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विवेक सिंह जी के लिखल भोजपुरी कविता

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विवेक सिंह जी
विवेक सिंह जी

बसंत के नशा

गजब के नशा छा गईल बा !
ई बसंत जहीया से आगईल बा !! !!

आपन-मन-अपने अगराईल !
कबो बधार त कबो बगईचा घुम आईल !! !!

कही फगुवा के ताल ठोकाईल बा !
कही कोयल के राग सुनाईल बा !! !!

मचलता भवरा हर कलीया पे !
जब से सरसो-तिसी-मटर फुलाइल बा !! !!

गजब के नशा छा गईल बा !
ई बसंत जहीया से आगईल बा !! !!

अमवा के मोजरा शुगंध छोरे !
मटवा हर डाली पर दऊरे !! !!

महुवा टप-टप कर के चुवे !
लगे टिपकारी बुनी के परे !! !!

कही चिमनी से धुवा उठे !
कही महिया के शुगंध जूटे !! !!

अरे रवि अब फूटे पे आईल बा !
देख के सित लजाईल बा !! !!

गजब के नशा छा गईल बा !
ई बसंत जहीया से आगईल बा !! !!

कबो-कबो बसंत बेयार आवे !
चारो दिशा मे खुशबू बिखेर जावे !! !!

कचरी के झूरिया तिसी से टकरावे !
मधुवन के अरहर के फुलरस चुसावे !! !!

कही ऊरे अकवन के भूवा !
लईकन के पिछे दऊरावे !! !!

सुरज के सतरंगी रोनक मे !
कही चमके कही आँख मिचावे !! !!

अरे गजब के नशा छा गईल बा !
ई बसंत जहीया से आगईल बा !! !!

आज के प्रवेश में शरद ऋतु

मन कोमल भइल, तन ठिठुराइल बा
शरद ऋतु जब से आईल बा !! !!

फुहार बन के गिरे ओश
रवि भी सीत से नहाइल बा !! !!

देख मन ह्रसित भइल अलगु के
समय के प्रवेश में ओकरा पास
भी अब रजाई बा !! !!

बदलल समाज के रित अब
सब समय के दोहाई बा !! !!

अरे अब केकरा लगे पुआल
के चटाई बा !! !!

मन कोमल भइल, ……………
शरद ऋतु जब …………….. !! !!

बितल याद से, आनंद छाए मन के
हर केहु के दुवार पे, कऊर लागत रहे ज़म के !! !!

बुजूर्ग होखे या जवान, अब कहा बा
लाज-शर्म-प्रेम के नाम !! !!

सब कोई सोवार्थ में समाइल बा
मौबाइल लेके रजाई में लूकाइल बा !! !!

बदलाव नियम त मजबुरी ह
पुरखन से मिलल सभ्यता रखल ज़रूरी ह !! !!

अब कहा इक्षा में जान बा
कहा केहु बुजूर्ग से लेत ग्यान बा !! !!

गाव से ही ज़िन्दा ई आपन देश बा
ईहे सभ्यता अ प्रतिष्ठा बचल अब शेष बा !! !!

मन कोमल भइल. …………….
शरद ऋतु जब से. ………………!! !!

सबके स्वार्थ में जरत हम देखनी

सबके स्वार्थ में जरत हम देखनी,
गांव के मरत हम देखनी।।

ना दिखे प्रेम,मेल,भाव भावना के,
हमी,हम रथ जवना के।।

सब जगह फइलल वासना,
नंगा नाचे पत्तित आत्मा।।

अंधियारा अब चिल्लाता,
जुगनू के चमक खोजाता।।

हर रात खड़ा बा काल बन के,
कुकुर ना भौके अब जान कर के।।

सबके स्वार्थ में जरत………,
गांव के मरत………..।।

देखते,देखत सब दूर भइल,
लोभ के छा में सब धुर भइल।।

हर हृदय के हाल एक,
हम हमार परिवार बाल एक।।

खामोस हर गांव के सिवाना,
गौरईया के कहा बा ठिकाना।।

ना दिखे कठफोड़वा के ठोड़ हो,
ना अब गिद्धन के होड़ हो।।

लउके इंसान में गिद्धन के नजारा,
जोना के ठोड़ ह्रदय में घुस जाला।।

सबके स्वार्थ में जरत……..,
गांव के मरत ………..।।

गांव अब सुतल जाता,
सब कोई गांव छोरत जाता।।

मेल के ना कौनो खेल बा,
सब अपने खेल में रैल बा।।

अइसन ना भागम,भाग आइल,
गांव लागे अब जेल बा।।

सब कथा,कहानी रफ्तार पकड़े,
गांव अब किताब में उखड़े।।

लागे सब कुछ अईसे बितल,
जइसे खड़ा,खड़ा तमासा दिखल।।

सबके स्वार्थ में जरत……….,
गांव के मरत………..।।

बशहा प भईले दुलहा सवार

बाजल ड़मरू’ ऊरल गुलाल !
बशहा पे भईले दुलहा सवार !! !!

चारो दिशा मे गुजे नमः शिवाए !
भभूत लपेटे ‘ भंग चढाए !! !!

भूत-पिचास और देव-मुनी-नर !
सब जाता एेके ढगर !! !!

