एगो छोट बच्ची के दुआरे प एगो सेमर के विशाल गाछ रहे. ओह घरी इहे बसंत के महिना चलत रहे. सेमर के फूल दिन में लाल-लाल फूलाव आ सांझी होत गिर जाए. छोटकी बुचिया रोज अपना खिड़की के लगे स्टूल रख के ओह प खड़ा हो के फूलवा के निहारे, निरखे आ सोचे कि केहु एह फुल के तूड़ के ओह के दीही त केतना निमन होइत. बिछवना प से उठते बुचिया आपन स्टूल उठावे आ पहुंच जाए खिड़की के सोझा. बुचिया के माई इ देख के बड़ा चिंतित रहें कि कहीं इ खिड़की से बाहर गिर मत जाव आ कवनो अनहोनी मत हो जाए.
समय बितत गइल बाकि इ सिलसिला जारी रहे. एक दिन सेमर के गछिया के दोसर तरफ के छत प एगो मेहरारू कपड़ा पसरले रही ऊ जब ओह कपड़न के बिटोरे लगली तबे उनकर नजर सेमर के फूलन प पड़ल उहो ओह फूलन के निरखे लगली. कुछ देर बाद छत प एगो आदमी आ गइल आ उ ओह मेहरारू के अंकाबारी में बांध लिहले, दुनो बेकत एक दुसरा के निहारते छत प सुत गइल लोग. फिर कुछ देर बाद एगो दोसर मरद अइने त इ दुनो जाना झटका के साथे एक- दोसरा से अलग हो गइल लोग. उ मरदा तनी खिसियाह बुझात रहे, मेहरारू के लखेदे लागल. आ जब उ धरा गइली त उनका के कोठा प से सेमरे के गाछी प धकेल दिहलस.
ओह मेहरारू के हाथ में सेमर के एगो डाढ़ लागल जवना में फूल भी रहे. बाकि उ डाढ़ केतना देर तक वजन सही, मेहरारू नीचे गिर गइली. बुचिया आपन खिड़की प से चिल्लाइल माई रे जल्दी आव, ऊ मेहरारू फूल तुड़े गइली ह त गिर गइली ह. माई घर से नीचे आके देखली ह त सेमर के गाछ त एगो लाश पड़ल बा. बुचिया के मन में इ बात बैठ गइल बा कि सेमर के फूल तुड़ला से आदमी मर जाला. अब बुचिया सेमर के फूल तुड़े के कबो ना सोचेले.
लेखक: देवेन्द्र नाथ तिवारी (आखर के फेसबुक पेज से)