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धनंजय तिवारी जी के लिखल भोजपुरी कहानी ट्रैन

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धनंजय तिवारी जी
धनंजय तिवारी जी

ठीक रात के नौ बजत रहे जब रजत स्टेशन पहुँचले। उनका जवन ट्रैन पकडे रहे उ सामन्यतः समय से ही आवे। माइक पर ट्रैन के बारे में उद्घोषणा होत रहे। ट्रैन दू घंटा लेट रहे। इ सुनके उनकर मन खिन्न हो गईल। वइसे त उनका ट्रैन के सफर से ही घृणा रहे लेकिन ट्रैन अउरी ट्रैन के लेट भईला से बड़ा नफरत रहे। ऐ ट्रैन के वजह से ही उ अपना जिनगी के सबसे बड़ चीज खो देले रहले। ऐ वजह से जबले मजबूरी ना होखे उ ट्रैन के तरफ ताकस भी ना। आजु फेरु ट्रैन से आवे के बात सुनके उनकर पुरनका घाव ताजा हो गईल।

उनका लगे दूसर रास्ता ना रहे सिवाय प्रतीक्षालय में जाए के काहे कि स्टेशन पर मच्छर कुल के भरमार रहे। प्रतीक्षालय में पंखा चलला के वजह से कम मच्छर लाग सन। उ सीधे प्रतीक्षालय के तरफ बढ़ गईले। प्रतीक्षालय एकदम खाली रहे। उ एगो पत्रिका निकाल के पढ़े लगले।

कुछ देर बाद प्रतीक्षालय में एगो बूढ़ आदमी अउरी एगो महिला के आगमन भईल। बूढ़ आदमी के लगातर खसला से उनकर नजर बरबस ओने चल गईल। अरे इ त अंग्रेजी वाला मास्टर साहब मिश्रा जी रहनी अउरी साथ में पुष्पा रहली। लेकिन पुष्पा अतना सादा भेष में काहे रहली ? एगो विबाहित युवती वाला कवनो निशानी ना रहे उनकर शरीर पर। ना मांग में सिन्दूर, ना माथे पर बिंदी ना हाथ में चूड़ी। कपडा भी एकदम उदास अउरी ग़मगीन।

उनकर चेहरा पुष्पा ना देखलेस एकरा खातिर उ पत्रिका से अपना चेहरा के ढक लेहले। आखिर उनका पुष्पा के आखरी बात जे माने के रहे।
फेरु से पत्रिका पढ़े के कोशिश करे लगले पर अब कोशिश बेकार रहे। पुरान बात दिमाग में दौड़े लगली सन।

रजत बचपन में ही अपना माई बाप के खो देले रहले अउरी ओकरा बाद उनकर पालन पोषण अउरी पढ़ाई लिखाई के जिम्मा मामा मामी पर आ गईल। नौवीं के उनकर एडमिशन ओ क़स्बा के एकमात्र इंटर कॉलेज में भईल रहे। ओहि कॉलेज में मिश्रा जी भी अंग्रेजी के लेक्चरर बनके ओहि साल आयिल रहनी अउरी साथ में आयिल रहली उनकर बेटी पुष्पा जे नौवीं क्लास में ही पढ़त रहली।
पुष्पा से पहली बार बात अंग्रेजी के क्लास में ही भईल रहे।

मिश्रा जी सवाल पूछले रहनी क्लास के सगरी बच्चा लोग से – ram is not keeping well के हिंदी अनुवाद करो लोग।
क्लास में हाथ सिर्फ रजत के उठल अउरी उनकर जबाब पर जेतने गुरूजी हसले रहनी ओतने पुष्पा भी अउरी ओ लोग के पीछे पीछे सगरी क्लास के बच्चा।
“राम कुएं को ठीक से नहीं रख रहा है” रजत के जबाब रहे।
रजत के पुष्पा के हसी पर बड़ा बेज्जती महसूस भईल।
फेरु रजत खिसिया के कहले – हिहियात का बाड़ू। अगर तहके सही मालूम बा त तुहि बताव। केहू के मजाक ना उड़ावे के चाही।
इ आखिरी वाक्य के पुष्पा के ऊपर बहुत बड़ असर पडल रहे। ओइदिन के बादउ कबो केहू के मजाक ना उडवली। वइसे रजत के ओकरा बाद कबो केहू मजाक उड़ावो एकर नौबत ही ना आईल। उ क्लास के सबसे तेज छात्र रहले।

