फगुआ आ फगुआ गीत

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वसंत पंचमी के दिन होरी गावे के ताल उठेला तब से होरी के साथे फगुआ अवरु फगुई गवाये के शुरु हो जाला। फगुआ दीपचन्दी ताल और काफी राग में गावल जाला । एकर धून होरी से अलग होला। अधिकोश फगुआ के आलम्बन श्री रामजी, कन्हइया जी अवरू शंकर भगवान होलन । एह से एह में भक्ति भाव अधिक रहेला । फगुई दीपचन्दी ताल में गावल जाला जवना के धून अलग होला ।

फगुआ गीत – 1

आरे होली खेलत रामनु हो, से आरे होली खेलत रामनु हो
सुमंगल होत हृदय, होली खेलत राम नु हो ॥ टेक ।।
काथी के उजे रंग बनल बा, काथी के उड़ेला अबीर
से आरे लाल काथी के उड़ेला अबीर, सुमंगल होत ……
सरजू जल के रंग बनलवा, बालू के उड़े ला अबीर
से आरे लाल बालू के उड़ेला अबीर, सुमंगल हो …
केकरा हाथे कनक पिचकारी, केकरा हाथे अवीर
से आरे लाल केकरा हाथे अबीर, सुमंगल होत……
राम के हाथे कनक पिचकारी, लछुमन हाथे अबीर
से आरे लाल लक्षुमन हाथे अबीर, सुमंगल होत……

फगुआ आ फगुआ गीत
फगुआ आ फगुआ गीत

फगुआ गावे के आरम्भ एही फगुआ से होली के दिन आरम्भ कइल जाला । होली जर गइला के तुरन्त वाद एह गीत से सुमिरन कइल जाला। राम औरु लक्षमन दूनो भाई होली खेल रहल बाड़न । सबाल जवाब में होरी गावल जाला कि केकरा हाथ में सोना के पिचकारी वा अवरु केकरा हाथ में अबीर बा । जवाब में बा कि राम के हाथ में सोना के पिचकारी अवरु लक्षुमन के हाथ में अबीर बा । कवना चीज से रंग बनल अवरु कवना चीज से अवीर बनल ? एकर जबाव बा कि सरजू के जल से रंग बनल अवरु बालू के अवीर बनल बा ।

होली के दिन के इ सुमिरन ह, आगे गवाये वाला चइत के मंगला चरन ह, नयका वरिस के मंगल कामना खातिर विनय ह। होली जरला के वाद होरी खेलत दूनो भाइ के गुनगान से लागत वा कि नयका बरिस के भंगलमय होखे खातिर रंग अबीर से दूनो भाई सभे के सरावोर कर देलन ।

फगुआ गीत – 2

जानकी जी शिव-पूजन खातिर पुष्प वाटिका में जा रहल वाड़ी एकरे बरनन, एह गीत में बा:-

शिव पूजन के जास आरे लाल शिव पूजन के जास
हो ऽ राजा 5 आहे राजा जनक जी के प्रेम सुन्दरी ।। टेक ॥
शिव पूजन के जास …..
अक्षत चन्दन बेल के पत्ती, गुगुल होम कराई
आरे लाल गुगुल होम कराई, होऽ राजाऽ आहे राजा
शिव पूजत हो, खुलले अचरवा; शिव देखि मुसुका
आरे लाल शिव देखि मुसुकाई, होऽ राजाऽ आहे राजा
शिव पूजत में बर एक पवलो, बर त मिलले भगवान
आरे लाल वर त मिलले भगवान, होऽ राजाऽ आहे राजा

