ई संजोगे रहे कि ओह दिने दिदिया कचहरी के राहे केनियो जात रही, कि अचानके थथम गइली आ लगली सोंचे. आपन आंखि के ऊ कई बेर मलली तबो विश्वास ना पड़े, फेरू निगिचा जाके देखली त इत्मीनान भइल, कि सांचो ई बीने हई. ई बीना कब से करिया कोट पहिने लगली, ऊ ना सोच पवली. इनकर त जिनगिए बदल गइल बा. बियाह भइल रहे, त सभे कहे कि बड़ा उमीरगर लइका से ई बियाह दीहल गइली. बीना एगो सुकुंआर, पढ़ल-लिखल लइकी रहीं, ओही से इनकर बियाहो एगो प्रोफेसर लइका से भइल रहे, जवन पी.एच.डी. कइले रहन, बाकी बीना त अपना जिनगी के रूपे बदल लेली. ई त कनिया-दुलहिन बनबे ना कइली आ एगो वकील बन गइल बाड़ी. दिदिया के अइसन लागत रहे कि कोर्ट से अबे ऊ कवनो अंझुराइल बहस क के निकलल रही. अबहीं ले ऊ थिराइल ना रही. उनका मन में विचारन के धार अबहिं हलकोरा मारत रहे.
त दीदीया जेसे दस बरिस बाद भेटाइल रही, लगली कहे- ए- दीदीया अब हम ऊ बीना ना हंई जेकरा के खाली ओह प्रोफेसर साहेब के साथे साड़ी आ चुनरी से मुंह तोप के तोहन लोग बिदा कइले रहू. हमरा भाग में त कनिया बने के लिखले ना रहे, ओही से कह तानी कि अब हम ऊ ना हंई. हमार देयादिन हमके का बुझीहन. सास के ना रहला से ओह घर में ऊ गुलछर्रा उड़ावत रही. हमरा एह सोना नियर घर के हमरा भसुर के सीधा होखे से ऊ उजाड़ देले रहीं.
अरे! दीदिया ऊ हमार जेठान ना रही, ऊ रही नट्टिïन आ एगो जादूगरनी तबे नू एह प्रोफेसरो के अपने बस में कके हमार बियाह करवइली. ऊ हमके सोझबक मेहरारूए ना एगो उजबक लइकी बूझ के ले अइली आ हरदम हमके खानदानी बने के सीख देवे लगली. ऊ समझवली कि उहे मेहरारू देवी कहाले जवन रहन-चाल से रहेले. ऊ जनली कि हमहूं ओही पुरनकी मेहरारून में से बानी जवन खाली सहत रहेले. जइसे आ जवना करवट ओह घर में, मरद आ सास, जेठानी आ ननद बइठा देला ओही करवट जिनगी भर ऊ बइठल रहेली. तनिको ओह आ उफ्फ मुंह से ना निकसेला.
ए- दीदिया एह पुरनकी मेहरारूनो में एकहक गो अइसन चलबिद्धर कनटाइन आ जोगिन होली कि सभके अपने बस में कइले रहेली. अइसने मेहरारू मुहजोरो कहाली. इन्हन लोगिन के मुंहे ना चलेला, आंखियो चलत आ चकमकत रहेला. इनका सोझा बड़हन-बड़हन मरदो लोग पोंछ दबा के भाग जाला, आ ना भागेला त लागेला लोग पोंछ हिला-हिला के नाचे. अइसने मेहरारून में एगो हमरो जेठ देयादिन रहीं, जेकरा सोझा हमार मरदो रात दिन आपन पोंछ हिलावल करस. कालेज में ऊ दोसरा के पढ़ावस आ घर में अपना भऊजाई से पाठ पढ़ल करस.
जब हम बियाहे अइलीं त जेठानी के दू-दूगो से बेटिन से घेराइल रहत रहीं. इहे बेटी लोग हमार सास ननद बनल रहे. जानतरू ओने का होत रहे, एह बेटिन के चाचा अपना भउजी साथे हंसत-मुस्कात रहत रहन. दिन में त अपना नोकरी प रहस, बाकी अवेते सीधे ओह मोटको के घर में बिहंसतेे घुस जास. ई लीला देखते-देखते हमहूं जब उबिया गइलीं आ मन पाक गइल त लगनी ओह लोगिन के घर में घुस-घुस के चाय पहुंचावे. कबो-कबो रंग-बिरंगा नाश्ता बनाई, त कबो मिठाई मंगा के खियावे घुसीं आ एह लोगिन के कुल तमाशा अपना आंखि निहारल करीं.
