भाषाई आन्दोलन के शुरुआत
भारत में भाषाई आंदोलन के शुरुआत उन्नीसवीं सदी के आखिरी दौर में भइल एकरा में भाषा आ ओकर लिपि-सुधार, भाषा के विशुद्धतावाद, भाषा आ ओकर बोली के मानकीकरण, राजकाज के भाषा खोज आ आंठ्वी अनुसूची में भाषा के राखे के मुहीम चले लागल.
देखल जाव एकर ऐतिहासिक पक्ष के त Joseph E. Schwartzberg के एगो आलेख Paul wallace के सम्पादन में निकल एगो किताब – Region and Nation In India (New Delhi: Oxford & IBH Publishing Company Pvt. Ltd.,1985) छपल रहे. जेकरा में कहल बा कि “जबकि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भाषाई प्रान्त (linguistic province) के स्थापना खातिर 1920 नागपुर में एगो प्रस्ताव पारित कइलस, बाकिर भाषाई प्रान्त के प्रस्ताव सन 1903 ब्रिटिश प्रशासन आ कांग्रेस दूनू के ओरि से अनेकानेक अवसर पर राखल गइल रहे, जबकि सर हर्बर्ट रिसले (Herbert Risely), भारत सरकार के पूर्व गृह सचिव के द्वारा ई मुद्दा सबसे पहिले तब राखल गइल रहे जब बहुभाषी बंगाल प्रेसीडेंसी के विभाजन के प्रस्ताव राखल गइल रहे.”
वइसे त ई प्रस्ताव के लार्ड कर्जन ना मनले बाकिर 1905 में बंग-भंग भइल, लेकिन भाषाई आधार पर ना कहल जाई काहे कि पूर्वी आ पश्चिमी बंगाल में भाषा बांग्ला के ही प्रमुखता बरक़रार रहे. 1912 में बिहार बंगाल से अलग भइल एह तरह बंगाल ‘बांग्ला’ भाषा के प्रान्त बनल रहे जबकि ओह में
ओडिया भाषी आ असमिया भासीयो रहलें.
इहो एगो सच्चाई बा कि बहुभाषी बिहार में 1908 में पहिल कांग्रेस भाषाई प्रान्त के स्थापना भइल आ 1917 में कांग्रेस भाषाई प्रान्त क्रमश: सिंध आ आन्ध्र में बारी बारी से भइल.
संतोष पटेल जी के अउरी रचना पढ़े खातिर क्लिक करी
भारत में भाषाई प्रान्त के मान्यता के मांग, आज़ादी से बहुत पहिले से रहे एकरा पर छानबिन करब त पाएब कि 1917 ई में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन भइल रहे एही अधिवेशन में भाषाई आन्दोलन के नेंव पडि गइल जइसन कि संजय नाग के एगो आलेख 17-24 जुलाई, वर्ष 1993 में मुम्बई इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल वीकली में एगो छपल आलेख “ Multiplication of Nation? Political, Economics of Subnationalism in India में आइल बा. नाग के कहनाम बा कि कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में “भाषाई पुर्नगठन के सिद्धांत” (Principle of Linguistic re-organization) के मान लीहल गइल.
एकर नतीजा इ भइल कि 1921 में कांग्रेस के इकाईन क्षेत्रीय शाखा के भाषाई आधार पर पुर्नगठन कइल गइल इहे ना आज़ादी के ठीक बाद 1948 में जस्टिस एस के डार (S.K.DAR) के अध्यक्षता में एगो कमीशन गठित भइल जवन भाषाई प्रोविंस (प्रक्षेत्र) के आवश्यता पर अध्ययन कइलस ओकरा
बाद 1953 में गठित कइल जवण आपन रिपोर्ट 1956 में देले रहे. एकरा में 14 गो राज्य आ 6 गो केंद्र शासित राज्य के अनुशंसा रहे जइसन कि सुप्रसिद्ध इतिहाकार बिपिन चंद्रा, आदित्य मुखर्जी आ मृदुला मुखर्जी की पुस्तक “ India After Independent, 1947-2000, पेन्गुईन बुक्स, वर्ष-2000, पृष्ठ संख्या-98-101) में लिखल बा. Jyotirindra Dasgupta,( Language conflict and national Development, Mumbai, OUP, 1970, P-227) कहत बाड़न- “1958 ई में गोबिंद बल्लभ पन्त क्षेत्रिय भाषा के महत्व के देखत कहलें रहलीं – “The regional language should be supreme in their own sphere not only in the sphere of administration but also in the sphere of commerce, low and education.
