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कुमार विनय पांडेय जी के लिखल माई के करजा

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कुमार विनय पांडेय जी के लिखल माई के करजा
कुमार विनय पांडेय जी के लिखल माई के करजा

नान्ह-नान्ह हाथ-गोड नान्हही देहिया,
दिन-दिन बढल जाला तोहरो उमीरिया।
घर भर करे तोहसे बहुत सनेहिया,
नजर ना लागो माई-बाबूजी के कीरिया।।

बाटे ना सहुर तहरा उठे-बैठे, बोले के,
तवनो पर माई संगे दिन-रात जुझेली।
हवS अडभंगी, रूप हउव बाबा भोले के,
धन बाड़ी माई तोहार हर बात बुझेली।।

भोरही से भर दिन घर-बासन करेली,
सबके सम्हारे, राखे तोहरो उ ध्यान।
छने-छने छतिया के अमरित पीयावेली,
का चाही, कब चाही, बाटे सब ज्ञान।।

दिनवा के थाकल जब नीनवा सतावे उनके,
सुध-बुध खोई गिर जाली उ बिछवना पर।
तनिको तु रोअ चाहे, अचिको हिलाव उनके,
जागेली चिहाई खोजे तोहके बिछवना पर।।

रह जाली दिनो-रात तोहरे में अझुराई के,
आपन सुखवा के ना बाटे उनका फिकिर
धन्य बाडी माई, धन्य महिमा बा माई के,
तबो पापी पूतवा ना करे उनकर जिकिर।।

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