एही कुल सेवा करे में एक दिन एगो डायरी हमरा हाथे लागल त पवलीं कि हमरा दुलहा के उमिर त एह घरी एकतालिस बरीस होता, त अपना उमिर ओरी तकलीं, जवन अबही बीस पार करत रहे. जानतारू दीदिया हम एह घरी ई सोच के ना चुपइलीं कि एह उमिर में त सांचहूं हमरा के सेवा करे खातिर ले आइल गइल बा. मन में उठल उफान से ओह दिने कनखी के बले उनके घर में बोला के बइठा लिहलीं. लगनी उनकर सेवा करे. ई सेवा खाली हाथे से ना बातो से कइलीं, साथे-साथे अंखियो चुप ना बइठल रहे. उनके अच्छा से समझवलीं कि हमार बियाह उनही से भइल बा, त उनका हमरो सेवा लेबे के ना चाहीं. एह घरी हम एकदमे बेलज्ज आ बेशरम मेहरारू बन गइल रहीं. उहो हमरा बाती से हंसलन-बिहंसलन, बाकी उनका भउजी के मन में ओह घरी तूफान उठत रहे-जइसे बुझाइल कि ऊ डेराइल आ कंपसल बाड़ी. हमरा उमेद हो गइल कि एह तूफान के सामना अब हम क सकीला.
ए दीदिया हमार हर-तरह के सेवा जवन उनका भउजी के छाती प मंूग दर के हम करत रहीं ओही के फल भइल कि हमरा पता चलल कि हमरा पहिले एक जानी जवन देखे में खूबे सुन्दर रही इनका जीवन में बियाह के इहे भउजी उतरले रही, बाकी कुछुओ दिन ओह मेहरारू के ओकरा जिनगी के सुख ऊ ना भोगे दिहली. बेचारी के बाप ना रहे, आ माई त जनमते चल देले रहे, अइसन टूअर-टापर लइकी के जिनगी में ई कहिके कि ओकरा देह में त सफेद दाग बा, घूंघट काढ़ के ओह दाग के ऊ चोरवले रहले, मरद के साथे रही त घरो खानदान में दाग लाग जाई, ओकरा भेंट ई भउजी ना होखे दिहली.
अपना बेटी आ घरेके सेवा-टहल खातिर ओके दाई बना के ओह गांवे के घर में ई राख देले बाड़ी. अब गांव घर के काम-काज से एह भउजी के छुट्टी मिल गइल बा, त कबो-कबो गांव में आ कबो देवर के नोकरी प आके रहेली. ढेर देवरे के नोकरी प बहरे एह से रहेली कि जवान-जवान बेटिन के पढ़ावे-लिखावे के रहेला आ देवर प आपन सासनो चलेला. देवर त ओह बेटिन के पढ़इबे करिहन आ भउजी अपना देवर के रुपिया-पइसा आ खाना-कपड़ा के साजो संवार करत रहिहन.
एतना कुल लीला देखते-देखते अब हमार अक्किल में ताला आ बन्द आंख दुनू खुलल. जानतारू हमके त एह समाज के मुंह बन्ïद करे खातिर न एह चालिस बरीस के दुलहा से बियाह के ई भऊजी ले अइली. त अब हम सोचनी कि नीक से एह खोखला समाज के सोझा एह भउजी के नागट उघार क के हम नचाइब. एही सोच के पुरवे खातिर एह दीदिया आज हमरा ई रूप धरे के परल. बीना कहली कि हम काहे चुप बइठब. आज के जमाना के बेटी बानी. हम तोहसे सांचो कहतानी कि एह घरी-”आंचल में है दूध- आंखो में पानी ” वाला रूप सोचियो के हम चुपइलीं नाहीं. एही से दूइए साल के भीतर ई सोना-चानी दू जानी देवी हमरा भइली.
