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सौरभ भोजपुरिया जी के लिखल दू गो भोजपुरी कविता

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अभियंता सौरभ भोजपुरिया जी
अभियंता सौरभ भोजपुरिया जी

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सौरभ कुमार जी

तोहार शहर से अच्छा मोरा गाँव $$$
तोहर शहर से अच्छा मोरा गांव $$ बा
कुईया के ठंढा पानी 2 अउर पिपरा के छाव बा
तोहार शहर से अच्छा मोरा गाव बा

सुहावन मन भावन लागे भोर के किरिनियाँ
मस्ती में झूमी झूमी नाचेलि मोर मोरिनियाँ
आमवा के बाग में कोयली के वाग बा
तोहार शहर से अच्छा मोरा गांव$$ बा ।

पिपरा के निचे ठंढ़ा कुइया के पानी
पनिया भरत में गोरी लागेली रानी
चाल चले जइसे नदी के हिलकोर
कमर बीचे गगरी सोभे जैसे नदी बीचे नाव बा
तोहार शहर से निमन मोरा गाव बा
कुईया के ठंढा पानी 2 पिपरा के झाव बा $$

मोटर के शोर नइखे ना भीड़ के बा मारा मारी
आपस में सभें मेल में बा बा सबका से ईय्यारी
गाव के बीचे लागल काका लोग के चौपाल बा
तोहार शहर से निमन मोरा गाव बा $$

भोरभोरे पंडित जी आरती गावेले
गुरु जी ज्ञान के बात सिखावेले
मंगरु के हाथ में लाठी 56 इंची छाती
घूँघट में भौजी के मुखड़ा लगे जइसे बदरी से निहारत चाँद बा $$

तोहार शहर से निमन मोरा गाव बा
कुईया के ठंढा 2 पानी पिपरा के झाव$$बा
तोहार शहर से निमन मोरा गाव बा $$$$$$

शुद्ध बा हवा इहवाँ शुद्ध अन बा खायेके
शुद्ध जल बा नदिया तालाब के नाहायेके
सीधा बाड़े लोग ईहवा शुद्ध बाटे बोली
काकी के बोलिया में ना छल ठिठोली
सरपंच जी के हरदम मोझीये पे ताव $$ बा

तोहार शहर से निमन मोरा गाव$$$ बा
कुईया के ठंढा 2 पिपरा के छाव बा $$

विदाई

आँख से दूर भले तू हमरा दिल से कहाँ जइबू
हर सांस में अपना मोहे दिल के अंदर पईबू
जइसे गलेला मोम हो अन्हरिया के बिदाई में
वइसे लोर के मोती गिरेला तहरा जुदाई में
तू मोर आंगन से दूर पर मन के दिवार में रहबू
बन के मन चिरइया खुद के इंहा चहकत पइबू ।।

कके के सोलहो श्रृंगार पिया के नगरिया में जइबू
हमरा के अपना याद में छछनत पइबू
तू माया नगरिया से दूर बाकिर चित्तवन से कहाँ जइबू
साया लेखा हमरा के सातों जन्म में साथे पाइबू ।।

जानत बानी की जात बाड़ू तोहके केहु रोकी ना
बाकी हमरो के तहरा याद में डूबला से केहु टोकी ना
आज करत बानी हरीहर डोली में तहार बिदाई
कबो हंस के कबो रो के जिनगी के बाचल पल के बिताईब
जब जान मोर पंचतत्व में तू बिलिन हो जइबू
मोहे बटोही अस आस में राह निहारत पाइबू।।

मन के भीतर एगो महल बनाईब
ओमें तहार मूरत बिठाइब
याद के बगिया में एगो ललका गुलाब लगाईब
बन के भावरा तोहर गीत गजल गुन गुनाइब
जब लालकी चुनारिया ओढले खिली रूप फूल
तहरा प्यार के खुशबु दसो दिशा में गमकाइब ।।

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