बेचैन करत बा बिदेसिया
रंडी में ना कुछ बाटे, कुत्ता जइसे हाड़ चाटे,
एको नाहीं घाट तूहूं लगबऽ बिदेसिया।
छोड़िद अधरम, मिजाज के नरम तूं,
मनवां में करि लेहु सरम बिदेसिया।
धरम का नाव पर चढ़ि के मउज करऽ,
हरऽ बिरहिनियां के दुख हो बिदेसिया
आव तानी घर देखि, चलि जाई सान-सेखी,
डूबि मरऽ घुठी भर पानी में बिदेसिया।
तोहरी तिरियवा किरियवा के खाइ कर,
कहतारी पति बिनु गति ना बिदेसिया।
बिनु देखे चैन ना, दिन चाहे रैन ना,
मन बेचैन करत बा बिदेसिया।
बोलिया कोइलिया के गोलिया लागत बाटे,
होलिया समान फूंक दिहलऽ बिदेसिया।
आगि लागे धन में, पिलेग होखे तन में ओ
मति केहू परे रंडी फन में बिदेसिया।
जाके प्यारी धनियां के, हर लऽ हरनियां के,
छोड़ि दऽ कुचलिया रहनियां बिदेसिया।
कहत भिखारी सरदारी अतने में बाटे,
पनियां बहाने बोधऽ जनियां बिदेसिया।
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल बिदेसिया नाटक से बा
पियवा
जहिया से अइली पिया तोहरी महलिया में,
सब दिन रहली टहलिया में पियवा।
घर में सब काम, करत सूखल चाम,
सुखवा सपनवां भइल हमरा पियवा।
हरवा जोतत सइयां, तोहरो पिराला पइयां,
रोपेया के मुंह हम ना देखली हो पियवा।
बड़की गोतिनियां भइलि मलकिनियां से,
छैला चिकनियां भसुरवा हो पियवा।
नइहर में जाइकर, तोहरे इरिखा पर,
भउजी के लइका खेलाइब हम हो पियवा।
कहत भिखारी नाई, दुख देखि के मोर माई,
सुरपुर जाई प्रान तेजि के हो पियवा।
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल भाई विरोध नाटक से बा
हो बाबूजी
साफ क के आंगन-गली के, छीपा-लोटा जूठ मलिके
बनि के रहली माई के टहलनी हो बाबूजी।
गोवर-करसी कइला से, पियहा-छुतिहर घइला से
कवना करनियां में चुकली हो बाबूजी।
वर खोजे चलि गइलऽ, माल लेके घर में धइलऽ
दादा लेखा खोजलऽ दुलहवा हो बाबूजी।
अइसन देखवलऽ दुख, सपना भइल सुख
सोनवां में डललऽ सोहागावा हो बाबूजी।
बुढ़ऊ से सादी भइल, सुखवो-सोहाग गइल
घर पर हर चलववलऽ हो बाबूजी।
अवहूं से करऽ चेत, देखि के पुरान सेत
डोला काढ़ऽ, मोलवा मोलइहऽ मत हो वाबूजी
घुठी पर धोती तोर, आस कइलऽ नास मोर
पगली पर बगली भरवलऽ हो बाबूजी।
हंसत बा लोग गंइयां के, सूरत देखि के संइयां के
खाई के जहर मरि जाइब हम हो बाबूजी।
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल बेटी वियोग नाटक से बा
हो बाबूजी
लूजुर-लूजुर पिया, देखऽ मुंह लेके दिया,
कहीं कइसे, कहे नइखे आवत हो बाबूजी।
मुंहवां में दांत नाहीं, भात चूवे गाल माहीं,
बावला पर भीतरी सलंदर हो बाबूजी।
जीभ-दांत-ओठ-गाल, पान से भइल बा लाल,
काल लेखा लागत बा सुरतिया हो बाबूजी।
रतिया के छतिया में बतिया जरेला मोरा,
बीच डललस बिचवान मोर हो बाबूजी।
हम कहि के जात बानी, होई अबकी जीव के हानी,
नाहीं देखव नइहर नगरिया होबाबूजी।
रोइ-रोइ गवला के, अइसन पद मिलवला के,
नाम ग्राम कहि के सुनावत बानी हो बाबूजी।
हईं हम नाई जात, खोलि दिहली मुख बात,
लछिमी के लछन उतरलऽ हो बाबूजी।
पुरुव के कोना घर, गंगा के किनार पर,
छपरा से तीन कोस दिअरा में बाबूजी।
कहत भिखारी तूं खरारी के इयाद करऽ,
फेरु मति करिहऽ अइसन काम तूं हो बाबूजी।