जब ई लोग के जनम होखे के रहे, त ओहू घरी ई भउजी हमके बकसली ना अपन कुल करतब देखा दिहली कि कइसहूं हमार जान बाचो ना. होखे के घरी ले एह घर के कुल टहल-सेवा हमही कइलीं. ऊ त ई कह कि जेउवां दूगो देवी लोग आ गइली, त भउजी बस इहे कहि के चुपा गइली कि बड़ा धधाइल रहलन हं, एह कुल-खानदान में बेटा ना आई. इहो कुलछनी मेहरारू बिया कि अवतही दरिद्र बना देलस. हमरा त दू जानी बेटी रहबे कइली ह, ई आके एके साथे दूगो अवरी बेटिए बोला देलस. देवर से कहली कि हरघड़ी एही से बरजत रहीं कि राती के दूध पीए के बहाना बना के तू ओने का करे जाला आ जाये के चाहेल, ई मेहररूओ त बेरहन बिया. अब त जवन होखे के हो गइल, अबो से बूझ. आगे कहली कि बूढ़ा गइलन बाकी इनका अक्किल ना भइल.
ए दीदिया इहे ना हम अपना लरकोरी भइला प केतना दु:ख सहलीं आ हमार केतना दुरदसा भइल, बाकी हम हिम्मत ना हरलीं. सीताजी के त रोवला पर बन देवी लोग साथे रहल बाकी हमरा साथे त ओइसनो केहू ना रहे, एह से हम रोइबो ना कइलीं. हम आपन सेवा अइसन बढ़वलीं कि एक दिने हमार मरद हमके लेके चुपे-चुपे एगो किराया के घर में आपन सब धन- दउलत छोड़ के चल देलन. मन के सुख ना सुख कहाला दीदिया. देह त बथते-पिरात रहेला, बाकी मन के पिराये के ना चाही. बीना-दीदिया से आगे कहली कि ऊ पढ़ल-लिखल रही त बुद्घि से काम लिहली. एक बेरी गांवे चल गइली. अपना बड़ बहिन, जे उनकर सवत रही, उनके अपना साथे ले अइली. दुनू बेटी के उनका गोदी में डलली. नया साड़ी आ कपड़ा पहिना के उनकर रूप बदलली, आ मोका पाके ओह भउजी के झूठ के भंडा-फोड़ क देहली-अपना मरद के ई देखा के कि उनका एह सुबरन अइसन देह में कहीं सफेद दाग हइए नइखे.
अभी कुछुए दिन बितल रहे कि हम अस्पताल से एगो गुलाब अइसन ललना ले के अपना घरे लवटलीं, त हमार बहिना (सवत) हमके सोहर गा-गा के उतरली आ घर में ले अइली. हमार दुलहा ई सुख देखलन. उनका आंख से खुशी के लोर बहे लागल. कहलन कि मेहरारू चाहे त उजड़ल घर बसा दी. फूटल घर के स्वर्ग बना दी आ भंवर में फंसल अपना मरद के अपना जान प खेल के बचा ली. एने सोना-चानी अपना बड़की माई के जान-परान बनल रही लोग, त एक दिन गोदी में उठा के उनकर पापा कहलन कि ए बेटा तोहन लोगिन के त दूगो माई के पियार आ आर्शीबाद मिलल बा, तूही लोग बड़ होके एह दुनिया में हमरो नांव उजागर करबू.
आज बीना अपना दीदिया से जिनगी के सब बात बतावत रही, जेमे कबो केहू के पुचकारस त कबो केहू के झकझोरस. दीदिया के बुझा गइल कि बीना आज अपना जिनगी के इतिहास निहार रहल बाड़ी. अपना दीदिया से का-का कहिहन उनका बुझइबे ना करे. त कहली कि अब आज के मेहरारू देवी कहाए खातिर लालायित नइखी. देवी कहि के ई समाज अब एह मेहरारून के चूस ना सकेला. अब एह देवी के चश्मा बदल गइल बा. पहिले ई चश्मा खाली दया, माया आ ममता के रंग में रंगात रहे, अब ओह में विद्वता घोरा गइल बा, तबे न बीनो के आपन घर चीन्हे में आ बसावे में देरी ना लागल. ऊ अपना मरद के मकड़ी के जाल से खींच के बाहर क लेली.
