१५ गो पूर्वी, सिपाही सिंह श्रीमंत जी के लिखल किताब ‘थरूहट के लोक गीत’ से लिहल गइल बा। किताब में पूर्वी भावार्थ के साथे बा, बाकिर येहजा खाली संकलन कइल गइल बा।
मोर पिछुअरवा बइलिया
मोर पिछुअरवा बइलिया, त हहर-हहर करे डार।
अरी हो, जरी से कटइबों हो बइलिया, त नींद नाहीं आवेला हो।।१।।
जरी से कटइबों त बइलिया, कि नींद नाहीं आवेला हो।
अरी हो, तहीं पर पलंगा हो बिछाइब, बेनिया हो डोलाइब हो।।२।।
केही मोरे सूतिहें अटरिया, केही मोरे गज ऊपर हे।
अरी, केही मोरे सूतिहें महलिया, त कइसे के जगाइब हो।।३।।
सासू मोरे सूतिहें अटरिया, ननद गज ऊपर हे।
अरी हो, सइयाँ मोरे सूतिहें महलिया, त कइसे के जगाइब हो।।४।।
उठहु लहुरी ननदिया, त आपन भइया के जगावहु हे।
अरी हो, चारहीं चोर घर घूसे के दीयना जरावेला हो।।५।।
केही मोरा चोरवा के मारे, केही रे गरिआवेला हे।
अरी हो, केही मोर चोरवा के बान्हेला, हाजीपुर भेजावेला हो।।६।।
ससुर मोरे चोरवा के मारे, भसुर गरिआवेला हे।
अरी हो, सइयाँ मोर चोरवा के बान्हे, हाजीपुर भेजावेला हो।।७।।
छोटी-मोटी नीमू के साक्षी
छोटी-मोटी नीमू के साक्षी, भुंइयाँ लोटे डाढ़ी
ताही तरे आहे बलमुआ के, एहो पलंगा बिछाय।।१।।
हाँ रे, सबको त बेरिया ए नीमू, हाँ रे अति जूड़ी छाँह
कि हमरो त बेरिया गे ए नीमू, एते भइले पतझार।।२।।
रहु-रहु नीमू के हो गाछी, हाँ रे होखे दे बिहान,
कि एहो होखे दे विहान एहो जरी से कटइबों गे नीमू,
तोरे डाढ़-पात, एहो तोरे डाढ़-पात।।३।।
सकती बन लगे लछुमनजी के
सकती बन लगे लछुमनजी के, कोमल गात, उमिरिया के थोरी।।१।।
जो कोई बीर राम के दल में, भाई हो भरतजी के खवर हो जनाई।
हो विधि भइले ए बाम, बिछुड़ि गइले जोड़ी।।२।।
गिरि धवला पर मूल सजीवन, फेड़-फेड़ पर दीपक जराई।
विधि भइले बाम, बिछुड़ि गइले जोड़ी।।३।।
केथिकर सिलवट, केथिकर लोढ़े, कूंचि-कांचि लछुमन के पिआई।
विधि भइले बाम, बिछुड़ि गइले जोड़ी।।४।।
सकती बान लगे लछुमन के, कोमल गात उमिरिया के थोरी।।५।।
सखि रे, गगन गरजे
सखि रे, गगन गरजे, हाँ रे बरिसल रे,
माधव हे, आरी हो हो बून रे एक।।१।।
सखि रे, फूलवा रे फूलइले, सखि रे फूलवा रे फूलइले,
अब हो अनुराग।।२।।
हाँ रे, हो हो, दवना रे फूला भवँरा के बाटा हे,
हाँ रे, भवँरा के रे बाट हे।।३।।
अरी, हो हो, दवना रे फूला सखि रे कटबों में अरूने,
सखि रे, कटबों में अरुने,
अब आरी, झुन काँट हे, आरी, अब हो, झुन काँ हे,
