लोकरंग: पूर्वी उत्तर प्रदेश का कुशीनगर। वहीं से करीब 18 किलोमीटर दूर फ़ाज़िलनगर और फ़ज़ीलनगर से तकरीबन 3 किलोमीटर हाई वे से दाहिने साइड उतर कर भीतर की ओर एक छोटा सा गाँव- जोगिया जनूबीपट्टी। जनूबी मतलब दक्षिण टोला। जानते ही होंगे सामाजिक व्यवस्था में दक्षिण टोले में कौन लोग रहते हैं?
बहरहाल, सांस्कृतिक भड़ैती,फूहड़पन के विरुद्ध व जनसंस्कृति के संवर्धन के लिए के एक जनक्रांति का सूत्रधार है यह गाँव। कैसे, आइये देखते है इस वर्ष (2019) आयोजित ‘लोकरंग’ के विभिन्न रंगों को जिसमें शामिल है प्रेम, हमारे गिरमिटिया पूर्वजों का दर्द, भोजपुरी भाषा समेत अन्य लोकभाषाओं की महत्ता, भारत के विभिन्न प्रांतों की लोकगीत, लोकनाट्य, लोकनृत्य और सामाजिक चेतना और आपसी भाईचारा ।
11-12 अप्रैल, 2019 के गिरमिटिया महोत्सव का शुभारंभ। दरअसल लोकरंग का यह बारहवां वर्ष था। गाँव दुल्हन की तरह सज धज कर तैयार। गाँव भर की धान की बेहरियों से लेकर लगभग 500 मीटर दूर अवस्थित मंच और मंच परिसर को डॉ राजकुमार जी के निर्देशन में ‘संभावना कला मंच’ ने भित्ति चित्र, कविता, मूर्ति और आज मीडिया के दोयम दर्जे के चरित्र को पोस्टर से जो प्रदर्शित किया था, वह देखते बन रहा था शायद आप वहां गए होते तो आपके भी मुंह से बरबस निकल ही आता – ‘वाह’ और ‘आह’।
हमलोग लोकरंग कार्यक्रम में शामिल होने दिल्ली से गोरखपुर और गोरखपुर में लोकरंग सांस्कृतिक समिति के प्रमुख इतिहासकार, साहित्यकार और सामाजिक चिन्तक आदरणीय सुभाष चंद कुशवाहा जी ने हमारे रहने और आवागमन की समस्त व्यवस्थाएं कर रखी थी। यही नहीं शामिल होनेवाली विभिन्न राज्यों से आई प्रत्येक टीम, अन्तर्राष्ट्रीय टीम जो मॉरीशस, गुयाना, लातिन अमेरिका और नीदरलैंड से आई थीं सबका उचित आवाभगत के साथ रहने- खाने और आवागमन की सुविधाएं मुहैया कराई गई थी। लोकरंग के वोलेंटियर हरे रंग के टी-शर्ट में हर क्षण, हर पल, हर जगह चुस्त और दुरुस्त। सबकी सेवा में हाज़िर। सबके साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार।
जब हम जोगिया जनूबी पट्टी गाँव में प्रवेश कर रहे थे तब हमारे साथ बोलेरो में सुप्रसिद्ध दलित चिन्तक डॉ जयप्रकाश कर्दम और रंगकर्मी अभिषेक भोजपुरिया थे और जैसे जैसे गाँव में हम प्रवेश कर रहे थे, हमारे सामने लोकरंग का परचम फ़ाज़िलनगर से ही पोस्टर, फेल्स के माध्यम से फैलने लगा था। जैसे जैसे गाँव की बढ़े, वैसे वैसे लोकरंग अपने रंग में हमें सराबोर किये जा रहा था। फ़ज़ीलनगर से लगभग 3 किमी से चूना से रास्ता निर्देशित किया गया था और गाँव में घुसते हम लोगरंग के रंग में रंगा गये पर यह क्या, जैसे गाड़ी एक बड़े से घर के गेट पर रुकी तो कुछ वोलेंटियर हाथ में गुलाबी अबीर की थाली लिये हमारे माथे पर तिलक कर दिए और पीछे से सिंगा वादन शुरू हो गया। वहीं लोकरंग के सूत्रधार सुभाषचंद्र कुशवाहा जी मिले उन्होंने सम्मनापूर्वक हमें ठहरने का कमरा दिखाया। शानदार कमरा। सबके लिए बेड और गाँव में भी तमाम आधुनिक सुख सुविधा से लैस कमरा और आधुनिक टॉयलेट।