ए दीदिया, मेहरारूए चालाको होली, उहे बुरबको आ उजबको कहाली. मेहरारू निको होली आ देवियो बनेली आ उहे नïिट्टïन आ राक्षसनीयो बन जाली. अब तू हीं देख ना कि ई भउजी त हमरा सोना नियर मरद के जिनगी नरक बना देले रही, जेमे दू-दूगो मेहरारू के जिनगी पिसात रहे. उहो उनही के सूनत रहन, चाहे ई कह कि इनकर ऊ मति मार देले रही. जहिया हम उनके आपन देवता बनवलीं आ अपना बहिना के अपना घरे बइठवलीं ओह दिने ऊ मोटको हमरा पीठ पीछे हमके कुबोली बोलली, नट्टिïन कहली, अवरी ना त डाइनो कहली, बाकी हमार ई करिकी कोटवा के सोझा तनी ऊ डेरा जाली. हमरा बुझाइल कि ई करिया कोटे हमके आ हमरा सभ भंवर में फंसल बहिन लोगिन के नामरद के कनई में सनाइल देह के बचा आ उबार सकेले त हम एह कानून के पढ़ाई पढ़े में जुट गइनी, आ अब ई कोटवे पहिन लेहलीं. दीदिया तू करिया कोट देख के भकुआ गइलू ह न. एकर राज का बा, अब हम तोहके बतावतानी. ई दुनिया आ समाज जे मेहरारू में खाली अएबे देखेला, ओहू के तनी देर खातिर ई करिकी कोटिया रोकेले, तबे ना कहल जाला कि पहिले के मेहरारू के लगे जीभ ना रहे, आ अब त ऊ कुल बेपरद हो तारीसन. उनहनी के आंख में अब पानी हइए नइखे. आज के महरारू बीत्ता भर के जीभ लेइके जनमतारी स. त हम आज के मेहरारू ना हई.
अपना सेवा आ मेहनत के बले ई करिया कोटो पहिन लेले बानी, बाकी अपना बहिना आ बेटी कुल के त बिना कोट पहिनवलहीं हम जनमें से एह जीनगी के जीए खातिर वकील बना देले बानी.ए दीदिया हमार बहिना एह उमिर में अइला प अब आपन पुरनका चश्मा उतार देली ह, आ अपना मरद के रोजे नीक से भर आंख देखेली, बेनिया डोला-डोला के खियावेली, आ थकला प उनकर गोड़ो दबावेली. जब बेटिन साथे पारलर जाली त अपनो मुंह आ बार के सेटिंग करावेली. कबो-कबो ऊ अपना मरद साथे मंदिरो जाली आ उनसे कहेली कि देखि ना हर मंदिर में त हमार बहिना बीने बइठल बाड़ी, याने हमरे रूप ऊ चारों ओरी निहारेली, अउर ओकर चरचा हरदम करत रहेली.
ए दीदिया सिनेमा के त कुल हिरोइन आ हिरो के हमार बहिना चिन्हेली, जेकरा बारे में ऊ इनका से खूबे बतियावेली, हमरा एतना फुरसते कहां बा. हम त रोजे बहिना नियर कइगो मेहरारून के उलझने-सुंझुरावे आ सरिहावे में बाझल रहिला. हमार सोना-चानी आ बबुआ गुटरू अपना बड़की माई के गोदी में पलात बाड़े. हमरा ओह घड़ी स्वर्ग के सुख मिलेला जब हमार पूरा परिवार याने दुनु महतारी तीनो बच्चा आ मरद एक साथे छुट्टी में कवनो पहाड़ प घुमे जाइले. हमार हृदया अघा गइल ए दीदिया-एह सुख से आ साथे-साथे रूपो बदल गइल. जब हमार बहिना कहेली कि जइसे हमार दिन लवटल ओइसे सात घर दुस्मनो के दिन लौटो, त ई सुन के हमार जिनगी धन-धन हो जाला आ हम अगरा जाइला.
–डॉ. आशारानी लाल