कही दिखे बिछुवन के टोली !
कही लऊके सापन के लछर !! !!

कामदेव बाडे मोहीनी बिखेरत !
नारद जी बानी राग बिसेरत !! !!

बाजे सिंघा और नगाडा !
चारो दिशा भइल ऊजीयारा !! !!

बशहा के बा सजावट निराला !
कानन मे कुण्डल पेरन मे बाला !! !!

गला मे सोहे घुघरू के माला !
पिठ पे सजल एकरंगा दोसाला !! !!

बाजल ड़मरू ‘ ऊरल गुलाल !
बशहा पे भईले दुलहा सवार !! !!

रुप इंकर अनंत ज्योती मय !
रंग श्यामला निलकंठ कोटी मय !! !!

ललाट चन्द्रमा ‘ जटा गंग बिराजस !
सिंघ के छाल सदा कमर पे बान्धस !! !!

कान मे बिछुवन के कुण्डल !
गला मे षेशनाथ बिराजस !! !!

सदा हाथ मे लिके त्रिशुल !
भयंकर-भय के हाकस !! !!

ऊमा कईली ऊपासना शिव-शंकर के !
पती रुप मे पईली महेश्वर के !! !!

भइल मिलन पार्वती-शंकर के !
तब दिखल रुप अर्धनारिश्वर के !! !!

निरंकार बा संसार इनकर !
ॐ मे दिखल अकार ज़िंकार !! !!

हर-हर महादेव के लागे जय कार !
आज भईल हिन्द भक्ति मय सार !! !!

छोटकन

लागे अभी-अभी त बितल बा,
उ दिन सबसे मिठकन रहे।।

जब चूल्हा में झोकात,
सरसउटी के तिनकन रहे।।

माटी के चूल्हा,पितल के बरतन
जब पकावे माई रोटी,
ओकरा पास बइठत हमेसा छोटकन रहे।।

मुह सुखाए, रोये गाये,
माई के कोरा में जाये।।

माई हमेसा आश धरावे,
आटा के चिरई पका के थमावे।।

लेके चिरई छोटकन ऊर जाए,
सउसे दुअरा घूमे,खाये।।

आंगन में ना कौनो दिवार रहे,
जब सब के मन मे प्यार रहे।।

कबो-कबो छोटकन सुत जाए,
माई आये अकवारी में भर के उठाये।।

कोरा में लेके दुलारे,
नींद में ही खाना खिआये।।

दिन भर के खेलल-कुदल,
सारा दिन मस्ती में घुमल।।

थक-हार के सुत गईल बा,
कह-कह के माई गोर-हाथ दबावे।।
सरसो के तेल देही में लगावे।।।

सुबह उठत ना कौनो थकान रहे,
मन मे हमेसा उत्साह रहे।।

जब ना मिले मन जोगे कुछो,
छोटकन धुरा में खूब लोटात रहे।।

अरे एगो लेमचूस खातिर ,
बाबा के संघे बाजार जात रहे।।

खोले बाकस माई जब आपन,
पहिले उहे समान उलाट देवे।।

खिसिया के माई छोटकन,
के खूबे डाट देवे।।

रहे छोटकन अइसन ,
सबसे ही प्यार पावे।।

दिन भर चौकसी करे,
करे मन मे आवे जवन।।

जब साम ढले होखे अंधेरा,
दिया जरे, उठे जब धुवा।।

फिर छोटकन ओहिजा दिखत रहे,
जहा माई चूल्हा में झोकत सरसउटी के तिनकन रहे।।

लागे अभी-अभी त बितल बा,
दिन सबसे मिठकन रहे

जब चूल्हा में झोकात,
सरसऊटी के तिनकन रहे।।

तड़पत जवानी के जंग देखनी

तड़पत जवानी के जंग देखनी,
जिंदगी में मिलत हर रंग देखनी।।

अवस्था के गीरत कंद देखनी,
चिखत चिलात हुड़दंग देखनी।।

शान्त सरोवर के तरंग देखनी।,
आसमान के नापत पतंग देखनी।।

तड़पत जवानी………..?

मेघा मेघावर के संग देखनी,
मेला में जोड़ी के उमंग देखनी।।

हाट देखनी हर घाट देखनी,
नदियन के पाट देखनी।।

इमारत पे इमारत के ठाट देखनी,
बसंत में बयार के नाच देखनी।।

तड़पत जवानी ………….?

सूखा से त्रस्त बधार देखनी,
हाल से पिछड़त उ साल देखनी।।

अपने जाल में फसत प्राण देखनी,
माटी के भीत से बनत इट के देवाल देखनी।।

भावना में पड़के करत आलाप देखनी,
स्वार्थ के जात में पीसत रिश्ता के
सास देखनी।।

तड़पत जवानी………….?

मन में छिपल शैतान के ताल देखनी,
क के पछतात कर्म पे कर्मवीर देखनी।।

हिंसा हिंसक के रूप बिकराल देखनी,
जात पात केे पनपत काल देखनी।।

दुबर पे बजरत अबर के गाल देखनी,
कर्म के हल से खिचत किस्मत के किसान देखनी।।

तड़पत जवानी के हम जंग देखनी।।।।

 

रउवा खातिर:
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