तमाम तथ्यन पर धेयान दिहल जाव त पाएब कि भाषाई प्रान्त के प्रस्ताव आज़ादी के बहुत पहिले से उठल. आनी 44 साल पहिले. अब सवाल बा कि जब क्षेत्रीय भाषा आ प्रान्त के मांग शुरू भइल त भोजपुरी के 50 हजार वर्गमील काहे ना आपन आवाज़ उठवलस, बाकिर इ सांच नइखे. भोजपुरी क्षेत्र में नव जागरण भइल उहों प्रान्त आ भाषा के बात भइल जइसन कुलदीप नारायण झड़प जी लिखत बानी –भोजपुरी चेतना के प्राण : श्री केदार पाण्डेय नामक आलेख में की- भोजपुरी की चर्चा होने पर “ भोजपुरी आन्दोलन” का सारा इतिहास सामने झलक उठता है.
भोजपुरी आन्दोलन भोजपुरी जनपदीय योजना का ही एक अंग है, जिसके प्रवर्तक पंडित बनारसी दास जी चतुर्वेदी हैं, उन्ही के प्रयास से सन 1930 ई में ‘ब्रज साहित्य मंडल’ की स्थापना आगरा में हुई थी और उन्हीं के प्रेरणा से सन 1946 ई में भोजपुरी आन्दोलन का सूत्रपात हुआ, जिसका माध्यम उन्होंने मुझे बनाया, फलस्वरुप, “ अखिल भोजपुरी प्रांतीय साहित्य-सम्मेलन’ का पहिला अधिवेशन में प्राय: समस्त भोजपुरी क्षेत्र के प्रतिनिधि गण पधारे एवं सन्देश-सहयोग किया. उस अधिवेशन की अध्यक्षता आचार्य पं बलदेव उपाध्याय ने की. इसी क्रम में दुसरे और तीसरे सम्मलेन क्रमश: महापंडित राहुल संकृत्यायन तथा डॉ उदय नारायण तिवारी की अध्यक्षता में गोपालगंज और बलिया में हुए.”
भोजपुरी नव-जागरण के पक्ष
भोजपुरी भाषा के क्षेत्र बहुत लमहर बा. उदय नारायण तिवारी जी आपन पुस्तक ‘ भोजपुरी भाषा साहित्य’ में एकर क्षेत्र 50 हज़ार मिल तक फइलल मनले बानी. एह भासा के से प्रवजन (migration) बहुत भइल बा. 1834 से भोजपुरिया लोगन के प्रवजन भारत के सुदूर दक्षिण अफ्रीका, नाटाल, मॉरिशस आ कैरिबियन देस में सूरीनाम, जमैका, ब्रिटिश गुयाना, ट्रिनिडाड एंड टोबागो आ वेस्ट इंडीज के छोटहन छोटहन द्वीप पर भइल एकरा से भोजपुरी के पहचान अन्तर्राष्ट्रीय बनल संगे संगे हिंदी भाषा के पनपे के आ जवान होखे के एगो विशाल गोदी मिलल.
भोजपुरी भाषा के आन्दोलन आ प्रान्त बनावे के एगो मजबूत मुहीम चलल. बाकिर ई जरुर बा कि कुछ संस्था छिटपुट तरीका से भोजपुरी राज्य भा भोजपुरी अंचल खातिर आवाज उठवलस. भोजपुरी राज्य के मांग में दिसाई एगो आभासी नक्शा बनवल गइल संगही भोजपुरी भासी क्षेत्र के पिछड़ापन के दूर करे ला एगो राज्य के स्थापना पर बल दिहल गइल जवन ‘ भाषाई राज्य पुर्नगठन के सिंद्धात’ के अनुरूप रहे.
भोजपुरी प्रान्त आ भाषा के संवैधानिक मान्यता के मांग दुनु में आन्दोलनकारी लोग भोजपुरी भाषा के सांविधानिक मान्यता पर बल देलें. ‘अखिल भारतीय प्रांतीय सम्मलेन’ के अधिवेशन साल 1947 में भइल.
एह सम्मलेन में ई बात पर बल दिहल गइल कि भोजपुरी क्षेत्र सांस्कृतिक रूप से प्राचीन क्षेत्र रहल बा इहाँ साझा संस्कृति बा एही से अंग्रेज लोग एकरा के तुड़ के बिहार आ संयुक्त प्रान्त(United Province) बना दिहले. जइसन के पीछे बतावल बा 1908 में बिहार के पहिला भाषाई प्रान्त बनावल गईल बाद में 1912 ई में बिहार बंगाल से अलग भइल फेर संयुक्त प्रान्त से 1936 में उड़ीसा उहे बंगाल प्रेसीडेंसी से आसाम 1912 में आलग भइल.