आरी हो, रुन्हींए देबों, हाँ हाँ रे,
भवँरा के बाट हे, हा-री हो-हो, रुन्हीं ए देबों।।४।।
हाँ रे, पतित उधारण सीरी कमला मइया
हाँ रे, पतित उधारण सीरी कमला मइया, सीरी कमला,
कि आहे, हाँ रे जय-जय मइया सीरी कमला, जय-जय सीरी मइया कमला।।१।।
हाँ रे, नदिया किनारे कमला गे रोपेले बाँस मइया रोपेले बाँस,
कि आहे, केही त गेछागर, परेवा, केहू त रे हाँस।।२।।
हाँ रे, दस-पाँच सतिया बहेले एक धार,
हाँ रे, दस-पाँच सतिया बहेले एक धार,
आहे हाँ रे, छपन कोट देवा करे असनान।।३।।
हाँ रे, तर बहे बलुआ, ऊपर जल नीर,
हाँ रे, तर बहे बलुआ, ऊपर जल नीर,
आहे हाँ रे, पाप दहा गेलई निरमल शरीर।।४।।
हाँ रे, बन ही विरदा ही पतिया के हेल, अकली अकेल,
अकली अकेल हृदयहीन भेल, हाँ रे, सदइहीं रहेल भइया हृदयहीन भेल।।५।।
सखि रे, काया सिरिजे जब हो दिनरात
सखि रे, काया सिरिजे जब हो दिनरात, आहो सखि कइसे,
हाँ रे, कइसे के पइबों अब हो दिनरात, हाँ रे, आहो सखि कइसे।।१।।
हे सखि रे, पाँच त सखिनी आ री हे, हाँ रे पनिया के हो जाय,
आहो सखि, भरेली गगरिया आहो सखि केहो ढरकाय।।२।।
हे सखि रे, पाँच त सखिनिया आ री, आरे सखि गइली बाजार,
आहे सखि, जोरली सनेहिया, आहे सखि, केहो विछुराय।।३।।आहो सखि।।0।।
जाये लेले परमेश, रे हो जाये लेले परमेश
जाये लेले परमेश, रे हो जाये लेले परमेश, हो जाये ले ले।
आइले नरेस, रे हो आइले नरेस रे।।१।।
जाये कछु माता काछनी, आरे अनूप होई गइले,
जाये कछु माता काछनी,
बग-छला काछनी रे अनूप होई गइले।।२।।
जाये रुनझुनु आभरन, जाये रुनझुनु आभरन, रुनुझुनु,
पहिरि लेले चीर हो, हो नेपुरा के सबद मेदिनी उड़ि गेल हो।
हो मेदिनी उड़ि गेल हे, मेदिनी उड़ि गेल।।३।।
हाँ हाँ रे, देवी दुरूगा, दहिने हलुमाने,
हो रे, बायें देवी दुरूगा, दहिने हलुमाने।।४।।
हो इन्द्र भुवन जये चलले भवानी, हो जय चलले भवानी,
हो हो, इन्द्र भवन से जय।।५।।
हाँ हाँ रे, बायें हाथे खप्पर, दहिने तिरसूल हो,
कि असुरा बधन ए मइया चलेले निसुरात।।६।।
छोटी-मोटी पोखरा, सुन्नर तोरे घाट हे
छोटी-मोटी पोखरा, सुन्नर तोरे घाट हे,
हाथी के दाँत बनावे चारु घाट हे, व्याकुल कुंज बनवा.
हाँ रे, अब सिया हरि ले गइले सिरी बनवास हे, व्याकुल.।।१।।
लहलह पुरइन पाता हहराई, ताही बीचे चकवा करेले कविलास, हो व्याकुल.
हाँ रे, अब कुंज बनवें सिया हरि ले गइले बनवास हो, व्याकुल.।।२।।
सुनु भाई चकवा पहिले एक बात
हाँ रे, अब सिया हरि ले गइले बनवास हो, व्याकुल.