लोकरंग का कार्यक्रम रात्रि आठ बजे से शुरू होता है अतः हमें बताया गया कि आप लोग फ्रेस हो लें और दोपहर 1से 2 बजे के बीच भोजन अवश्य कर लें फिर थोड़ा आराम। रात्रि 7 से 8 बजे के बीच में रात्रि का भोजन भी सभी पार्टिसिपेंट के समूह में होता था। खाने के कार्यक्रम स्थल से कि 300 मीटर दूर था कार्यक्रम परिसर।वैसे ठहरने के लिए गाँव के कई घरों में व्यवस्था की गई थी। किसी भी दरवाजे भागीदारी करने वालों को पानी नाश्ता तैयार मिलता था यानि लोकरंग में पूरा गाँव सहभागियों के लिए पलक पाँवड़े बिछा रखा था।
लोकरंग: पहली रात । 11 अप्रैल, 2019
रात्रि 8 बजे भोजन के बाद में हम लोग कार्यक्रम परिसर में पहुँचे, स्थान ग्रहण किया और बिना किसी औपचारिता कार्यक्रम की शुरुआत करने की घोषणा लोकरंग के सूत्रधार सुभाषचंद्र कुशवाहा जी ने यह कहते हुए कहा कि ‘लोकरंग का कार्यक्रम मानवतावादी कार्यक्रम है जो एक मानव को मानव बनाने उत्योग है।’ उसके बाद कार्यक्रम का संचालन रीवा विवि, मध्य प्रदेश में हिंदी विभाग के अध्यक्ष और वरिष्ठ कवि प्रो दिनेश चंद कुशवाह जी को सौंप दिया गया। प्रो०कुशवाहा ने अपनी मीठी आवाज़ में मारक कविताओं की पंक्तियों और मशहूर शेरों से दर्शकों को कभी गुदगुदाते तो कभी साधारण शब्दों में आसाधरण बातें कह जाते। साथ ही, लोकरंग के प्रथम रात्रि में ही ‘लोकरंग पत्रिका’ का विमोचन किया गया जिसमें विदेशी मेहमानों सहित देश के कोने कोने से आये विद्वतजन यथा, डॉ जयप्रकाश कर्दम जी, प्रो दिनेश कुशवाह जी, प्रो सदानंद शाही जी, डॉ सरिता बुधु जी, रामजी यादव, अपर्णा व पत्रिका के सम्पादक श्री सुभाष कुशवाहा एवं सह- सम्पादक श्रीमती आशा कुशवाहा आदि लोगों ने भाग लिया।
मैंने उपर कहा है कि सामूहिकता का जो परिचय इस कार्यक्रम में देखने को मिला वह अद्भुत है। पूरा गाँव अतिथियों के सम्मान में लगा है, पूरा गाँव बिना किसी भेदभाव के कार्यक्रम को देखता है और अपने अपने घरों को सजा कर रखते हैं।
साथ ही अनुशासन ऐसा कि मंच पर केवल और केवल कलाकार। दिए गए समय में सबने अपनी प्रस्तुति दी । मतलब कोई भेड़ियाधसान नहीं।
पहली रात की पहली प्रस्तुति गाँव की दो महिलाओं द्वारा होरी गीत गायन था। इस गाँव की दोनों महिलाएं जो ठेठ ग्रामीण महिलाएं थी उन्होंने होरी गीत प्रस्तुत किया। उसके बाद बिहार के सिवान जिले से आये श्री आशुतोष व उनके परिवर्तन टीम के कलाकारों ने आमिर खुसरो लिखित दो सूफीयाना लोकगीत की जबरदस्त प्रस्तुति दी।
पूरा परिसर खचाखच भीड़ से भरा हुआ था। दूर दराज के गाँव से लेकर राष्ट्रीय,अन्तर्राष्ट्रीय दर्शक मौजूद थे। तिल रखने का जगह नहीं। जो जहां बैठा था वहीं स्थिर एकटक मंच की ओर देख रहा था।
सूफी गायन के बाद गयाना/ अमेरिकी टीम का चटनी गायन की प्रस्तुति हुई जिसमें मुख्य गायक एस्टान रमदहल थे और साथ में राखेंद्र रमदहल, शैलेश शंकर, जोयचन्दर प्रसाद शंकर आदि लोगों ने भी विभिन्न वाद्य यंत्रों पर उनका साथ दिया।
इसके बाद रात्रि 10 बजे से सपेरा नृत्य की प्रस्तुति मास्टर जगराज बंगाली, जय किशन नाथ, रामपाल नाथ जीतू और भूपेंद्र नाथ की टीम ने दी जो क्रमशः गांधीनगर, बिजनौर और लखनऊ से आये थे।
