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कवने ओरियाँ

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जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

पीरितिया के कइसे जोगाईं जोगी जी ।
कवने ओरियाँ मुहवाँ छिपाईं जोगी जी ॥

बयरी बनल बाटें पुलिस दरोगवा
अचके मे बढ़ल जाता प्रेम रोगवा
घरी घरी देवता के मनाईं जोगी जी ॥ कवने ओरियाँ……………..

घरवाँ दुवरवाँ बा पहिले से पहरा
अब दुसवार भईल निकसल बहरा
कब प्रेम के सेजरिया सजाईं जोगी जी ॥ कवने ओरियाँ…………….

कूल्हि कोतवलिया मे जमघट लागल
बचवा क हाल सुनी घर भइल पागल
जम के सगरों होता ठोकाई जोगी जी ॥ कवने ओरियाँ…………..

खुस होत चंहकत भाई भतीजवा
सइयाँ बदे मोर करकत करेजवा
अपने रोमियो के कहाँ ढुकाईं जोगी जी ॥ कवने ओरियाँ…………..

– जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

रउवा खातिर:
भोजपुरी मुहावरा आउर कहाउत
देहाती गारी आ ओरहन
भोजपुरी शब्द के उल्टा अर्थ वाला शब्द
कइसे भोजपुरी सिखल जाव : पहिलका दिन
कइसे भोजपुरी सिखल जाव : दुसरका दिन
कइसे भोजपुरी सिखल जाव : तिसरका दिन
कइसे भोजपुरी सिखल जाव : चउथा दिन
कइसे भोजपुरी सिखल जाव : पांचवा दिन
कइसे भोजपुरी सिखल जाव : छठवा दिन
कइसे भोजपुरी सिखल जाव : सातवा दिन
कइसे भोजपुरी सिखल जाव : आठवाँ दिन

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