डॉ० कृष्णदेव उपाध्याय जी के लिखल भोजपुरी लोकगीत

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इस पुस्तक में संग्रहीत गीत भोजपुरी भाषा के है।

सामाजिक दृष्टि से भी लोकगीत बड़े उपयोगी है। चूंकि ये गीत विशेष कर सामाजिक उत्सवों –जने, विवाह, गौना और विदाई पर ही गाये जाते है, अतएव इन संस्कारों मे संबंध रखनेवाली बहुत सी बातों का वर्णन इनमें पाया जाता है।

डॉ० कृष्णदेव उपाध्याय जी के लिखल भोजपुरी लोकगीत
डॉ० कृष्णदेव उपाध्याय जी के लिखल भोजपुरी लोकगीत

जने के अवसर पर ब्रह्मचारी के भीख माँगने तथा काशी जाकर पढ़ने का बड़ा अच्छा वर्णन है। कन्या के विवाह के लिए जब पिता घर खोजने के लिए जाता है तब पुत्री कहती है ऐ पिता जी, मेरे लिए सयाना वर खोजना। इन गीतों में दहेज-प्रथा को भी बड़ा ही मामय चित्रण है।

ननद तथा भौजाई का शाश्वत विरोघ और झगडा, साम तथा बहू का दैनिक कलह, परदे की प्रथा का अभाव, विधवा स्त्री की दयनीय दशा, पुत्री के जन्म की निन्दा तथा उसके साथ अत्यन्त कटु-व्यवहार आदि विपयो की वॉकी झांकी इन गीतों में उपलब्ध होती है।

इस प्रकार हम देखते हैं रिं इन ग्राम-गीतों में भोजपुरी समाज को बडा ही नजीव और जीता-जागना चित्र प्रस्तुत किया गया है।

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Download Bhojpuri book Bhojpuri lokgeet written by Dr Krishnadev Upadhyay.

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