सूतन रहलीं सपन एक देखलीं
सपन मनभावन हो सखिया,
फूटलि किरनिया पुरुब असमनवा
उजर घर आँगन हो सखिया,
अँखिया के नीरवा भइल खेत सोनवा
त खेत भइलें आपन हो सखिया,
गोसयाँ के लठिया मुरइआ अस तूरलीं
भगवलीं महाजन हो सखिया,
केहू नाहीं ऊँचा नीच केहू के न भय
नाहीं केहू बा भयावन हो सखिय,
मेहनति माटी चारों ओर चमकवली
ढहल इनरासन हो सखिया,
बैरी पैसवा के रजवा मेटवलीं
मिलल मोर साजन हो सखिया ।
-संजय सिंह