परनाम ! स्वागत बा राउर जोगीरा डॉट कॉम प, आई पढ़ल जाव निर्भय नीर जी के लिखल भोजपुरी कविता फुरगुदी , फुरगुदी के कहानी खूँटा में दाल बा, जवन कविता के रूप मे निर्भय नीर जी प्रस्तुत कइले बानी, फुरगुदी अपना दृढ़ निश्चय के आगे सब केहू के झुका दिहलस। रउवा सब से निहोरा बा कि पढ़ला के बाद आपन राय जरूर दीं आ रउवा निर्भय नीर जी के लिखल रचना अच्छा लागल त शेयर जरूर करी।
फुरगुदी बाज़ार गईली,
चोंचे एगो दाल लईली,
दाल के जाँता में डाल,
पिसत-पिसत ऊ बेहाल,
जाँत बीचे खूँटा ठुसल,
दाल खूँटा तरे घुसल,
फुरगुदी बढ़ई भीर गईली,
बढ़ई से सब बात बतईली,
बढ़ई-बढ़ई खूँटा चीरअ,
खूँटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पींही,
का ले परदेश जाईं।
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बढ़ई कहले हम ना भीरब,
बिना वजह के हम ना चीरब,
फुरगुदी राजा भीर गईली,
राजा से सब बात बतईली,
राजा-राजा बढ़ई दण्डअ,
बढ़ई ना खुँटा चीरे,
खूँटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पिहीं,
का ले परदेश जाईं।
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राजा कहलें दाल के खण्डे,
हम ना जाईब बढ़ई दण्डे,
फुरगुदी रानी भीर गईली,
रानी से सब बात बतईली,
रानी-रानी राजा बुझावअ,
राजा ना बढ़ई दण्डे,
बढ़ई ना खूँटा चीरे,
खूँटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पिहीं,
का ले परदेश जाईं।
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रानी कहली बात घुमाई,
एगो दाल ला राजा बुझाईं,
फुरगुदी सरप भीर गईली,
सरप से सब बात बतवली,
सरप-सरप रानी डँसअ,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई दण्डे,
बढ़ई ना खूँटा चीरे,
खूँटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पिहीं,
का ले परदेश जाईं।
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सरप कहले हम ना डँसब,
राजमहल में जाईब त मरब,
फुरगुदी लऊर भीर गईली,
लऊर से सभ बात बतईली,
लऊर-लऊर सरप मारअ,
सरप ना रानी डँसे,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई दण्डे,
बढ़ई ना खूँटा चीरे,
खूँटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पिहीं,
का ले परदेश जाईं।।
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लऊर कहले हम ना मारब,
दोसरा खातिर हम ना लड़ब,
फुरगुदी भऊर भीर गईली,
भऊर से सब बात बतईली,
भऊर-भऊर लऊर जारअ,
लऊर ना सरप मारे,
सरप ना रानी डँसे,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई दण्डे,
बढ़ई ना खूँटा चीरे,
खूँटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पिहीं,
का ले परदेश जाईं।।
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भऊर लऊर जरिहें काहे,
सबके दुश्मन बनिहें काहे,
फुरगुदी सागर भीर गईली,
सागर से सब बात बतईली,
सागर-सागर आग बुतावअ,
आग ना लऊर जारे,
लऊर ना सरप मारे,
सरप ना रानी डँसे,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई दण्डे,
बढ़ई ना खूँटा चीरे,
खूँटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पिहीं,
का ले परदेश जाईं।।
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सागर कहलें काहे भाई,
भऊर के काहे बुताईं,
फुरगुदी हाथी भीर गईली,
हाथी से सभ बात बतईली,
हाथी-हाथी सागर सोंखअ,
सागर ना भऊर बुतावे,
भऊर ना लऊर जारे,
लऊर ना सरप मारे,
सरप ना रानी डँसे,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई दण्डे,
बढ़ई ना खूँटा चीरे,
खूँटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पिहीं,
का ले परदेश जाईं।।
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हाथी कहले सागर बड़के,
हम ना सोंखब तोहरा करते,