एही बाटे देखलो हे सिया के हरले जाले, व्याकुल कुंज बनवा।।३।।
चरिले सरवन दह उड़िले आकासे,
हाँ रे, नाहीं जानी सीता-पीता, पेटवा के चिन्ता हे, व्याकुल कुंज बनवाँ।
हाँ रे, अब सिया हरि ले गइले बनवास हो, व्याकुल कुंज बनवाँ।।४।।
हाँ रे, कोपेलें लछुमन कि धेनुख चढ़ाय के,
कि मारो सारे चकवा बोलेले अभिमान हे, व्याकुल.
कि अब सिया हरि ले गइले अब बनवास हो, व्याकुल कुँज बनवाँ।।५।।
चकई के मरले दान-पुन एक बात हे,
चकवा मरले दह होइहें सून, व्याकुल कुंज बनवाँ।।६।।
सुनु भाई चकवा, लगिहें सरापे,
हाँ रे, दिनकई ठोरा-ठोरी, रातवा बिछुड़ि जइहें जोड़ी, व्याकुल.
अब सिया, हरि के गइले, बनवासे, व्याकुल कुंज बनवाँ।।७।।
सुनु भइया बकेवा, पूछिले एक बात,
एही बाटे देखल सिया के हरले जाले, व्याकुल कुंज बनवाँ।
अब सिया हरि ले गइले बनवासे, व्याकुल कुंज बनवाँ।।८।।
चरिले सरवन दह, उड़िले आकासे,
नाहीं जानी सीता-पीता, पेटवे के चिन्ता, व्याकुल कुंज बनवाँ।।९।।
जाहू रे बकवा, लगिहें सरापे, मेहरी के जूठा करब अहार, व्याकुल.
अब सिया हरि ले गइले बनवासे, व्याकुल कुंज बनवाँ।।१0।।
माँगी-चाँगी अनले महादेव
माँगी-चाँगी अनले महादेव सूपा भरी धान हे।
अरी हो, बाघ-छाला देहले पसारी, बछहां बएला खा गइले।।१।।
अरे हो, अदहन दीहले चढ़ाई,
अरी हो, अइसन नगरिया केलोग पइंच न दिहलै।।२।।
अरे हो, अइहन दिहलें हो उतारी, गउरा मने-मने झउखेले।
अरी हो, सांझ बेरी अइहें महादेव, केथी लेके जेंवाइब।।३।।
केथी चढ़ बइठल गउरा मने-मन झउखेले।।४।।
अरे सोनवा के बनल सिंहासन, रुपवे मढ़ावल
अरी हो, तेही पर चढ़ी गउरा, मने-मन झउखेले।।५।।
(लछमिनी देवी द्वारा गाया हुआ रूप)
केथी कर बनत हो सिंहासन, केथिए हो भरावन हे
अरी हो, ताही चढ़ि अइले हो महादेव, मने-मने झउखेला हे।।
सोने के बनत हो सिंहासन, रूपवे भरावन हे
अरी, ताही हो चढ़ि अइले महादेव, मने-मने झउखेला हे।
अदहन दिहली हाँ चढ़ाई, गउरा पइंचा माँगिले हे,
अरी हो, माँगी-बानी अनले महादेव, सूपा भरी धान हे।
माँगी-चानी अनले महादेव सूपा भरी धान हे,
अरी हो, दुअरे हे देहली पसारी, बसहाँ बैला खा गइले हे।
हियरा सलल मोर, नटुलन नैन कजरवा
हियरा सलल मोर, नटुलन नैन कजरवा, हियरा सलल मोर।
एक त नटुलो अंगिया के पातर, छीको भर कजरो न लागे।
डांड़वा पहिरे लहरा-पटोर, डाँड़वा लपि-लपि जाय।।हियरा.।।१।।
झिरहिर-झिरहिर लदिया बहतु हे ताही में नटुलो नहाय।
अड़रिए चढ़ि के रसिया हेरे, ताही में नोला दहइओ न जाय।।२।।
छोट मुट गछिआ सखुअवा
छोट मुट गछिआ सखुअवा, जरिय गइले भहराई।
ताही तर निकले देवतवा, सब देव गइले उपराई।।१।।
एक दुइ देखेले, देसवा भइ गइले सोर नु हे।।२।।
अच्छत चन्नन पूजलन हे, वही पचलद जी के घार।
बाढ़ गोसाईं भक्ति बाढ़े, ब्राह्म लिहल अवतार।।३।।
साँझ भइले बेरिया बिसुहेल हे
साँझ भइले बेरिया बिसुहेल हे, सखि सब पनिया के जाई,
बाट चलत लाज लागे।।१।।
