देवेन्द्र कुमार राय जी के लिखल कुछ भोजपुरी कविता

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मुरारी कहां भेंटईहें

भरल बाडे़ दुशासन सगरो
चीर कहां से अईहें,
करीं अरज कर जोडि़ के
मुरारी कहां भेंटीहें।

डेगडेगे चीर खींचाता
द्रौपदी के लाज के,
भीष्म बनि देखतरुए
ई दुनिया आज के,
सभे सभा में बनल लुटेरा
चीर कहां से अईहें,
करी़ अरज ——मुरारी कहां भेंटईहें।

धृतराष्ट्र बनि के ई शासन
दामिनी प खेले खेल,
कुर्सी के पावे खातीर
हर शकुनी से राखे मेल,
आर्यावर्त के नारी के ई
रोजे नाच नचईहें,
करीं अरज——मुरारी कहां भेंटईहे।

पेवन लागल चीर के
खादी दुशासन नोचता,
कानुनी युधिष्ठिर राय
मौन सभा में रोकता,
लोकतंत्र के ई महाभारत
जाने कईसन दिन देखईहे,
करी अरज कर जोडि़ के
मुरारी कहां भेंटीहें।

केकरा के मानी आपन

केकरा के डांटी केकरा के बांटी
कह केकरा खातीर बवाल काटीं,
अउंजा पथार अब सभे बहादुर
ई बुझात नईखे केकरा के साटीं।।

तीतीर बटेर जस सभकेहु नाचे
सभे एक दोसरा के पोथी बांचे,
केहु केहुके सुने प नईखे तैयार
सभके मुंह में सभे हुरता लाठी,
ई बुझात नईखे केकरा के साटीं।।

आजु सभे बा बड़का ज्ञानी
लउकत नईखे केहु अज्ञानी,
जरत लुआठी फेंक दोसरा घर
एक दोसरा के कहे आबाटी,
ई बुझात नईखे केकरा के साटीं।।

तुरि के दोसरा के देवाल
अपने होले खुब निहाल,
भईल कईसन आजु के दुनिया
कईसन राय सोंच आ थाती,
ई बुझात नईखे केकरा के साटीं।।

सभकुछ पईसा

अइसा भईल भाई
अइसा भईल,
आदमी आदमी ना रहल
उ त पईसा भईल।

आदमी के भार अब
पईसा में गईल,
आदमी त रहेले अब
बगली में धईल।

आदमी अब बोरा बाडे़
आदमी अब झोरा,
आदमी अब खेले
खाली पईसा के कोरा।

कहां गईल जुग जबाना
एके कहल ना जाय,
आदमी अब मिले ना
पईसे खाली भेंटाय।
पईसा रीस्ता नाता बा
पईसे बा महान,
पईसा के ऐनक में
अब लउके ना इंसान।

आन मान सम्मान पईसा
दुनिया के बड़का ज्ञान पईसा,
पईसे में सभकुछ बा धईल,
अइसा भईल भाई
अइसा भईल,
आदमी आदमी ना रहल
उ त पईसा भईल।

अब अईसने बा

करेवाला क के गईल
धरेवाला धरता,
जे करेला मेहनत खुब
उहे आजुकाल्हु मरता।

कवनो जतन जोगाड़ करे
ईमान भईल बा धुर,
कुकर्मी के चानी बा
सूकर्मी बाडे़ मजबूर ।

जे करे सफाई एहीजा
उहे बा लेटाईल,
जे ना करेला कुछऊ
ओकरे कुल्हि भेंटाईल।

पढे़वाला पास ना होला
जुगाडु बाडे़ पास,
ढीबरी में आंख गडा़वेवाला
अंक ना पईहें खास।

जे करेला पैदा अन्न
ओकर उड़ल भुआ,
जे बईठेला एसी में
उहे चाभे मलपुआ।

माहटर जवन पढा़ई
उ कहाता पागल,
फर्जी डिग्रीवाला चले
जईसे सांढ़ ह दागल।

नियम कानून कुछऊ नईखे
जवन बा हत्यारा,
जे कहियो गलत ना सोंचल
कवनो ना ओकर सहारा।

राय कमईल छछनत मुअ
आपन फाटल गुदरी सीअ,
अब एहीजा सभ धुंए बा
इहे आजु के नीयम हीअ।

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