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देवेन्द्र कुमार राय जी के लिखल कुछ भोजपुरी कविता

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देवेन्द्र कुमार राय जी
देवेन्द्र कुमार राय जी

भोजपुरी कविता काशी धाम

काशी के का कहीं कहल ना जाव
स्वर्ग के समान सांच गंगा में नाव।

पावन पुनीत जल एहीजे भेंटाई
जीनीगी बितावे के असली ह गांव।

भगीहें दुख भूत मिली अकूत धन
जहीए जमईब तुं काशी में पांव।

भोरभोरे भाग होई उहे ई देखी
भोला के भाव से मिल जाई ठांव।

करीं अरज हम भोला आ भैरव से
हमरा के भाग दीहीं छुवे के पांव।

दुर्गा आ बजरंगी हमरा के ज्ञान दीहीं
जीनीगी में आवे ना दुखवा के भाव।

कईसन सवारथ

धन त धन होला कफन बंटाता
गोतीया के सलाह प बीचे फराता।

मरल देंहि कईसे जरी केहु ना पूछे
हमरा कतना मिली ईहे जोडा़ता।

सवारथ के आग में झुलसल
कईसन हो गईल दुनिया कपटी,
पेवन लागल आईल कफन के
हो गईल अब छीना झपटी।

जियत ना मिलल लोटाभर पानी
अब पीपर में जल ढरकावत बाडे़,
जीनीगीभर झोकले धूर आँख में
अब खाढे़ जल चढा़वत बाडे़।

प्रीत के आंच

नयनन से जे तीर चलावे
बैनन से करेला घायल,
अईसन चितचोर के चाहत में
सउंसे दुनिया बा कायल।।

पलक जब जब झपके
सगरो आन्हार लागेला,
पलक के ओट से उठते
खुशी आपार लागेला।।

एही चाहत में कटे लागी
ई दुनिया बेकरार बा,
नजर के तलवार से कटे खातीर
ईंहवां त लागल कतार बा।।

बांचल नईखे केहु ईंहवां
कटे से एह तलवार से,
जानि बुझि के कटेला सभे
एकरा तेज धार के वार से।।

जे आई एह धरती प
जब यौवन से लदि जाई,
ओकर तमन्ना रही कटे के
उ अवरू तलवार पजाई।।

ना करे फीकीर केहु एहिजा
धार वार तलवार के,
रीत प्रीत रचल बसल बा
अजबे एह संसार के।।

छोड़ तपस्या धावे योगी
बाजे जब प्रीत के पायल,
अईसन चितचोर के चाहत में
सउंसे दुनिया बा कायल।।

ना भाव भोराईं

हर डेग प मिले हर मौसम
हर हरफ प छवि उकेरेला
जब2सोंची जईसे सोंची
हर अभिनय सोझा मिलेला।

राम रहीम के ठांव ई मन
सभके मिलेला हर कदम,
भाव भोराई जब ना केहू
सांस कही हर हर बम बम।

राय राज अतने होला
के के झांके अपना दर्पन,
मिली ओईसन छवि छांव
जईसन फुलवा होई अर्पन।

विजय होई शंकर मिलीहें
सभसे उ मिलीहें जुलीहें,
होई फरीछ तब जीनीगी में
कबहीं ना आमावस तब रहीहें।

सगरो रंग घोराईल बा

जेने तेने सभ केहु चलता पराईल
फागुन में रंग लागे सगरो घोराईल ।

केहु गावे फाग राग केहु गावे होरी
बईठल दुआरी देखे धनी लरकोरी।

ओटा से रंग देखीं सभ केहु फेंके
भऊजी के बहीनी खीरीकी से देखे।

बाबावा के धोती धंगाईल बा खोरी में
सउंसे रंगाईल देंहि अबकी बे होरी में ।

बोकवा के चढ़ल बा फगुआ के रंग
गुलाबी के रंग में रंगाईल अंगे अंग।

लागेला भईया ताके दोसरदुआर
भऊजी प हीक भ ताकेला पूजारी।

फागुन में फरकत खुब ईहो छउके
फगुआ में फानत बुढ़वो लोग लउके।

नेता कईसे कहाईब

हिन्दू के मुसलमान से, राजपूत के भूमिहार से
डोम के चमार से, अहीर के कंहार से
बाभन के खरवार से, जबले ना लडा़ईब
तबले नेता कईसे कहाईब।

खान के अंसारी से, कोईरी के पंसारी से
मुण्डा के मराठी से, बिहार के गुजराती से
माथा ना फोरवाईब,
तबले नेता कईसे कहाईब।

केरकेट्टा के पहाडि़या से, भांड़ के हंडिया से
भुईंया के संथाली, जीजा के साली से
अवधी के मगही से, लाटा ना कुटवाईब
तबले नेता कईसे कहाईब।

उतर के दखीन से, पूरब से पछीम से
आसाम के मेघालय से, मजार के देवालय से
विद्रोह ना करवाईब
तबले नेता कईसे कहाईब।

सारी के नारी से, बेटा के महतारी से
दादा के पोता से, छीपा के लोटा से
जबले ना लडा़ईब
तबले नेता कईसे कहाईब।

एकरे के कहाला, राजनीति के सुपर स्टार
हमार बनल रहेबहार, भले जनता होखे लाचार
हमार पगरी बनल रहे, जनता के फुटत रहे कपार
एह प सभे करे बिचार, आगे फिर बताईब
अईसही नेता ना नु कहाईब।

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