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की रिसर्च स्कॉलर Neena आपन किताब Cultural Regionalism And Hindi Nationalism : An Analysis of Identity-Formation Among Bhojpuri Speech Community(1989: 150) में लिखत बानी कि- “ The statehood demand was first raised in a resolution of the first Bhojpuri Sammelan, in March, 1947. The resolution is like this- ….The Sammelan believes that inhabitants of Bhojpuri have had old culture, and style of its own.
Due to their vested interests, Britishers divided Bhojpuri region into Bihar and united Province. This political arrangement is ridiculous. This is high time to bring the whole of Bhojpuri region into one province.
This sammelan appeals to Legislative Assembly to grant statehood to Bhojpuri region. The sammelan also proposes to launch a movement to achieve this objective using peaceful means.
In December 1947 second Bhojpuri Sammelan was organised which was presided over by Rahul Senskrityayan. Presiding over the semmelan he demanded a separate province for Bhojpuri speaking population. In this presidental address he said: “It is ridiculous that we were divided provinces. We can not tolerate this between injustice two for long. Now province of we are a free country, If our own we can manage whatever way we choose.”
पटना विश्वविद्यालय के दिवंगत प्रोफेसर पपिया घोष के एगो अधुरा अंग्रेजी आलेख बा जवन उहाँ के हत्या भइला के चलते पूरा ना हो सकल “ Politics of Language & Culture in Bihar” (2006) लिखती है – “ It was recognized from the very beginning that regional, ethnic, linguistic and religious diversity within India should be recognized and accepted to strengthen Indian’ Unity”
प्रो पपिया घोष के मानल रहे कि “भोजपुरी भाषा के सांविधानिक मान्यता के मांग के आन्दोलन शुरुए एगो गैर राजनीतिक आन्दोलन ही बनल रहे.” भोजपुरी भाषी धरती परम्परा से आन्दोलन के धरती रहल बिआ. बाकिर अपना भाषा के, सहित्य आ संस्कृति के लेके एकरा आन्दोलन के सुगबुगाहट आज़ादी के लड़ाई के संगे संगे शुरू भईल. ओह आन्दोलन के सूत्रधार लोग में प्रमुख रहीं – बहुभाषाविद आ बहुमुखी प्रतिभा के धनी महापंडित राहुल सांकृत्यायन, पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी, डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल, परमेश्वरी लाल गुप्त, वगैरह .चतुर्वेदी जी सन 1934 ई कलकत्ता के ‘विशाल भारती’ में एह आन्दोलन के ऊपर एक लेख लिखनी.
भोजपुरी के पक्ष में सबसे पहले सुगबुगाहट त 10 मार्च 1940 में कुंडेश्वर (टीकमगढ़) में आयोजित ब्रज और बुंदेलखंड से आइल कार्यकर्ता लोगन के बैठक से भइल फेर 1942 में एह आन्दोलन से जुडल अग्रवाल जी एगो योजना बनवानी की पूरा जनपद के एक एक इकाई मान के उहाँ के भाषा, साहित्य, संस्कृति आ लोक साहित्य आदि के विधिवत अध्ययन हिंदी के जरिये होखे के चाहीं बाकिर राहुल जी एकरा से भिन्न विचार राखत रही उन्हा के विचार रहे कि भोजपुरी भाषा, साहित्य और संस्कृति के बात भोजपुरिये में होखे के चाहीं . उहाँ के आपन विचार ‘हंस’ पत्रिका के माध्यम से 1943 ई में लोगन के बीच पहुचा देनी. जवना में भाषा के आधार पर राज्य के पुर्नगठन, ओह राज्य के शिक्षा के माध्यम उन्ह्वे के भाषा के बनावे आ ओह भाषा के सरकारी भाषा बनावे के पक्ष में आपन विचार देलन.
सन 1944 में बनारसी दास चतुर्वेदी के आग्रह पर गणेश चौबे जी भोजपुरी साहित्य मंडल के स्थापना खातुर ‘आज’ आ ‘नवशक्ति’ में तीन –चार लेख लिखा. ओही समय भोजपुरी क्षेत्र में डॉ उदय नारायण तिवारी, डॉ परमेश्वरी लाल गुप्ता, पंडित महेंद्र शास्त्री, श्री कुलदीप नारायण ‘झड़प’, दुर्गा शंकर प्रसाद सिंह ‘नाथ’ एह खातिर आपन आपन क्षेत्र में सक्रीय रहे लोग. सन 1947 ई में एह विद्वान लोग के अथक प्रयास के बाद सिवान में पहिला भोजपुरी प्रांतीय साहित्य सम्मेलन का गठन भइल जेकरा अध्यक्ष पंडित बलदेव उपाध्याय कइनी. ओकर प्रधानमंत्री डॉ परमेश्वरी लाल गुप्त बनावल गइल.
