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दीपक तिवारी जी के लिखल कुछ भोजपुरी कविता

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दीपक तिवारी जी

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बिछड़े जब इयार

जान से बेसी केहू के जब कइल जाला पेयार,
दरद होला बड़ा दिल में बिछड़े जब इयार।

दरद जुदाई के सहले नाही सहाला हो,
दुनियाँ लागे वीरान कुछ ना बुझाला हो।
रुके ना छन भर बहे बस अंसुवाँ के धार..
दरद होला बड़ा दिल में बिछड़े जब इयार।

पेयार में अक्सर होला पागल जस हाल,
बुद्धि जाला हेराई आ काम ना करे भाल।
समझेला ना कुछो समझा ल कतनो बार..
दरद होला बड़ा दिल में बिछड़े जब इयार।

चेहरा प गजबे होला ओह बेरा एगो चमक,
सदाबहार जिनगी लागे तेज दीप्ति दमक।
बड़ा नीमन लागेला कइल जेकर इंतजार..
दरद होला बड़ा दिल में बिछड़े जब इयार।

आपन हमदर्द

माई जइसन,प्यार करे,ना करि केहू,
आपन हमदर्द,चाहें केतनो, होई सेहूँ।

दीपक तिवारी जी
दीपक तिवारी जी

माई के अँचरा,जइसे छाँव, कहि मिले ना,
प्रभु के मरजी वगैर,जइसे पतई हिले ना।
सकून मिले,जवन ओतना,ना दीही केहू..
आपन हमदर्द,चाहें केतनो, होई सेहूँ।

फुसला के कहे,खाले तनी पीले ना,
अपना करेजावाँ के,एको छन,ढ़ीलें ना।
रोज ओकरा,लेखा धेयान,ना राखि केहू..
आपन हमदर्द,चाहें केतनो, होई सेहूँ।

माई अपने उपास रहे,चाहें कई दिना,
सुते ना देउ कहियो,बाकी खइला बिना।
उठs उठs,मोर सोना,कहि खियाई केहू..
आपन हमदर्द,चाहें केतनो, होई सेहूँ।

बाबू रहें,सही सलामत,सब करेली वरत,
जिनगी खत्म हो जाला,दुआ करत करत।
जगे ले नाही पाई,भले,लोग बने केहू..
आपन हमदर्द,चाहें केतनो, होई सेहूँ।

मिलेला सवाद बड़ा,माई हाथे खइला में,
बइठ के रोवेली माई,हाँ कुछो भइला में।
दीपक दिल के,दर्द दोसर,ना बुझी केहू..
आपन हमदर्द,चाहें केतनो, होई सेहूँ।

अखियाँ के जोति

अखियाँ के जोति आ लाठी सहारा,
खूबसूरत देखे में रहे जवन तारा।

गइल पराई काहे हमके छोड़ी,
रेशम के धागा के जबरन तोड़ी।

हँसल ना जाला आ रोवल ना जाला,
अइसन सिनवाँ में मार दिहले भाला।

का दो ना उनुका मन में समाइल,
ताके ले कबहुँ नाही भुलाइल।

हम जेकरा प शुरुवे से रहनी धधाइल,
ओकरा ना तनिको मोह माया आइल।

आसा निराशा में तब्दील भइल,
होखे के जवन ना सगरो हो गइल।

अमवाँ के गछियाँ प फरल इमिलियाँ,
कहवाँ से परल ई मथवाँ में ढ़ीलियाँ।

अब त सहारा बाटे बस उनुके,
कवनो भरोशा नाही बाटे खुनके।

आँखी से लोर बहे सोची,सोची,
फाटल दिल अस सी पाई ना मोची।

आवे ना कबो आफत असमाई,
कहे दीपक सब बचल रहे भाई।

लाज लागता बोले में

लाज लागता बोले में,
आपन माई भाषा,
जाता बिगरल दिने दिन,
एकर देखीं दाशा।

मिली एके सम्मान,
करि का लोग आदर,
जब हमनी के खुदे,
करsतानी जा निरादर।
बा एकरा परती हमनी के,
तनिको ना नाशा..

केहू सोचे ना भीतरी से अचको,
की हम भोजपुरिया हई,
हम वीर सपुतन के माटी में,
खेलल कुदल हई।
आपस में मिली जुली,
एकर कुटत तानी जा लासा..

जब गर्व से ना बोलल जाई,
हमनी के भोजपुरी,
सपना अधूरा रह जाई,
कबो तय ना होई दूरी।
जिगनी असही निकल जाई,
लगवले ही आशा..