जानकी जी शिवजी के पूजे खातिर अक्षत चन्दन, बेल के पतई ले के गइली, पूजली और गुगुल से हूम कइली। एह पूजा के समय सीता जी के आंचर खुल गइल, ओकरा के देख के शंकर भगवान मुसका देलन । आंचर खुले में रहस्य बा कि कवनो चीज मांगल जाला त औरत लोन आंचर पसार के मांगेली, सीताजी आंचर पसार के शंकर भगवान से मंगली, आपन मनोकामना पूर्ण होखे खातिर । एहि पर शंकर भगवान मुसका देनी कि जे जगत जननी ह. उ सामान्य आदमी अइसन आंचर पसार के मनोकामना पूर्ण होखे खातिर माँग रहल बाड़ी? शिव-पूजन के समय ही उन्हूका वरदान मिलल अवरु बर के रूप में भगवान के पा ले ली। शिवजी के पूजा कइला से जानकी जी के मनोकामना पूर्ण हो गइल । बर शब्द के दू वार दू अर्थ में में प्रयोग वा । बर पवलो के अर्थ भइल, वरदान मिलल अवरु बर त मिलले में बर के अर्थ भइल दुलहा । एह से एह में यमक अलंकार बा।

फगुआ गीत – 3

शिव स्थान पर जब फगुआ होखे लागेला त पहिले शकर भगवान के गुणगान कइल जाला तब कवनो गीत गाबल जाला । गीत ह :-
शिव-सती खेले फाग अरे लाल, शिव-सती खेले फाग
होऽ नाचत ऽऽ आहे नांचत ताल, बजावत डमरु
शिव सती खेले फाग …
एक ओर नाँचत शिव सती हो, एक ओर भूत वयेताल
होऽ नाचत ऽऽ आहे नाचत ताल वजावत डमरू
शिव सती खेले फाग…

फगुआ के दिन नियमित रूप से जाके एह फगुआ के शंकर भगवान के सुनावल जाला । शंकर जी सती के साथे फाग खेल रहल बानी। साथे साये मिल के ताल पर नाच भी रहल वानी अवरु डमरु बजावत वानी । शंकर भगवान जे नृत्य में तांडव के अधिष्ठाता हई, डमरु बजा-बजा के नाच रहल वानी, सती साथ में होली के रंग में नाच रहल बानी।

फगुआ गीत – 4

भोजपुर जिला में ब्रह्मपुर स्थान वा जह्वा वावा वरमेश्वर नाथ के स्थान वा । बारह ज्यातिलिंगन में एक स्थान ब्रह्मपुरो के मानल जाला । एह गीत में वरमेश्वर नाथ महादेव के गुनगान कइल गइल बा।

वरमेश्वर खेले फाग आरे लाल बरमेश्वर खेले फाग
होऽ आजू ऽऽ आहे आजु बरहपुर धूम मचल बा,
वरमेश्वर खेले फाग अरे लाल …….
हुलसत हमरो शरीर आरे लाल हुलसत हमरो शरीर
हो शिव ऽ आहे शिव वावा रउरा धाजा देखि के
हुलसत हमरो ………

बरहपुर में अइसे त हरेक जलधार (शिव रात्रि) के दिन बराबर भीड़ लागल रहेला । फगुआ के दिन अवरु भीड़ फाग गावे खातिर बढ़ जाला । वरमेश्वर नाथ जी फगुआ खेल रहल वानी एह चलते धूम मच गइल वा । मन्दिर के समीप बहुत ध्वजा गड़ल रहेला, ओकरा के देख के सभ भक्त के मन में अवरु शरीर भर में हुलास बढ़त रहेला ।

फगुआ गीत – 5

एह गीत में वाबू कुवर सिह के बारे में बहादुरी बतलावल गइल बा :

बंगला में उड़ेला अबीर, अरे लाल बंगला में उड़ेला अबीर
हो बाबू ऽ आहे वाबू कुवर सिंह तेगवा बहादुर बंगला में ….

