भाषा के लिए आंदोलन! रोटी, कपड़ा और मकान के लिए संघर्षरत भारत में भाषा के लिए आंदोलन। यह सच है। यह सच इसलिए है क्योंकि भोजपुरी भाषा को आजादी सात दशक से अधिक समय बीत जाने के बावजूद भाषा के रूप में मान्यता नहीं दिया जा सका है। कौन जिम्मेदार है, यह सवाल बाद में। पहले तो यह कि भाषा के लिए आंदोलन जरूरी क्यों फिर यह भी कि भोजपुरी के लिए आंदोलन क्यों?
भोजपुरी करोड़ों लोगों की भाषा है। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बोली जाने वाली भाषा है। मारीशस, सूरीनाम से लेकर कई देशों में इस भाषा को सम्मान प्राप्त है। जबकि भारत में इसे संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल तक नहीं किया गया है। इस कारण भोजपुरी भाषा का विस्तार तो प्रभावित हो ही रहा है, इसमें क्षरण भी होने लगा है। आप फिल्मों को ही देख लें। इसके पहले आप बांग्ला, मराठी, मलयालम आदि भाषाओं में बनने वाली फिल्मों पर नजर डालें। इतना अंतर क्यों है? जवाब है कि साहित्य का विकास नहीं हो रहा। यदि भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल कर लिया जाय तो मुमकिन है कि साहित्य का विकास हो और इस कारण थियेटर और फिल्म जगत पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
ये भी पढ़ें: सांस्कृतिक कार्यक्रम के बहाने भोजपुरी आयोजनन में फइलत अश्लीलता
मैं करीब 18 वर्ष पहले भोजपुरी संगीत से जुड़ी। उन दिनों मुझसे दो सवाल किये जाते थे। पहला भोजपुरी में अश्लीलता को लेकर और दूसरा भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के संबंध में। यह दोनों सवाल चलते रहे। आज भी दोनों सवाल के रूप में मेरे सामने पेश किया जाता है। अश्लीलता का सवाल मेरे लिए बेमानी है। मेरे लिए सवाल भोजपुरी भाषा के आत्मसम्मान से जुड़ा है। मुझे ओखोमिया भाषा को लेकर हुआ आंदोलन याद आता है। वह 10 अक्टूबर 1960 को आसाम के तत्कालीन मुख्यमंत्र ने विधानसभा में असमिया भाषा को भाषा के रूप में मान्यता देने के संबंध में विधेयक पेश किया था। इससे पहले इसके लिए एक जन आंदोलन हुआ था। इसमें भूपेन हजारिका भी शामिल थे। उनके अलावा आसाम के लोक संगीत से जुड़े सभी कलाकार, साहित्यकार, बुद्धिजीवी और आम आदमी तक शामिल थे। सबने मिलकर आंदोलन का निर्माण किया।
डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना जी और मैंने एक पहल किया है। हालांकि भोजपुरी को सम्मान दिलाने के लिए आंदोलन चलते रहे हैं।मैंने भोजपुरी भाषा आंदोलन गीत के जरिए कोशिश की है।बहरहाल मुझे लगता है कि भोजपुरी भाषा के लिए ऐसे ही एक वृहत आंदोलन की आवश्यकता है। 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। यह एक मौका है। सभी के लिए जो भोजपुरी भाषा से प्यार करते हैं। हम जिसे प्यार करें, उसके सम्मान के लिए आंदोलन से परहेज कैसा?
Why is movement necessary for Bhojpuri language kalpana patowary