लडिकाईं में हम गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़े जात रहनी । बोरा बिछा के पढ़े के आ खजूर के छेँवकी से पिटाये के बेवस्था रहे। ओही स्कूल में बाबूजी पढ़ावत रहनी। हर शनिचर के पहिला क्लास से पांचवा तक के लड़िका/लड़की लोग स्कूल के पास आम-जामुन के गाछी के नीचे ईकठ्ठा होखे लोग। पेड़ के नीचे कुर्सी पर मास्टर साहेब लोग ( बाबूजी, मिसीर जी, बैठा जी) बईठ जाए लोग।
एगो तेज लड़िका ,जवन भर स्कूल के लड़िकन के चिन्हत होखे ,ओकरा ड्यूटी मिले कि ऊ बारी बारी से गावे वाला लड़िकन के नाम पुकारे, आ ऊ लड़िका/लड़की आके गीत/कविता/कहानी सुनावे लोग। शनिचर हमरा खातिर बड़ी आकर्षण के दिन रहे …खाली एहसे ना कि गवनई के मजलिस लागत रहे स्कूल में , बाकिर एहसे भी कि हम गा लिही त मिसीर जी माटसाहेब चाहे बैठा जी भा मोख्तार माटसाहेब हमरा के 1-2 रूपया पुरस्कार में दे देत रहे लोग।
20 बरिस पहिले जब 5 पइसा के चकलेट मिलत रहे 2 रुपया ढेर आनंद देवे।
ऊ समय अब ना वापस आई बाकिर हर आदमी बीतल निमन समय के वापस जिए के चाहेला … ओही क्रम में हमार प्रयास बा कि हर शनिचर के ओइसने संगीत के मजलिस लागो। हम बता नईखी सकत हर शनिचर के बाबूजी के गवनई रउआ सब के सोझा परोस के हम केतना गर्व महसूस करत बानी।
– चंदन सिंह जी (आखर के फेसबुक पेज से )