परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प , रउवा सब के सोझा बा भोजपुरी लघुकथा गरीब के माई, जवन की भोजपुरी लघुकथा संग्रह एकमुश्त समाधान से लिहल गइल बा।
भइल उहे जवना के ओकरा उमेद रहे। घर के डेवढ़ी पर गोड़ रखते बेमार माई के खनखनात सवाल उल्का-पिंड अइसन ओकरा कान से टकराइल-“मार दवाई ले अइलऽ बेटा ?”
ऊ माई का चेहरा के झुर्रिअन में उभर आइल छनिक उमेद के झलक देखलस आ फेर ओके अचके खांसी में बदलतो देखलस। माई के चेहरा करिआ पड़े लागल। लागल, जइसे ओकर सांस निकलल, अब निकलल।
माई के हालत देखके ऊ घबड़ा गइल। माई दमा के मरीज हई। रोज दवा ले आवे के कहेली। ऊ रोजे कवनो-ना-कवनो बहाना बना के दवाई ना ले आवे के बात कह देत रहे। बाकिर आज माई के हालत देख के ओकरा झूठ बोले के पड़ल-“हं, ले आइल बानी माई ! अभी ले अइलीं।”
घर का भीतर घुसते ओकरा अपना फैक्टंी का मालिक पर बड़ा गुस्सा आइल। ऊ कतना गिड़गिड़इलस बीस रुपया ‘एडवान्स’ लेबे खातिर, बाकिर ऊ ना दिहलस। माई के बेमारी बतवलो पर ओह बेदर्दी के दिल ना पसीजल।
एगो ताखा में रखल कुछ पुरान शीशिअन के खोजलस। हिला के देखला पर पता चलल कि एगो शीशी में कुछ दवा बा। ऊ बिना सोचले-समझले, ऊ दवा माई का गला के नीचे उतार दिहलस।
दवा के भीतर जाते माई के खोखला देह झनझना उठल। जोर से खांसी का साथे उनका कै आ दस्त आवे लागल। हिचकी बन्द हो गइल आ आंख बाहर निकल आइल। थोड़े देर में माई के चेहरा पीयर पड़ गइल।
“आरे, ई कइसन दवाई ले अइले हरिआ ?”
“हम ओह डाकदर के खून पी जाएब माई ! ऊ कमीना गलत दवाई दे देले बा। जइसे गरीब के मतारी मतारी ना होले।” फेर झूठ बोल के, अपराध-बोध से मुक्ति पावे के प्रयास करत, ऊ कहत बा।