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गणपति सिंह जी के लिखल कुछ भोजपुरी कविता

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गणपति सिंह जी
गणपति सिंह जी

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हमहुँ गाँवे रहतीं

हमहुँ माटी के दीआ बनइती।
दिअरी के दीआ जरवतीं।।

खेत पटवती ,अलुई बोअती
काश हमहुँ गाँवे रहतीं।।

धुरा धकर फाँकत सहर में
खाक में मिलल सपना बतवती।।

सुनहला इयाद के अनुभव
गाँवे सभे के हम सुनवती।।

भोर में चिरई के आवाज सुन
मुरली के हम धुन बजवतीं।।

सतरंगी घाम में भोरभोर
गीत गावत पोखरा में नहइती।।

धुरा धुरा हो गइल इहवाँ
गाँवे जिनगी के राग बनवती।।

आपना से जे दूर भइल बा
चरनिया पकड़ माफी मँगती।।

भूलल बिसरल इयाद जगा के
रिश्तन में नाया धार बनवतीं।।

हमहुँ रह के गाँवे किसानी करतीं
हे गणपति देश के मान बढ़वती।।

काहे नाहीं अइलs

माँग सेनूरा डाल बलमू हो।
बिआह के लेअईलs बलमू हो।

सुहाग राति सेजिया सजल रहे
दिलवा धड़कत रहे बलमू हो।।

अँखियाँ बिछा के बइठल रहनी
काहे नाहीं अइलs बलमू हो।।

मनवा रहे बउराइल हमरो
काहे तरपवलs बलमू हो।।

हिरदय में भरल रहे नेहिया
काहे जहर घोरलs बलमू हो।।

अँखियाँ से झर झर बहे लोर
डेगडेगे काँटा बोअलs बलमू हो।।

इहवाँ मछरी जस तड़पत बानी
सउतिनिया के सेजिया सजवलs बलमू हो।।

सून बा सेजरिया,मनवा बाट जोहे
काहे झूठ बोल भरमवलs बलमू हो।।

करी सुरतिया सिंगार रहिया जोहीं
काहे नाहीं अइलs बलमू हो।।

कवन उपइया करीं हे गणपति!
अब सबुर होत नइखे बलमू हो।

अधुरा बाड़ी सजनी

हमर सिंगार तहरा बिनु रूसल बा
हिरदय के नस नस सुखल बा
बन के आजा सइयाँ ठंढा हावा
अँखिया अब दरसन के भुखल बा।

तू जवन कहबs सब सुन लेहब।
अँखियन से हम मोती चून लेहब।
हमरा हिरदय में तू बसs फूल जइसे
काँटा हम खुदे सब बीन लेहब।

बिना कुछ कहले समझीह बालम
नेह के बरखा बरसइहs बालम
बस आस इहे रही तहरा से
दिल के दरद जनी पहुँचइहs बालम।

जबले प्यार ना करबs बलमू।
हमहुँ सिंगार ना करबs बलमू।
सादा जिनगी हमहुँ बिताइब
जबले इ रोग तुहूँ ना लगइबs बलमू।

गरमी बहुत बा , ठंढा हवा तनी बहs
हे घाटा रानी जाके तनी बलमू से कहs
पागल जस भइल बाड़ी तहर कनिया
हे निरदयी भूलाइलो खबर लेहत रहs।

हे घाटा रानी जाके पिया के समुझइहs।
हमार सनेस पिया से जाके तू सुनइहs।
गणपति के बिना अधुरा बाड़ी सजनी
बिना कुछ सुनले हमर हर बात बतइहs।

मोहिनी

जवानी आइल अइसन उमड़त
नाया नाया प्रेम के सपना पलत
देखनी चांन जइसन हँसत
उ रही आसमान में उड़त।

रही नयनवा से तीर चलावत
रहे प्यार पावे के मन में चाहत
घायल कइली हमरा के उ
कइके इशारा रहली मन बहकावत।

रूप रहे उनकर परी के जइसन
बोलस बोली मिसरी अइसन
पलक खुले जब अँखियन के
मन मोहस मोहिनी के जइसन।

भाग रहे उनकर बड़ियार
जे चहली मिलल प्यार
उनका जाल में उहे फँसल
जे जादे बनल होसियार।

नयनन के जे तीर चलवली
अइसन हथियार अपनवली
गणपति के पागल कइली
उनका के दिल में बसवली।

जोत जरावत रहीं

रीत जगत के रउआ नीत निमाहत रहीं।
आपन बिरान के फरक मेटावत रहीं।

तुछ ना बूझी आपना के रउआ जी ,
सभका के आपना गले लगावत रहीं।

जे समुझे राउर भाखा एह जगत में
ओह के आपना छतिया सटावत रहीं।

पथल पर रसरी आपन छाप छोड़ेला
ओसहीं जगत में नेक काम बढ़ावत रहीं।

जेकरी करम परधान इ, उ महान होला
नवकन मन में, नव आस जगावत रहीं।

देरे सही बाकिर,रवां नाया इतिहास रचीं
गलत गलत हs, सही राह बतावत रहीं।

गणपति के सुमिरन करीं मन से आपना
अन्हरिया भगाके,नाया जोत जरावत रहीं।

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