जाई अश्लीलता ओराई

देखा देखी कइल ना जाव
बा एहि में भलाई।
आवे वाला दिनन में जाई
अश्लीलता ओराई।।

साफ सुथरा लोग गाई सुनी
नीमन होई समाज।
धीर धरि जी धीर धरि
एक दिन बदली रीत रिवाज।।
जवना के चाहत बा दिल में
घूम फिरी के लगे आई..
आवे वाला दिनन में
जाई अश्लीलता ओराई।।

सुघर साघर रचना होई
अस कवि लोग के दोवारा।
जवन भोजपुरी के मान बढ़ाई
चमकी बन के तारा।।
आज के जइसे ओह बेरा
केहू अँगुरी ना उठाई..
आवे वाला दिनन में
जाई अश्लीलता ओराई।।

कल्पना हमार सत्य होय
होखे सबकर शुद्ध विचार।
एहि आसरा में मिलजुल के
कइल जाँ प्रचार प्रसार।।
कइल जाई जो कोशिश दीपक
मेहनत रंग लाई..
आवे वाला दिनन में
जाई अश्लीलता ओराई।।

साँच घटना हँ

साँच घटना हँ काल्पनिक नाही
कई साल पहिले के।
दु परिवार एक गाँव में रहे
बड़ा आफत रहे खइले के।।

मर मजदूरी क के कइसो
जरत रहे चूल्हाँ चाकी।
ढंग से पेटवाँ भरे नाही
अउरी का कहि बाकी।।

हित बनी उभरले एक दिन
आपन खासम खाशे।
रहस आँखि के सोझाँ
घरवो रहे पासे।।

कहले की विदेश जालो
कमइबs लो ढेर पइसा।
भाई बात मान लो हमार
काम कबले चली अइसा।।

बात सुन के नीमन लागल
लउके लागल नोट।
झट पट एने ओने क के
बनी गइल पासपोर्ट।।

भइल चढ़ाई बहरा के
चहुँप गइल लो सऊदी।
जब काम धंधा से परल पाला
त होखे लागल रतौंधी।।

एक जना के ँट मिलल
चरावे खातिर भेड़।
दूर दूर ले बालू लउके
एको नाही फेड़।।

मन मार के लाग गइल लो
अपना अपना काम में।
आ रोजे रोजे गिनती होखे
ँट भेड़ के शाम में।।

कई महीना गुजर गइल
आइल देखे ना अरबाब।
कई भेड़ के बना के एने
देले रहे लो दाब।।

अचानक एक दिन आइल
भइल गिनती ँट भेड़ कम।
आ एने दुनु जना के अब
बुझलीं निकलत रहे दम।।

पहिले पूछलसि पाछे मरलस
दुनु जना के कचर के।
सब निकल गइल एके दिन में
जवन खइले रहेलो हचड़ के।।

फोन घुमाई पुलिस बोलवलस
भेजलस दुनु जना के जेल।
खातिर बातिर त खूबे भइल
भइल कइसो कइसो बेल।।

ढ़हत ढ़ीमूलात केहू तरे
आइल लो अपना घरे।
जवन छोड़ के गइल रहे लो
लागल लो उहे करे।।

सोच विचार के जाइबि
दीपक कहेले विदेश में।
नाही त रुउवो पर जाइबि
संकट कवनो क्लेश में।।

रिश्ता नाही औपचारिकता निभावल जाता

रिश्ता नाही औपचारिकता निभावल जाता,
अब अपनापन के बस ढोंग रचावल जाता।
एह रोग से सभे आज हो गइल बा ग्रसित,
केहु तरे दीपक देखीं लाज बचावल जाता।

केकरा के याद करीं के के हम बिसार दीं,
केकरा के छोड़ी हम केकरा के मार दीं।
जब सब केहु अपने हमदर्द सँघाती बा,
तब आगि लगा के हम केकर घर जार दीं।

अब केहु के चेहरा प अचको ना हँसी,
देखीं ना आँख लोग के गइल बा धँसी।
सब कोई अहम से भरल लबालब,
मोह माया कइसे दया दिल में बसी।

हृदय से सभे अब कठोर भइल जाता,
अब सूझे ना नीमन ना कुछो बुझाता।
भीतरी से सभे आज हो गइल घाती,
अब ऊपरे मने से बस निबहता नाता।

दुनियाँ में केहु आपन

दुनियाँ में केहु आपन
खास नाही बा,
अब केहु का केहु प
विश्वास नाही बा।

खींचता सभे
अब अपना ओरी,
अपने ही घरवाँ में
करेला चोरी।
केहु,केहु के रह
गइल दास नाही बा..

जन्मे कोखि से ओहि
के मारता लात,
तनिको बबुववाँ
सुने ना बात।
आपन अपने होके
लगे पास नाही बा..

डर रति भर केहु का
बा नाही अब,
सभे बने दबंग
केहु से केहु ना दब।
भले देहि में पाव भर
मांस नाही बा..

मोर बीतता उमिर
रोज मोह जाल में,
लोग कबले रहि
दीपक ए हाल में।
दूर करे के होत
प्रयास नाही बा..

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