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल बेटी वियोग नाटक से बा
पियऊ निसइल
कतना दिनन से कहत बानी तोहरा से,
कइलऽ ना कान हमार बात पियऊ निसइल।
बेचि के कमाई पुरुखन में उड़ाई कर,
अपने भइलऽ लहंगाझार पियऊ निसइल।
खेत-बारी, गहना तूं बेच देलऽ निसा खातिर,
घरे नइखे छीपा के ठेकान पियऊ निसइल।
सूई-डोरा घर में ना, लुगरी फाटल बाटे,
लड़िका रहत बा उघार पियऊ निसइल।
पंइचा मिलत नइखे, कवन जतन करी,
हफ्ता से बीतता उपास पियऊ निसइल।
धन में रहल बाटे बेरा लड़िका का हाथे,
तेहि खातिर करत बाड़ऽ मार पियऊ निसइल।
काढ़ि के सोनार घर, बेचि द अबहीं जाके,
खस्ची के रचिद उपाय पियऊ निसइल।
अगिया लागल बाटे अन बिनु पेटवा में,
चाक लेखा नाचता कपार पियऊ निसइल।
रहता चले के तनी हूब न करत बाटे,
हमरा के अन में मिला द पियऊ निसइल।
चिखना-सराब छोड़ऽ लड़िका के मुंह देखऽ,
अतना अरज मोर मानऽ पियऊ निसइल।
छोड़ि द सराब, तोहे कहता खराब समे,
हंसता नगरिया के लोग पियऊ निसइल
कुल-परिवार के खियाल करऽ मन माहीं,
जइसन हउवऽ खानदान पियऊ निसइल।
भजऽ सीताराम, हईं जाति के हजाम,
मोर नाम ह भिखारी, जिला सारन पियऊ निसइल।
पोस्ट गुलटेनगंज, कुतुबपुर मोकाम खास,
दिअरा में गंगा के किनार पियऊ निसइल।
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल कलियुग प्रेम (पियऊ निसइल) से बा
ए जसोदा जी
हम ना बसब तोहरा नगरी ए जसोदा जी,
हम ना बसब तोहरा नगरी।
मोहन जी धूरी में फाना उड़ावेलन,
पनिघट पर फोरेलन गगरी। ए जसोदा जी…
अबहीं त घरहीं में चरचा चलत बा,
जान जाई दुनिया भर सगरी। ए जसोदा जी….
रसिक बिहारी कपारे पड़ल बाड़न,
नित दिन बेसाहेलन रगरी। ए जसोदा जी…
कहत भिखारी बड़ाई होई एही में,
नन्द जी के बड़का बा पगरी। ए जसोदा जी…
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल राधेश्याम बहार से बा
दुलरुआ
बबुआ सुनहु बात, डगर आवत-जात
केकरो से बोले के गरज बा दुलरुआ?
ओरहन आइल तोर, दुखित भइल मन मोर
काहे भइलऽ अइसन मुंह जोर हो दुलरुआ?
केहू के तूं देलऽ गारी, रोवत घरे अइली नारी,
सारी फारि दिहलऽ गरीब के दुलरुआ!
करि के रगरिया गगरिया केहू-केहू के
फोरिकर फेंकलऽ गेडुरिया दुलरुआ!
भइल बाड़ऽ बावन वीर, दुअरा पर लागल भीर,
काहे जालऽ जमुना का तीर हो दुलरुआ!
माखन-मलाई खालऽ, बछरू चरावे जालऽ,
करे खातिर गिधवामिसान हो दुलरुआ!
छोड़ि द ढिठाई काम, कृष्णचन्द्र बलराम,
करत बा लोग बदनाम हो दुलरुआ!
अबहूं से करऽ ज्ञान, छोड़ि द अइसन बान,
नाहीं त छोड़ब हम ना जान हो दुलरुआ!
धइले बाड़ऽ नीमन साथ, रसरी में बान्हब हाथ,
काहे जालऽ बछरू चरावे हो दुलरुआ!
नोकर बहुत मोरा, कवन फिकिर बाटे तोरा,
घेरले बा लोग चारू ओर से दुलरुआ!
देखि के लागत बा लाज, रहितन जो घरे आज,
मालिक होइतन अनराज हो दुलरुआ!
हिरदय बसहु आई, पितु कृष्ण राधे माई,
कहत भिखारी नाई गाइ के दुलरुआ!
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल राधेश्याम बहार से बा
गोरिया
सुनिलऽ हमार कहल, मन बा तोहार दहल,
उमिर मोहन के नादान बा हो गोरिया!
कइसे हेराइल बूध, बोलत नइखू, बोली सूध,
नखऊ विचार बड़-छोट के हो गोरिया!