डॉ जयकांत सिंह के कहनाम बा कि ‘ हमरा अब तक के अध्ययन के अनुसार, दुनिया के सबसे पहिला भोजपुरी सेवी साहित्यिक संस्था ‘ सारण जिला भोजपुरी साहित्य सम्मलेन’ के गठन अप्रेल, 1947 में भइल जेकरा में डॉ राहुल जी, डॉ राजेंद्र प्रसाद, जगलाल चौधरी, प्राचार्य मनोरजन प्रसाद सिन्हा, आचार्य शिवपूजन सहाय, महेंद्र शास्त्री, सिपाही सिंह श्रीमंत, संतकुमार वर्मा जइसन भोजपुरी भाषा आ साहित्य के प्रेमी लोग के महत्व पूर्ण योगदान रहे. ( साभार – भोजपुरी के विकास में सारण जिला के योगदान, डॉ जय कान्त सिंह जय) भोजपुरी लोक पत्रिका, दिसम्बर- जनवरी, 1992-93 के अंक में मोतिहारी, पूर्वी चम्पारण के भोजपुरी गद्यकार से पंडित गणेश चौबे जी बतवले रही की – ” जनपदीय आन्दोलन के तीन गो रूप रहे – डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल की ‘जनपद कल्याणी योजना’ के तहत देश के प्राचीन जनपदन के एक एक इकाई मान की उहाँ के पूरातत्व इतिहास, भाषा, साहित्य, लोक साहित्य, संस्कृति, पूजा, पर्व त्यौहार, रस्म रिवाज, प्रथा, कला-कौशल, नदी वन-पर्वत, जन जीवन, आ
अर्थव्यवस्था के आध्याँ हिंदी के माध्यम से होई.
उहे पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी के ‘ विकेंद्रिकरण योजना’ रहे, उहाँ के चाहत रही कि हरेक जनपद में साहित्यिक सामग्री के संकलन आ साहित्यिक गतिविधि के अग्रसर करे ला जनपदीय संस्थन के गठन होखे के चाहीं.
तीसर योजना रहे – महापंडित राहुल सांकृत्यायन के – “मातृभाषाओं का प्रश्न” राहुल जी के विचार रहे प्राचीन जनपद के आधार पर प्रान्त के गठन होखे के चाहीं, ओह जनपद के भाषा के उहा के राज्यभाषा बनावे के चाहीं,, ओही में साहित्य सृजन होखे आ शिक्षण संस्था में शिक्षा के माध्यम
उहे भाषा बने. डॉ अग्रवाल और पंडित चतुर्वेदी के प्रस्ताव पर भोजपुरी भाषी लोगन के आप्पति रहे . राहुल जी के योजना में भोजपुरी चार भाग में बंटत रहे, स्थानीय भाषा में उच्च शिक्षा सम्भव ना रहे, उनकर विचार राजनीति और रूस से प्रभावित रहे. एह योजना पर सभकर सहमती ना रहे.
जनपदीय आन्दोलन के फलस्वरूप जनपदीय संस्था के स्थापना होखे लागल, भोजपुरी में रचना होखे लागल, पुस्तक आ पत्र पत्रिका बहरे लागल, हम डॉ बासुदेव शरण अग्रवाल के पस्ताव के पक्षधर रही आ हम पूरा मन से काम करे लगनी , 1960 से भोजपुरी में लिखल शुरू कइनी आ ओही बेरा बिहार में भाषाई कुचक्र शुरू भईल आ राजनीती से समर्थन मिले लागल.”
इहाँ बतावल जरुरी बा कि डॉ बनारसी दास चतुर्वेदी के ‘ हम क्या करें’, महापंडित राहुल सांकृत्यायन ‘मातृभाषाओं का प्रश्न’ आदि लेख ‘ मधुकर’ नामक पाक्षिक में आइल. अप्रैल –अगस्त 1944 ई में मधुकर पाक्षिक में जनपद आन्दोलन के अंक छपलस जेकरा में कृष्णदेव उपाध्याय लिखित’ भोजपुरी लोक साहित्य’ आ डॉ उदय नारायण तिवारी लिखित’ भोजपुरी व्याकरण’ के किताब प्रकाशित कइलस.
क्रमशः …….
रउवा खातिर:
भोजपुरी मुहावरा आउर कहाउत
देहाती गारी आ ओरहन
भोजपुरी शब्द के उल्टा अर्थ वाला शब्द
जानवर के नाम भोजपुरी में
भोजपुरी में चिरई चुरुंग के नाम