फुरगुदी रस्सी भीर गईली,
रस्सी से सभ बात बतईली,
रस्सी-रस्सी हाथी छानअ,
हाथी ना सागर सोंखे,
सागर ना भऊर बुतावे,
भऊर ना लऊर जारे,
लऊर ना सरप मारे,
सरप ना रानी डँसे,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई दण्डे,
बढ़ई ना खूँटा चीरे,
खूँटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पिहीं,
का ले परदेश जाईं।।
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रस्सी कहले हम ना छानब,
हाथी के हम काहे बाँधब,
फुरगदी मूसा भीर गईली,
मूसा से सभ बात बतईली,
मूसा-मूसा रस्सी काटअ्,
रस्सी ना हाथी छाने,
हाथी ना सागर सोंखे,
सागर ना आग बुतावे,
आग ना लऊर जारे,
लऊर ना सरप मारे,
सरप ना रानी डँसे,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई दण्डे,
बढ़ई ना खूँटा चीरे,
खूँटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पिहीं,
का ले परदेश जाईं।।
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मूसा कहले हम ना आंटब,
रस्सी के काहे हम काटब,
फुरगुदी बिलार घर गईली,
बिलार से सब बात बतईली,
बिलार-बिलार मूसा के चाँपअ,
मूसा ना रस्सी काटे,
रस्सी ना हाथी छाने,
हाथी ना सागर सोंखे,
सागर ना आग बुतावे,
आग ना लऊर जारे,
लऊर ना सरप मारे,
सरप ना रानी डँसे,
रानी ना राजा बुझावे,
राजा ना बढ़ई दण्डे,
बढ़ई ना खूँटा चीरे,
खूँटा में मोर दाल बा,
का खाईं का पिहीं,
का ले परदेश जाईं।।
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बिलाई रहली भुखाईल,
मूसा चाँपे में खखुआईल,
फुरगुदी खुश होके उड़ली,
मूसा के घर जा समझईली,
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विलाई के डर से मूस ,
कहले अपना बिल में घूस,
हमके चाँपो ओंपो मत कोई,
हम रस्सी काटब बिलोई,
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मूसा से रस्सी डर गईले,
हाथ जोड़ी के ऊ कहले,
हमके काटो ओटो मत कोई,
हम हाथी छानब बिलोई।
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हाथी रस्सी से डर गईले,
हाथ जोड़ के ऊ चिल्लईले,
हमको छानो ओनो मत कोई,
हम सागर सोखब बिलोई।
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सागर हाथी से घबरईले,
अपने आप ऊ चिल्लईले,
हमको सोंखो ओंखो मत कोई,
हम आग बुतायेब बिलोई।।
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आग सागर से भय खईले,
अपने आप ऊ कह भईले,
हमको बुताओ ओताओ मत कोई,
हम लऊर जारब बिलोई,।।
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लऊर आग से डर गईले,
हाथ जोड़ले ऊ चिल्लईले,
हमको जारो ओरो मत कोई,
हम सरप मारब बिलोई।।
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सरप लऊर देख डेरईले,
अपने आप ऊ कह भईले,
हमको मारो ओरो मत कोई,
हम रानी डंसब बिलोई।।
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रानी सरप से डेरईली,
अपने आप ऊ कह भईली,
हमको काटो ओटो मत कोई,
हम राजा बुझाएम बिलोई।।
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राजा के रानी समझवली,
रूस फूल के बात मनवली,
हमको बुझाओ ओझाओ मत कोई,
हम बढ़ई दण्डब बिलोई।।
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राजा बढ़ई के बोलवईले,
दऊरल दऊरल बढ़ई अईले,
हमको दण्डो ओण्डो मत कोई,
हम खूँटा फारब बिलोई।।
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बढ़ई खूँटा भीर गईले,
आपन बसुला हाथ उठईले,
हमको चीरो ओरो मत कोई,
हम अपने से फाटब बिलोई,।।
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खूँटा अपने आप फाटल,
दाल निकलल खुबे छाँटल,
फुरगुदी दाल चोंच में,
ले के उड़ली अपना खोंत में।।
देखल जाव फुरगुदी के कहानी खूँटा में दाल बा
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