संदीप कुमार सिंह जी के लिखल कुछ कविता

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दल बदलू नेता

नेता जी के पेट हs की लमहर खेत
इनकर एगो दल से काम ना चले
दोसरा दल में ना जिईहन, ना भरी कहियो इनकर पेट!१

इकरा जन-जनता से का मतलब बा
इंकरा तs कुर्सी सत्ता से अब मतलब बा
विकास के काम अब ठप हो ही रहल बा!२

जनता अब इनकरो के चोर कह ही रहल बा
इनकरो ऊपर घोटाला के इंजाम लाग ही गईल बा
सुधर जा हो नेता जी, ना तs कुर्शी अब तहरा ना भेटाई!३

वादा कई के ना निभईलs, मत निभावs
नेता जी अब तू ना सुधरबा, मत सुधरs
वोट मांगे कहियो हमरा सिसवन प्रखंड में मत आईहs!४

नेता जी अईह तs, खली हाथे चल ही जईहs
नेता जी दुआरा पे आ के, दाँत जन चियारे लगीहs
नेता जी तू आपन-आपन हितन के काम करावे लs!५

नेता जी तू गैरन के खूब टरकावे लs
नेता जी तू जंगल राज चलावे लs
अब केहु वोट ना दी तहरा के, तू दबंगन के छोरावे लs!६

कबो हे दल में,तs कबो हो दल में कूदे लs
जवन थरिया में खालअ ओही थरिया के छेदे लs
नेता जी राजनीति के सब तिरिया-चरित्तर जाने लs!७

मोछिया मरदन के शान हs

मोछ ना रही तs के चिन्ही,
नर हवा की मादा।

मोछिया रही तs सभे चिन्ही,
मादा ना हवा मर्द हवा।

बाप पितिया अभी जिन्दा बा,
बबुआ मोछिया छिलत बा।

मोछिया तs मरदन के शान हs,
इहे तs पुरनिया के पहचान हs।

सालों-साल ई परम्परा चलत बा,
बबुआ काहे मोछिया छिलत बा।

पहचाने में भी अब दिक्कते बा,
बबुआ लो कनबलियो पहनते बा।

बाबुओ लो के मैकप के होड़ बा,
ई लो चिनात बा,के नर हs के हs मादा।

नेताजी के चमचाजी लो के बतकही

आई नेताजी हमरा से बतियाई,
हमार कोनो योजना पास कराई।।

नेताजी भर पेट नोट खाई,
नेताईंन के समाचार बताई।।

अगिला बेरी चुनावः कहां से लड़ल जाई,
अगिला बार नेताईंनो के कही से उठवाई।।

आउरो दल के भी अपना में मिलवाई,
मिल जुल के आपन सरकार बनवाई।।

आई नेताजी हमरा से बतियाई,
आपन दुख सुख हमरा से सुनाई।।

हमरो के कोनो सरकारी फंड दिलवाई,
हमरो के ना होखे तs कही से उठवाई।।

जीतला पर नेताजी मिल बाट के खाईल जाई,
नेताजी हमरो पे ध्यान दी हमउ नेता बन जाई।।

एक बार जीतला पर जीवन भर पेंसन मिली,
हमनी के बुढापा के टेंशन ही खतम हो जाई।।

बाल बुतुरु के फिरिए टिकट मिल जाई,
उहो चुनावी दंगल में बाजी मार जाई।।

भरोसा केहू का करी

परछाईं बनके केहू साथे चली,
इनकर भरोसा केहू का करी।

आपन हरदम आपने रही,
इनकर भरोसा केहू का करी।

आपन तs आपने नईखे,
गैरन के भरोसा केहू का करी।

भादों के महीना आ गईल,
चारोओर बादल छा गईल।

अब का हरदम ई बरसते रही,
मौसम के भरोसा केहू का करी।

शरीर जब ले चलत बा चलत रही,
कब नाच के गिर जाई केहू भरोसा का करी।

वोट ख़ातिर ई मुँह बइले बा!

वोट ख़ातिर ई मुँह बइले बा!
पिछला काम पूरा ना कईलस!!

फेरू हाथ ई पसरले बा!
भस्टाचार से ई भरल बा!!

जीत गईला पर ई मुह ना देखाई!
देखी जनता के तs ई मुह घुमाई!!

आपन हितन के काम कराई!
गैरन के ई खूब टरकाई!!

चोर तs ससुरा ई खुबे बा!
वोट ख़ातिर हाथ जोडले बा!!

देखे के ई राम बाटे!
भीतरिया ई हैवान बाटे!!

मुह पर मीठ-मीठ बोलत बा!
पीठ-पीछे ई छुरा घोपत बा!!

लइकाई में चडी लउकत रहे!
इलैक्शन में बन्दी देखावत बा!!

वोट ख़ातिर मुँह बइले बा!
फेरु हाथ सरवा पसरले बा!!

ढेर दिन पर ई लउकल बा!
अजीब भेस-भुसा बनवले बा!!

संदीप कुमार सिंह
गाँव:सरौत, सिसवन
जिला:सिवान(बिहार)

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