लिट्टी,चोखा भयल नदारत
पिज्जा,बरगर खाय बनारस।
टीका,रोरी,धोती,कुरता
कय देहलस इनकार बनारस।
अपनें रंगत से लागत अब
होखत बाटै दुर बनारस।
बहा के नाला गंगा में
अईंठत गईंठत बाय बनारस।
महादेव के अभिनन्दन पर
नमस्कार हव करत बनारस।
साँड़ अऊर सीढ़ी,संन्यासी
बतीये भर भौकाल बनारस।
चना,चबेना,लाई,चूड़ा
लागत गईल भुलाय बनारस।
देख के माठा मुँह बिचकावे
पेप्सी पियत बाय बनारस।
पान खिया के दूसरा के
अपना चूना चाटे बनारस।
उतर गयल कान्हीं से गमछा
टाई पहिनत बाय बनारस।
साँझ सबेरे हॉफ पैन्ट पर
टहरत घूमत बाय बनारस।
छोड़ अखाढ़ा,धुर छोड़ी अब
फेयरन लभली पोतै बनारस।
अड़ी छोड़ अब अस्सी के
टी.वी. देखत बाय बनारस।
चित्रहार के आगे लागत
कजरी,फगुआ भुलल बनारस।
छोड़ ठंढई अब लागत
कुछ अऊरी पीयत बाय बनारस।
सील,बट्टा के छोड़ी बुझाला
शीशी ढारत बाय बनारस।
कृपा दृष्टि भैरो बाबा क
देखा गोईंयाँ बाय बनारस।
कुछौ कहि ले कोई बाकी
चकाचक हव मोर बनारस।
लिट्टी,चोखा भयल नदारत
पिज्जा बरगर खाय बनारस।। *योगी*
योगेन्द्र शर्मा *योगी*
भीषमपुर,चकिया,चंदौली(उ.प्र.)