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जिन्गी तराजु हऊवे

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डा.रबि भूषण प्रसाद चौरसिया

जिन्गी तराजु हऊवे, सुख दुःख जोखेला।
सुखवेके जेतना प्यार, एके दुखवोसे होखेला।
कबहु एने कबहु वोने पलडा झुले।
कबहु लागे बन्धु डण्डीयाँके तुरे।।

हँसीके फुही फाही ,गमके सागर सोखेला…..२

हरकोईके फिक्स बा पहिलेसे उमिरियाँ।
आवते समय पिजडा तुरी उडे चिडीयाँ।
रुके नाही कोई केतनो भाई बन्धु रोकेला…..३

रुके नाही कोई, केतनो छतियाँ ठोकेला……४

काहे केहु अपने आपके समझे अभागा?।
सुख बाटे कच्चा त कहवाँ दु;ख बाटे पक्का?।
भोरमे उगल किरिनियाँ,सझियाके डुबेला।।।
जिन्गीके गाडी कहवां कबहु रुकेला?।।।।
जिन्गीके गाडी सांस बन्द भईले रुकेला।।।।

कबहु बकुलवां मछरी,कबहु मछरी बकुला नोचेला………..६

सुख दुःखमे जे हसी हसी जिएला।
माहुरके अमृत समान सम्झीके पिएला।।
होखे नाही सुख दुःखसे कबहु निराश।।।
पथरसे पानी निकली राखे हरदम आश।
जरुरे ई जगमे ओकरे जित होखेला…………७

डा.रबि भूषण प्रसाद चौरसिया

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