परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आयीं पढ़ल जाव जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी के लिखल बबुआ! कुल्हि कउड़ी के तीन , रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं, अगर रउवा जयशंकर प्रसाद द्विवेदी जी के लिखल रचना अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।
सब मनई बा उनके आंटल,
आंटल नाही उनुका जमीन
बबुआ! कुल्हि कउड़ी के तीन॥
घूम अनेरिया ठाँव बनवलें
चिक्कन जगहा पाँव जमवलें
मास चढ़ल बा बनल कहानी
सभही करत बाटे हीन।
बबुआ! कुल्हि कउड़ी के तीन॥
सूखल बा अँखियो से पानी
जरल देहिया अस ज़िंदगानी
खपल जिनगी धन के खातिर
तबों बतावे लोगवा दीन।
बबुआ! कुल्हि कउड़ी के तीन॥
आग लगाई पीटत छाती
तिक्खर लागे सुघ्घर बाति
समुझावत के हलफ़ा सूखल
भइस के आगु बाजल बीन।
बबुआ! कुल्हि कउड़ी के तीन॥
लुटलें खइलें देश बिगरलें
भर दिन आपन केस संवरलें
जरिको झूठ कहीं न इहवाँ
मुँह देखते बरता घीन।
बबुआ! कुल्हि कउड़ी के तीन॥
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