अरे पिपरे के पात पुलइया डोले हे, जलवा में डोलत सेवार,
हमें धनि डोलत कन्हैया बिनु हे, जस डोले पुरइन पात।
हम्मे धनि डोलत कन्हैया बिनु।
चान बरन झरिया बादल, मछरी बरन महाजाल,
तिरिया बरन उहो दुनु लोचन।
घइले के ओठंगन गेडुअल, अरे बहिनी के ओठंगन भाई,
तिरिया के ओठंगन परदेसी भँवरा, परदेस रहत लुभाई।
बोहल सोन नारीं उपजे, नाहींमोती फर गइले डार
मंगले मउतिओ नाहीं मिली, बेपछ भइले भगवान।
बिनु सोनवा कइसन अभरन, बिनु पुरुखा कइसन सिंगार
बिनु भइया कइसन लइहर, बेपछ भइले भगवान।
दास कबीरा निरगुन गावे हे, संतन लेहु ना बिचारी
बहुरी न इह जगवा आइब, फिर न देखब संसार।बेपछ भइले भगवान।।
सावन मासे मदन झकोरे
सावन मासे मदन झकोरे, भादो ही जमुराज अइले,
हे हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे सजनी री।।१।।
दोआदसी लागल बा केंवाड़िया ए हंसा, अगम घर चेत करू।।0।।
लाटा जे धुनि माता जे रोवे, सिरवा रोवे जेठ भइया
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।२।।
डहर-धइधइ मेहर रोवे, सिरवा रोवे जेठ भइया
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।३।।
चार जइना मिली खाट निकाले, मुख पर चदरी तनावे,
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।४।।
चार जना मिली खाट उठावे, लेइ जाले घाट अवघाट
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।५।।
पाँच जना पाँच करमा जे करे, मुख पर अगिनी घराए,
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।६।।
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, घूमी-फिरी मंदिल निरेखे,
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।७।।
दोआदसी लागल बा केंवड़िया ए हंसा, अगम घार दूर बसे।।0।।
इहे मंदिलवा में अति सुख कइलीं, घूमी-फिरी मंदिल निरेखे,
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।८।।
आधा सरग जब हंसा गइले, बरमा पूछेले बए बतिया
ए हंसा, का-का-दान पुन कइले,
ए हंसा तोहरो बुलाहट आ गइले, सुनबे री सजनी।।९।।
बालापन में खेली गंववलीं, तरूनी में खुद बिसरै,
ए बरमा, ना कुछ दान-पुर कइलीं, सुनबे री सजनी।।१0।।
दोआदसी लागल बा केंवड़िया ए हंसा, अगम घर दूर बसे।।0।।
आरा से चीरी-चीरी कइले नवखंड, वारमा पूछे एक बतिया
ए हंसा, काहें ना दान-पुन क अइल, सुनबे री सजनी।।११।।
दोआदमी मा खुलल बा केंवड़िया, ए हंसा, अगम घर चेत करु।।
कि सखि रे, कहाँ बिलमछ गिरधारी
कि सखि रे, कहाँ बिलमछ गिरधारी, साँझ भये नहिं आये मुरारी।।१।।
कि खोजन चलले मातु जसोदा, घर-घर करत पूछाई हे,
कारन कवन नाथ नहिं आये, सखि रे कंसा के डर भारी।।२।।
हाँ रे, झुंड-झुंड सखी सब आये, पारे जसोदा के गारी।
बरिजहु जसोदा जे अपने लाल के, कि सखि रे, सखियन के चोली फारी।।३।।
रोअत-कानत आवे मनमोहन, नयना से नीर बहाई,
झोरि लिये मोरा मटुक पीताम्बर, सब सखियन मिली मारी।।४।।
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