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संजय कुमार मौर्य जी के लिखल चार गो भोजपुरी कविता

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संजय कुमार मौर्य जी
संजय कुमार मौर्य जी

ईमान सबका लगे

ईमान सबका लगे ओरा गइल बा
लाज कवनों ठंइया हेरा गइल बा

अब केहूए त झण्डा उठइबे करी
अनीति से करेजवा पीरा गइल बा

ई देश, ई जनता के भला कइसे होई
साहब लोग के जांगर कीरा गइल बा

गरीब रोऽत बाटे हे भगवान रोटी द
जब जनमे से मँुहवा चीरा गइल बा

अंग्रेजवन से त जीते गइल ई देशवा
अब नेतवन से देशवा हरा गइल बा

जिनिगी के समय हेरा के पवले के बाटे

जिनिगी के समय हेरा के पवले के बाटे
बूढ़ी समइया पथ पर धवले के बाटे

बचपन से गोड़ सम्हार के राखऽ ए भाई
गिरल मुसाफिर कबो उठवले के बाटे

हँसत खेलत अदमी के गर्दन रेतल जाता
लेकिन मूअल आदमी कबो जीयवले के बाटे

बा केतना दिन से पहरा उनका इनरा पर
पियासल मनई के पियास मिटवले के बाटे

राह कुराहे चलते ध्यान रहे एतना सबका
पाप से भरल लंका के आग बुतवले के बाटे

अब कुर्बानी होते रही धरम धरम की खेला में
धरती पर गुजुर गुजुर धरम बनवले के बाटे

आदमी जाल फेंकेला अपनो ओही में फँस जाला
अब रोअला से का होई ई व्यूह रचवले के बाटे

हम तू मिलके कब ई बतिया

हम तू मिलके कब ई बतिया समझल जाई
तान के सूतला से सगरो जिनिगी बहकल जाई

रोज रगड़ के रसरी से इनरा के दार खीया जाला
नित कइला से कोशिश मन के चाहत पावल जाई

सभे नीचे रही त रात अजोरिया के मनई ले आई
नभ के चंदा बनके अब खेत-खेत में चमकल जाई

एक बाग के फूल हमनी के, मन में स्नेह भरल बा
जे झगरल जाई त बगिया में कइसे महकल जाई

आवऽ पढ़े लिखेके कुछ काज करेके मिलजुल के
ज्ञान हरेला हर दुख के कब ई बतिया समझल जाई

दुसरा के बेटी के दुनिया

दुसरा के बेटी के दुनिया का का कहेला
आपन बारी आवेला त सभे चुपे रहेला

केतनो केहू सक्षम होखे ऊहो अक्षम हो जाला
तूफां आवेला त निमन निमन पेड़वा ढहेला

सभे प्यार करेला सभे प्यार से जरेला बाकिर
कइसन भाई हावा हउए चारु ओरी बहेला

जेकरा पाछे घूमनी अचिके में मिलल रहली
एगो छोटहन लइका बाटे हमके मामा कहेला

साँझ बिहाने गज़ल सुनेनी रोजे रउँआ हमसे
का जानेनी ’संजय’ के कि केतना दुखवा सहेला

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जबसे आइल बा फगुआ

जब से आइल बा फगुआ मन केतना बउराइल बा
पिया मिलन के सोच के मनवा पोर पोर अंगडाइल बा

गवना के जे बात सुनिल मनवा में फूटेला लड्डू
का होई का ना होई सोच के ई जियरा सकुचाइल बा

जबसे देखलस भईया भऊजी के रंग खेलत अंगना में
ननदी के नख शिख गाँजा भाँग नियन बउराइल बा

बुढ़वा खटिया पर बइठल देखऽ केतना डूबल बाटे
सोच – सोच के बीतल जवानी तनमन से मउराइल बा

ई जब भी आवेला आशा ले आवेला छँवड़ी छँवड़न के
मीठा मीठा दर्द में देहींया फगुआ फाग संगे पिराइल बा

चलत मुसाफिर के देहीं पर लइकन के पिचकारी पड़े
अउर गुलाल हवा में उड़ेला तनमन केतना अगराइल बा

दुअरा पर नन्हका नन्हकी हँसेले मुस्कालें झूमेलें खूबे
नवका चूल्हा में पूआ गुलऊरा गुजिया खूब छनाइल बा

संजय कुमार मौर्य, भाटपार रानी ( देवरिया, उत्तर प्रदेश )

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