इंटर करत करत रजत अउरी पुष्पा बहुत गहिर दोस्त बन गईल रहे लोग अउरी ग्रेजुएशन में कब ओ लोग के दोस्ती प्यार में बदलल इ ना ओ लोग के खबर भईल ना दूसर केहू के। ओ लोग के प्रेम पवित्र प्रेम रहे। छिछोरा टाइप वाला ना रहे। प्रेम वो लोग खातिर साधना रहे , प्रदर्शन ना।
ग्रेजुएशन कईला के बाद रजत सिविल सर्विसेज के तैयारी करे खातिर इलाहबाद चल गईले। अब दुनू जाना के बीच बात के मुख्य जरिया पत्र रहे। सारा दुःख सुख, निमन बाउर पत्र में ही लिखाउ अउरी दू महीना तीन महीना पर जब रजत वापस आवस त मन के बात होखे।

अक्सर मजाक में पुष्पा कहस कि हमरा पापा से हमार हाथ मांग ल नात कही उहाँ के हमार दूसरा जगह शादी तय क दिहनि त हम यहां के ना ना बोल पाएब। रजत के भी त इहे इच्छा रहे पर अभी कवना लायक रहले। एक पाई के कमाई भी त ना रहे। फेरु गुरु जी से जा के कहब। इहे सोच के उनका गुरूजी से बात करे के हिम्मत ना रहे। फेरु उ पुष्पा के तिहा देस कि तू परेशान मत होख एक बार हमार सिविल सर्विसेज में चयन हो जाए द फेरहम बड़ी शान से आके तहार हाथ मांगब अउरी गुरु जी भी ना ना कही पाएब।

पुष्पा भी अतना हिम्मती रहली कि उ अपना प्यार अउरी शादी के बात अपना पापा से कही सकस। उनका भी रजत के नौकरी के इन्तजार रहे।
अउरी उ दिन नजदीक आ गईल। रजत के pcs के मुख्य परीक्षा खातिर चयन हो गईल। पुष्पा के पूरा भरोसा रहे कि रजत पहिला बार में परीक्षा पास क लीहें। अब उ रातदिन रजत सुनहरा जिनगी के सपना देखत रहस।

अउरफेरु एक दिन, दू दुगो खबर उनके सपना से झकझोर के रख देहलस।
उनका पापा के ट्रांसफर उनका गृह जिला में हो गईल रहे। इ त तबो ठीक रहे पर दुसरका खबर से त बम फूट गईल रहे। अपना जिला में ही उनकर पापा शादी के बात कईले रहनी अउरी अब जाके ओइजा उनकर देखउकी होखे के रहे।

उनका हिम्मत ना रहे कि उ अपना पापा से बात क सकस। फेरु उ जल्दी से जल्दी आवे के खातिर रजत के चिठ्ठी लिखली अउरसारा बात के साथै यहां से जाए के दिन लिख दिहली।

लेकिन जबाब में रजत ना बलुक उनकर चिठ्ठी ही आयिल। ओहि समय उनकर मुख्य परीक्षा होखे के रहे अउरी ओके छोड़ के आवल संभव
ना रहे। जहिया पुष्पा के अउरी उनका पापा के ओइजा से जाए के रहे ओकरा एक दिन पहिले उनकर परीक्षा खत्म होत रहे। उ वादा कईले रहले कि उ पहिलका ट्रैन पकड़ के अईहे अउरी स्टेशन पर ओ लोग से मिलिहें। ओइजा गुरूजी से शादी के बात भी करीहें।
नियत दिन पर पुष्पा एहि स्टेशन पर अपना पापा के साथे आ गईल रहली अउरी अगला ट्रैन 2 घंटा बाद रहे। लेकिन उनकर ध्यान अपना जाए वाला ट्रैन पर नाही, रजत के आवे वाला ट्रैन पर रहे।

लेकिन रजत ना अईले काहे कि रजत के ट्रैन लेट हो गईल रहे। मन मसोस के पुष्पा ट्रैन में बईठ गईली। ट्रैन उनके रजत अउरी ओइजा से ही ना बल्कि उनका जिनगी के बुनल सपना से भी बहुत दूर ले के चल गईल।

स्टेशन पर पहुंच के रजत के बड़ा तकलीफ भईल रहे। समझ में ना आवे कि का करस। एहि उधेड़बुन में उ वापस इलाहबाद चल गईले अउरी थोड़े दिन बाद ही उनके पुष्पा के ऐ सूचना के चिठ्ठी मिलल कि उनकर शादी तय हो गईल बा।

चिठ्ठी के अंत में पुष्पा उनसे एगो बचन मांगले रहली –
अब जिनगी में कबो आपन शकल हमके मत दिखइह।
रजत आजु ओहि बचन के लाज रखत रहले।