बबुआ नादान बाटे, लगलू कसीदा काटे,
झूठहूं के लहरा लगवलू हो गोरिया!
झगरे के हऊ मन, कतिना ब तोरा धन,
हन-हन झन-झन छोड़ि द हो गोरिया!
नाहीं त जुलुम होई, राजा जी से कही कोई,
तब नाहीं बसबू नगर में हो गोरिया!
लगन हमार लखि, जरत-मरत बाडू सखी,
अनभल छोड़ि द मनावल हो गोरिया!
परल बाडू हाथवा में, चलऽ हमरा साथवा में,
कहब तोहरा भाई-भउजाई से हो गोरिया!
चलऽ बबुआ दूनों भइया, जहवां इनिकर हवहिन मइया,
नीके पुरवासाठ करिके छोड़ब हम हो गोरिया!
मंहवां के राखऽ लाली, काली कलकत्ता वाली,
कहत भिखारी नाई गाइ के हो गोरिया!
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल राधेश्याम बहार से बा
गंगा मइया!
गंगाजी के भरली अररिया,
नगरिया दहात बाटे हो,
गंगा मइया! पनिया में जनियां रोवत बाड़ी
कंत विदेस मोर हो!
घरवा में धारवा बहत बा,
पुकारवा होखत बाटे हो,
गंगा मइया! तनवां में अनवां मिलत नइखे
नयना से गिरे लोर हो!
तेरह सऽ एकतालिस साल, सावन सुदी,
घर में ना रहल खुदी हो,
गंगा मइया! सुकवा के लुकवा लगाइकर
भइलू काहे निपटे कठोर हो!
कहत भिखारी नाई, गीत गाके,
रचि-रचि चित्त लाके, हो,
गंगा मइया! जनम-जनम दीह दरस
तरस बाटे सांझ-भोर हो!
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल गंगा स्नान से बा
घरनी…
घरनी चलली घर से मेला
हंसुली का ऊपर से हैकल पहिरली,
सोभत बा कइसन घघेवा। घरनी…
सतुआ-पिसान मनमान नइखे होखत,
खइहन बजार के महेला। घरनी…
अइसन रूप अनूप देखिके
गुंडा कपार पटकेला। घरनी….
कहत भिखारी, जारि जीव दिहली
अतना दुलार के सहेला? घरनी…..
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल गंगा स्नान से बा
हम ना रहबि जुअनढहना का घर में।
चार भाई अपने बा, तीन भउजाई,
अब कब सुख होई एह लहबर में?
चानी में जानी के बाटे भुलवले,
सोना के गहना न परल गतर में।
बनी चाहे बिगदी, बोलाई चाहे भउजी,
गुजर करबि रहिकर बपहर में।
अभू बुझात नइखे, देखल नइखे,
पूछि लेहब राहगीर से डगर में।
कहत भिखारी, देहाती ना हईं,
नइहर हमार बाटे पटना सहर में
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल गंगा स्नान से बा
चरन….
चरन कमल बलिहारी ए रघुवर!
गनिका-अजामिल-गीध, सुपच के कइलऽ सीध,
हउअऽ तूं अधम उधारी ए रघुवर। चरन….
ताड़िका-सुबाहु मारि, तारि गौतम के नारी,
गइलऽ जनक-फुलवारी ए रघुवर! चरन…
मन तूं घमण्ड तजऽ, मातु-पिता के भजऽ,
उमा सहित त्रिपुरारी ए रघुवर! चरन…
कहत भिखारी दास, चरन में लागल आस,
मन, कर्म, वचन हमारी ए रघुवर! चरन..
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल गंगा स्नान से बा
ए मोर जाउत दुलरू
ए मोर जाउत दुलरू, काइ तोहार कइली हम नुकसान?
बन में रोएली काकी, अब का रखले बाड़ऽ बाकी?
ए मोर जाउत दुलरू, भइल हीत-नाता में बखान। ए मोर…
कवने कारन करब घात, खोलि के कहि दऽ बात
ए मोर जाउत दुलरू, आजुए से करि लेहब गेयान। ए मोर….
नगर देखलाइ दऽ, तनी-भर दरसन करवाइ दऽ
ए मोर जाउत दुलरू, लागल बा पतोहिया में धेयान। ए मोर….
कहत भिखारी दास, भेजि दिहलऽ सतनास
ए मोर जाउत दुलरू, जम आगे करबऽ का बेयान? ए मोर….
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल विधवा-विलाप से बा
मन राधेकृस्र बोलऽ
खोलि दऽ कपट के केवारी हो, मन राधेकृस्न बोलऽ!
