खूब ले के ढे़कार खाइले।
ढ़ेर जगे हम उधार खाइले।।
एगो मरदाना तू हे नइ खऽ जी।
हमहूँ बेलना से मार खाइले।।
हम जे खानी ऊ घूस ना लगे।
सेब, केला, अनार खाइले।।
खूब होखेला चटपटा कविता।
जब कभो हम अचार खाइले।।
खानी जब दूसरा के मूड़ी पर।
एगो के पूछे चार खाइले।।
बात बा माल ले खपावे के।
कहवाँ मिर्जा से पार पाइले।।
– मिर्जा खोंच