“बेटी एइजा त एको कुली नइख सं अउरी ट्रैन भी तीन नंबर पर आयीं, अतना भारी बैग उठा के कवनिगा जाई ” गुरूजी के घबराईल आवाज से रजत वर्तमान में आ गईले। पत्रिका से कनखी सामान की ओर देखले। डगरावे वाला सूटकेस जम्बो साइज वाला रहे।
अचानक उठ के पुष्पा उनकी तरफ से आवे लगली।

हड़बड़ा के रजत अपना जेब से रुमाल निकलले अउरी चेहरा के ढक के बाँध लेहले।
“भाई साहब, तनी हमनी के मदद क देब। सामान बहुत भारी बा अउरी एको कुली नईख सं। ट्रैन भी तीन नंबर आवतिया”
रजत सहमति में सिर हिलवले अउरी उठ के उनका सामान के तरफ बढ़ गईले।

उ उनकर सामान ले जाके तीन नंबर पर पंहुचा देहले अउरी ट्रैन में चढ़ा भी देहले। समान रख के जईसे ही उ जाए खातिर मुड़ले उनकर रुमाल सरक के गर्दन पर आ गईल अउरी उनकर चेहरा पुष्पा अउरी गुरु जी के चेहरा के के सामने रहे।
कुछ देर तक तीनू जाना देखत रहे लोग।

रजत के अफ़सोस रहे कि उ पुष्पा के बचन के लाज ना रख पवले।
“माफ़ कर। हम तहार मांगल बचन के ना निभा पवनी।” रजत रुआंसा होके कहले ” आजु फेरु ट्रैन लेट होके धोखा दे देहलस। नात हम कबो तहके आपन चेहरा ना देखवले रहती।”

कहीं के रजत के आँख गिल हो गईल अउरी पुष्पा के भी लोर चुवे लागल।
हम आजु तहके ऐ बचन से आजाद कर तानी” पुष्पा आपन लोर पोछत कहली।
पुष्पा के बात सुनके रजत के मन से अपराध के भावना निकल गईल।
“शादी के कुछ निशानी नईखे लउकत तहरा शरीर पर” रजत पूछले।
“बानू। हई का बा।” कही के पुष्पा अपना सूट के बाहीं ऊपर उठा देहली। लाल लाल मोटा जख्म के निशान उनकर दुनू बाहीं पर बनल रहे।
रजत के कुछ ना समझ में आयिल।

“रजत हमसे अनजाने बहुत बड़ गलती हो गयिल। हम पुष्पा के बियाह गलत घर में गलत लईका के साथै क देहनी। उ हमरा फूल जइसन बेटी के जिनगी में दुःख के पहाड़ खड़ा क देहल सं। आजु पांच साल बाद बहुत दुःख सहला के बाद हम अपना बेटी के ओ नरक से बाहर निकाल लियायिल बानी।”
“मने?” रजत चिहा के पूछले।

“पुष्पा के तलाक दियवा देले बानी। मरला दम तक हमरा ऊपर इ पाप के बोझ रही कि हमरा गलती से हमरा बेटी के जिनगी खिले से पहिले मुरझा गईल।”

रजत के पुष्पा के वेशभूसा के कारण समझ में आ गईल रहे।
ट्रैन जाए खातिर सिटी बजावे लागल अउरफेरु सरके लागल। रजत जड हो गईल रहले अउरी उनका इ होश ना रहे कि उनका उतरे के भी बा।
“अरे ट्रैन खुल गईल। जा जल्दी उतर” पुष्पा जोर से कहली। लेकिन उ उनका बात के अनसुना क देहलें।
“पुष्पा जइसन फूल कबो ना मुरझाला गुरु जी। अगर रउवा इजाजत दीं त हम ऐ पुष्प से आपन घर सजावे चाहतानी।”
गुरूजी अउरी पुष्पा के पहिले उनका मामा मामी से पता चल गईल रहे कि पुष्पा के प्यार खातिर रजत pcs भईला के बाद भी आजुवो शादी ना कईले रहले।

गुरूजी के चुप्पी ही उहाँ के सहमति रहे। ट्रैन स्पीड पकड़ लेले रहे पर रजत के तनिको चिंता ना रहे कि उनकर ट्रैन कहाँ जाता। उनका पूरा भरोसा रहे कि पुष्पा के साथे ट्रैन सही मंजिल पर ही ले जाई।

एक बार ट्रैन लेट होके उनकर मंजिल से दूर क देले रहे आजु ट्रैन फेरु लेट होके उनके मंजिल पर पंहुचा देले रहे। अब उनका ट्रैन से कवनो शिकायत ना रहे।

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