दूभ

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सुधीर पाण्डेय
सुधीर पाण्डेय
पूस मे ओस की बूंदों से लदफद ,
पूनम से नहा , केस सुखाने को |
निहारती घने कोहरे मे , एकटक ,
नभ मे दिखते , अपने दीवाने को |
खुड़ीआरी की लीख पे कोई फिसला ,
ओह ! ये तो साईकल वाला निकला |
घिसे पीटे टायर , का सब दोष है ,
देखो न , निसाने पर दूभ -ओस है |
अरे ! आ गया नवसीखुवा कवि भी ,
निहारेगा , लिख के बेचेगा मुझे भी |
केस भी सुख गये, शृंगार भी लूट ही गयी ,
खुरपी -टोकरी लिये , घसगरीन आ गयी |
बटायी वाले खेत मे , डरती है जाने से ,
बचती फिरती है , क्रूर घूरते जमाने से |
पूजा मे भी , उखार -काट के चढ़ायी जाती हूँ ,
गोरू ही नहीं , भूखे मानव के काम भी आती हूँ |
जिंदगी तो देते है , पट्टीदार मेड़ पर ,
आपस मे लड़ कर , खेत को बाँट कर |
खैर !! कहीं तो जिंदगी है , छिले गये ही सही ,
शायद !!! मेड़ पर पतहर के दो झूरो के बीच |

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