सपेरा नृत्य के बाद भोजपुरी स्पीकिंग यूनियन, मॉरीशस द्वारा ‘गीत गवाई’ की जबरदस्त और जीवंत प्रस्तुति दी गई । विदित हो कि यूनेस्को ने ‘गीत गवाई’ को मानवीय हेरिटेज के रूप में इसको मान्यता प्रदान की है। 30 मॉरीशस की महिलाओं द्वारा भोजपुरी संस्कार गीतों की दिल छू जाने वाली प्रस्तुति हुई। इसमें शामिल महिलाओं ने सामूहिक गान के साथ साथ नृत्य भी प्रस्तुत किया।
रात्रि परवान पर, शीतल हवा मानों हमारी आंखों की नींद चुरा कर ले गई हो, तभी जोधपुर, राजस्थान के शकील ख्यान के नेतृत्व में आई विक्की मनचला एंड पार्टी की टोली राजस्थानी चकरी एवं घूमर नृत्य साथ मंच पर उपस्थित हुई। घूमर नृत्य में सीमा की टीम ने कमाल कर दिया लोगों ने अपनी तालियों से यह बतला दिया कि सच में उनकी प्रस्तुति सब पर राजस्थानी रंग सिर चढ़ कर बोल रहा है।
लोकरंग में कितने रंग है इसे जानना आसान नहीं पर लोक में तरह तरह के रूप रंग, वाणी बोली, गीत संगीत और नाच के साथ साथ जीवन जीने की कला भी है साथ ही मनुष्य को मानव बनाने की व्याकुलता भी देखने को मिलती है। इस क्रम में शांत रात्रि में जब बाउल गायन की प्रस्तुति हो तो क्या कहने!
ठीक मध्यरात्रि, वीरभूम बाउल और लोकगीत समूह जिसमें शामिल थे जगन्नाथ दास बाउल, शम्भूनाथ सरकार, रूपा सरकार, प्रतापचंद दास बाउल (दोतारा पर),बीरबल कोनई बांसुरी,हरिपद पाल तबला, दर्पण सरकार गिटार पर। बाउल के मिस्टिकल और कर्णप्रिय गायन ने सबको आनंद विभोर कर दिया।
और कहा गया है कि अंत भला तो सब भला। रात्रि अब ढलान पर थी परन्तु लोगों का उत्साह बरकरार। सबको इंतजार था पहली रात की अंतिम प्रस्तुति का। अंतिम प्रस्तुति लोकरंग में लोक नाटक होता है और इसबार का नाटक था भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर का नाटक-बेटी बेचवा। इस नाटक की प्रस्तुति परिवर्तन रंग मंडली, जीरादेई, सिवान की टीम ने की। हास परिहास और भावुकता से सराबोर इस नाटक में बेमेल शादी के लिए बेटी बेचने की कुप्रथा का मुखर विरोध है। एक सामाजिक सन्देश है और माना जाता है कि इस नाटक ने अपने समय में लाखों लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया था जिसका नतीजा यह हुआ कि गरीबी और मुफ़लिसी की जिंदगी जीनेवाले जो चंद पैसों के अपनी फूल सी बिटिया को किसी बूढ़े से ब्याह देते थे, उनका भी ह्रदय परिवर्तन हुआ और इस कुप्रथा का लगभग अंत हो गया था। यह ताकत है लोकरंग का जिसको बिखेर कर भिखारी ठाकुर समाजिक चेतना प्रवाह किया।
तकरीबन ढ़ाई बजे रात को नाटक समाप्त हुआ और इस तरह पहली रात्रि के कार्यक्रम का समापन हुआ। तालियों की गड़गड़ाहट साथ दूसरी रात के इंतजार में गाँव के सभी निवासी, आस पास के गाँव से आये सभी दर्शक अपनी अपनी सवारियों से घर के ओर निकल पड़े और हम भी अपने विश्रामालय में आते ही लोगरंग की पहली रात की स्मृतियों को मन की मऊनी में बन्द कर लिए और बेचित सो गए।
– संतोष पटेल जी
रउवा खातिर:
भोजपुरी मुहावरा आउर कहाउत
देहाती गारी आ ओरहन
भोजपुरी शब्द के उल्टा अर्थ वाला शब्द
जानवर के नाम भोजपुरी में
भोजपुरी में चिरई चुरुंग के नाम