जगदीशपुर में बाबू कुवर सिंह के बनावल बंगला आजो सुरक्षित बा । ओह बंगला में बाब कुवर सिंह फगुआ के दिन जम के खूब होली खेलत रहन जे लड़ाई में तलवार के बहादुर रहन ।

फगुआ गीत – 6

वसंत के अइला से फूलन के जगमगाहट में सभे मातल रहेला । अइसन समय में कवनो गोरी अपना प्रियतम से निवेदन कर रहल बाड़ी:

मोरा फूलगेनवा के साध, आरे लाल मोरा फूलगेनवा के साध
हो आहो, आहो आहे संइया मोहे बगिया लगाद
मोरा फूल गेनवा के …..
बा ग लगाद हो बगइचा लगा द, बीचे-बीचे निवुआ अनार
होऽआहो, आहो आहे संइया मोहे बगिया लगाद मोरा फूल …

शृगार भाव के उद्दीपन खातिर बाग और वगइचा लगावे के कवनो गोरी निदेदन कर रहल वाड़ी कि हमरा गेन्दा के फूल लेबे के बड़ा साध लागल बा । एह से हे पिया ! हमरा खातिर फूलन के बगइचा लगवा देल जाय । बाग-बगइचा लगा के ओह में बीच-बीच में नींबू अवरु अनारो लगा देल जाय । बीच-बीच में नींव अवरु अनार लगावे के बात प्रतीकात्मक बा जवना के फुरमाइस कम महत्व के नइखे ।

फगुई

जदि मान लेल जाय कि फगुआ में भक्ति अवरु शृगार के भाव से रस प्रवाहित हो रहल वा त फगुइयो में शृगार रस लबालब भर के उछिलत रहे ला। गावे में फगुई वहुत हलुक होला एह से फगुआ गावला के अन्त में फगुई गाके कमे मिहनत पर आनन्द लेल जाला। जब रीति कालीन कवि लोगन के समूचा जीवन नारी के साढ़ेतीन हाथ के शरीर में ऋगार अवरु अलंकार बरनन में बीत गइल त ओकर प्रभाव लोक गीतन पर पड़बे करी । गोरी कइसन वाड़ी एकर चर्चा एह फगुई में कइल गइल बा ताल दीप चन्दी हीह ।

फगुआ गीत – 7

गोरिया पतरी जइसे लचके लवंगिया के डाढ़ ॥टेक।।
केलवा के थम्भ अइमन गोरिया के जंघिया
जोबना ए अनुहारो, आहे जोवना ए निवुआ
अनार गोरिया पतरी…….

रीति कालीन नायिका के बारे में कहल गइल बा कि कमर कइसन होखे के चाहीं :-

‘लगी है, अन लगी सी लगत है मुझे” अर्थात कमर शरीर से लगल बा बाकि अतिना पतला वा कि बुझातवा कि लागल नइखे । असहीं एह फगुई के गोरी के हाल बा इ लवंगके लतर अइसन लवकत बाड़ी: पतलापन के हद हो गइल बा । न गइल वा कि गोरिया के जांघ केला के थम्भ अइसन सघन बा अवरु जोवन निबू-अनार अइसन छोट छोट गोल वा । रीतिकालीन वरनन में जांघ के उपमा केला के थम्भ अइसन अथवा हाथी के नव जात बच्चा के जांच अइसन देल गइल बा । एह प्रकार से एह गीत पर रीतिकाल के प्रभाव लउकत वा ।

फगुआ गीत – 8

फगुई में सवालो जवाब खूब बन पड़ेला । कवनो गोरी खूब रंगदार चोली पहिर के चलली त सवाल पुछाए लागल कि:

चोलिया वैगनी रंग कहंवा रंगवलू हो लाल. चोलिया ……
किया तोर चोलिया नइहरवा से अइले
किया तोर भजले इयारs चोलिया बैगनी …..
नाहीं मोर चोलिया नइहरवा से अइलें
नाहीं ए अनुहारोऽऽ आहे नाहि मोर भेजले इयार-चोलिया..
इ मोर चोलिया पुरुबवा से अइले
पिया ए अनुहारोऽऽ आहे पिया मोर भेजले रंगाय चोलिया……