सेत भइल केस, काल पकड़लस,
ना जाने, केहि घरी मारी हो, मन राधेकृस्न बोलऽ!
राम नाम में दाम ना लागत,
मिलत बा रतन उधारी हो, मन राधेकृस्न बोलऽ !
घरी-घरी हरिनाम सुमिरि लऽ,
भरी भंडार के कोठारी हो, मन राधेकृस्न बोलऽ!
नर तन पाइ काइ अब करबऽ,
कहत भिखारी रूपधारी हो, मन राधेकृस्र बोलऽ!
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल पुत्र-वध से बा
स्वामीजी
सिव-सतीजी के पूत, देवन में मजगूत,
गिरत बानी तोहरे चरन में हो स्वामीजी!
गवना कराके गइलऽ, घर के ना सुधि कइलऽ
मरतानी तोहरा वियोग में हो स्वामीजी!
हाथ-बांहि धइला के, सादी-गवना कइला के,
आज ले ना कइलऽ निगाहवा हो स्वामीजी!
बबुआ भइलन पैदा, कुछ ना मिलल फैदा,
सब विधि कइलऽ बेकैदा हो स्वामीजी!
आस मत नास करऽ, बेटा के रहे द घर,
पगली के प्रान के आधार मोर हो स्वामीजी!
पोसत बानी बचेपन से, बबुआ के तन-मन से
कसहूं उपास आध पेट खाके हो स्वामीजी!
कहत भिखारी नाई, देहु खीस बिसराई,
उजरल घर के बसा दऽ मोर हो स्वामीजी!
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल गबरघिचोर से बा
भउजिया
भउजी सुनिलऽ मोर बात, नइखे नइहर रहल जात,
जाके करब वन में भजन हो भउजिया!
सेज मिरिगा के छाल, ओढ़ना भेड़ी के बाल,
जंगल में मंगल उड़ाइब हो भउजिया!
सारी गेरुआ के रंग, मलिके भभूत अंग,
गलवा के तुलसी के मलवा भउजिया!
छुरा से छिला के केस, धरबि जोगिन के भेस,
लेइब एक हाथ में सुमिरनी भउजिया!
नइहर से छूटल लाग, खाइब कंद-मूल-साग,
अनवां बउरावत बा बेइमानवां भउजिया!
पिउ-पिउ करब सोर, मन लागल बाटे मोर,
बांवां करवा में सोभी कमंडलवा भउजिया!
बानी पर धेयान दीहन, जंगल में खोज लीहन
दयानिधि चरन का चेरी के भउजिया!
कहत भिखारी दास, कातिक से चार मास,
जाड़ में लेहब जलसयन भउजिया!
फागुन से महीना चारि, धूई चउरासी जारि,
ताहि बीच में हरीगुन गाइब हो भउजिया!
रितु बरसात भर, करि-करि हर-हर,
गउरी-गनेस के पूजब हो भउजिया!
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल ननद-भउजाई से बा
हे सखि
अवध से अले चितचोरवा, हे सखि, चलऽ वर परिछे।
बाल-वृद्ध जुवती उठि धउरत, करि-करि के आपुस में सो खा।
हे सखि ….
साजि के सिंगार सब गहना पहिरि लऽ, नीमन लहंगा-पटोरवा॥
हे सखि …
दही, अछत, गुर दउरा में धरि लेहु, भरि लेहु सेनुर सिन्होरवा।।
हे सखि …
रथ पर समधी संगे बरिअतिया, लागत बा कइ एक करोरवा।।
हे सखि ….
हाथी प साधु सब माला लगवले, सिर चनन कइले बा खोरवा।
हे सखि ….
धावल आवत बाजा बजावत, नगर के कइले हंडहोरवा॥
हे सखि …
अवध के लोग खखुआइन अइलन, खाए खातिर केरा-परोरखा।
हे सखि …
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल राम विवाह से बा
हे त्रिपुरारी
अब पत राखऽ गोबरधनधारी, दुसमन खींचत चीर हमारी
छत्री-बंस बिधंस हो गइलन, सभा में कलपति नारी॥
ससुर, भसुर, पति, देवर जाउत, सब बइठल मन मारी॥
पैर में पीर सरीर दुखित बा, मासिक करम लचारी॥
दुःसासन दुरदसा बनावत, दुरजोधन ललकारी॥
सब अपना सपना हो गइलन, नाहक जाल पसारी॥
धरती हमें पताल खिला दऽ, आपन करेजा फारी।।
कहत भिखारी हमारी माफ कर, सब अवगुन त्रिपुरारी॥
दया के सागर परम उजागर, अधम से लेहु उबारी॥
इ गीत भिखारी ठाकुर के लिखल द्रौपदी-पुकार से बा
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