यह नाटक भिखारी ठाकुर के अलग व्यक्तिव को प्रस्तुत करता है। गबरघिचोर नाटक में एक गलीज नामक व्यक्ति शादी के तुरन्त बाद ही अपनी नवागता पत्नी को गड़बड़ी नामक अपने पड़ोसी पर छोड़कर कमाने के लिए विदेश चला जाता है। कई वर्षों तब उसने घर की खोज-खबर नहीं ली। पन्द्रह वर्षों बाद जब वह आता है तो उसकी पत्नी को गड़बड़ी से जन्मा तेरह वर्ष का एक लड़का है, जिसका नाम गबरघिचोर रखा गया है।
गलीज और गड़बड़ी में लड़के के लिए वाद-विवाद होता है। पंच बुलाये जातेहैं। दोनों अपने तर्क प्रस्तुत करते हैं। गड़बड़ी कहता है कि गबरचिंचोरन हमारा हैऔर गलीज कहता है हमारा। गलीज की पत्नी कहती है, पुत्र पर न तुम्हारा अधिकार है और न तुम्हारा? वह हमारा है। नाऊ-चमार बुलाकर आप लोग पूँछ लें”.
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अंत में पंच निर्णय करते हैं कि लड़के में तीन हिस्से करके तीनों को बांट दिया जाये। इस पर माता अपना हिस्सा लेना नहीं चाहती। तब उसके दो हिस्से करने का निश्चय होता है। इस पर माता कहती है कि मेरे बेटे के दो टुकड़े नहीं होंगे, बल्कि किसी एक को इस जीवित दे दिया जाये। इससे पंच प्रभावित होते हैंऔर कहते हैं कि लड़के के लिए जिसे दर्द है, उसी को यह मिलेगा। गबघिचोरन अपनी माँ को मिलता है। गलीज और गड़बड़ी उदास होकर घर जाते हैं।
नाटक गबरघिचोर का पात्र परिचय
गलीज – गाँव का एक परदेशी युवक।
गड़बड़ी – गाँव का एक आवारा युवक।
घिचोर – गलीज बहू से पैदा गड़बड़ी का बेटा।
पंच – गाँव का एक मानिन्द आदमी।
गलीज बहू – गलीज की पत्नी और गबरघिचोर की माँ। जल्लाद, समाजी, दर्शक आदि।
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