गोरिया के चोली के रंग पर प्रश्न हो रहल बाकि इ बैंगनी रंग में रंगल

चोली कहवा रंग ववलू हा का तोहार चोली नइहर से आइल हा कि कवनो इयार रंगवा के भ जलस हा । तब जवाव मिलल कि इ चोली नात नइहर से आइल हा, ना कवनो इयार भेजलें हा, इ चोली पुरुब कलकता से आइल हा जवना के हमार पिया रंगवा के भेजलन हा।

कतई कतहं के लोग पाठान्तर भद कर के गावेलन-किया तोर भेजले इयार के बदला में किया रंग-रेजवा इयार” कर के गावल जाला। देखल जायत रंगरेजवा इयार में अधिक भाव सवलता वा। भेजले इयार में मजले क्रियाह बाकि रगरेजवा इयार में रंगरेजवा विशेषणा ह इयार के । एह में भेदो खोल देल कि अइसन रंग में रंगे के गन रंगरेजवा इयार के हो सकेला अइसन रंगदार चोली के रंगाई के विशेषता भी प्रगट हो जात बा।

कवनो गोरी फिचकारी में रंग भर के अटारी पर चढ़ के राहगिर के रंग मार रहल बाड़ी :-

मारत गोली भर के संवरिया-मारत गोली भरके
सुन्दर नारी अटारो पर चढ़के मारत गोली भरके …..

जब कवनो राही पर उपर से रंग बरिसे लागेला तब रंगफेंकेवाला के देखे लागेलन कि के ह। देखलन कि कवनो सांवर गोरी रंग के गोली भर के अटारी पर चढ़ के मार रहल बाड़ी। उ राही अपना के धन्य समझते आगे बड़ जालन । अइसन घटना होली के समय वरावर होत रहेला ।

फगुआ गीत – 9

लटका :-फगई गावत खानी बीच-बीच में लय बदल के दोसरो गावल जाला जवन कहर्वा या दादरा ताल में रहेला । एह से झूमे के सभ के खूब मिल जाला :

लाली चुनरी के रंगवा लहर मारेला लाली चुनरी ॥टेक।।
कहवां के हउवे लाली रे चुनरिया-कहवा के हवे रंगरेज रसिया
लाली चुनरी ……
नइहर के हउवे लाली रे चुनरिया-ससुरा के हवे रंगरेज रसिया
लाली चुनरी…….
केऽईऽ भेजेला लालीरे चुनरिया- केइ हवे रंगरेज रसियालाली ..
भइयाऽ भेजले लालीरे चुनरिया-सइयां हवें रंगरेज रसिया
लाली चुनरी … ….

कवनो फगुई के अन्त में इसभ गीत लटक जालन एह से अइसन गीतन के लटका कहल जाला । कदनों गोरी के लाल चुनरी देख के कहल जा रहल बा कि लाल चुनरी लहर मार रहल वा । एकर दूगो अर्थ हो सकेला । अभिधा से लाल चनरी फहर-फहर लहरा रहल बिया अथवा लक्षणा से एकर अइसन रंग बा कि देख के मन में लहर मार रहल बा । एह प्रकार से लहर शब्द में श्लेष अलंकार बा, जवन अभ गश्लेष ह ।

सवाल  होत वा कि कहवां के चुनरी ह अवरु कहवां के अइसन रंगरेज हवन । जवाव मिलल बा कि नइहर के चुनरीह अवरु ससुरा के रसिया रंगरेज हवन । फिर सवाल हो रहल बा कि कवन आदमी भेजले बा अवरु कवन आदमी रंगरेज ह । तब जवाब देल गइल बा कि भइया लाली चुनरी भेजले वाड़न जेकर रंगरेज रसिया सइयां हवन ।

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